असम का काजीरंगा नेशनल पार्क भारत में एक सिंग वाले गेंडों का अकेला घर है. यूं तो काजीरंगा के गेंडों पर हर वक्त शिकारियों का खतरा मंडराता रहता हैं. लेकिन एक खतरा प्राकृतिक भी है, जिसका इलाज न तो वन विभाग के पास है न ही सरकार के पास. हर साल ब्रह्मपुत्र नदी का पानी जंगल के जानवरों को तबाही के मंजर तक पहुंचा देता है.
क्या है मुश्किल?
हर साल मॉनसून में ब्रह्मपुत्र नदी का जलस्तर बढ़कर काजीरंगा नेशनल पार्क में घुस जाता है. इससे बड़ी तादाद में गेंडे बेघर हो जाते हैं और बाढ़ में बह जाते हैं. काजीरंगा के वन्यजीवों और खासतौर से गेंडों के लिए ये साल हर बार से ज्यादा तबाही लेकर आया है. असम वन्यजीव पुनर्वास और संरक्षण केंद्र (CWRC) का प्रोजेक्ट हेड रथीन ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी को बताया कि काजीरंगा में इससे पहले ऐसी बाढ़ 1988 में आई थी. 20 साल में यह अब तक की सबसे भयावह बाढ़ है.
बाढ़ का कहर
इस महीने की शुरुआत में ही काजीरंगा नेशनल पार्क का 70 फीसदी हिस्सा बाढ़ की चपेट में आ गया है. वन विभाग के मुताबिक 10 अगस्त तक 105 जानवरों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. हालात अभी सामान्य भी नहीं हुए थे कि इस विनाशकारी बाढ़ की दूसरी लहर ने काजीरंगा में दस्तक दे दी. मरने वाले जानवरों की संख्या 346 तक जा पहुंची हैं. इनमें 178 हॉग डियर, 15 गेंडे, 4 हाथी और 1 बाघ शामिल हैं.
साल 2012 में आई बाढ़ ने 793 वन्यजीवों की जान ली थी. वहीं साल 2016 में काजीरंगा नेशनल पार्क में 503 जानवर डूब कर मर गए थे. डर है कि इस बार के आंकड़े पुराने आंकड़ों को पार कर सकते हैं.
मुसीबतें कई और
काजीरंगा के वन्यजीवों के लिए मुसीबतें सिर्फ बाढ़ तक ही सीमित नहीं हैं. जैसे-जैसे बाढ़ का पानी नेशनल पार्क में घुसता हैं, जानवर अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर भागते हैं. ऐसे में कभी वो किसी गांव में पहुंच जाते हैं तो कभी नेशनल हाइवे पर. इसके साथ ही उन्हें शिकारियों का भी खतरा रहता है. नन्हें शावकों के लिए यह खतरा और भी ज्यादा होता है.
कितनी असरदार नई शुरुआत?
हर साल आने वाली बाढ़ की मुसीबत को देखते हुए 2002 में असम सरकार डब्लयूटीआई ने मिलकर वन्यजीव पुनर्वास और संरक्षण केंद्र की शुरुआत की थी. इस साल सीडब्लयूआरसी अब तक 107 जानवरों को रेस्क्यू कर चुका है. इनमें से 18 की मौत इलाज के दौरान हो चुकी है.
बाढ़ की पहली लहर के बाद काजीरंगा की हल्दीबारी रेंज से एक गेंडे के बच्चे को रेस्क्यू किया गया. गेंडे का यह बच्चा इतना छोटा था कि वह गर्भनाल से जुड़ा हुआ है. पानी के तेज बहाव के कारण वह अपनी मां से बिछड़ गया था. जब फिल्हाल सीडब्लयूआरसी की टीम इसकी देखभाल कर रही है. सीडब्लयूआरसी के पास फिलहाल ऐसे 7 गेंडे के बच्चे हैं.
जानवरों को भी होता है ट्रॉमा
बाढ़ से बचाए गए ज्यादातर जानवर शारीरिक से ज्यादा मानसिक ट्रॉमा का सामना करते हैं. ऐसे तो सीडब्लयूआरसी की पहली कोशिश होती है कि वो बचाए गए जानवरों का इलाज कर उन्हें जंगल में वापस छोड़ दे. लेकिन मानसिक हालत की वजह से कुछ जानवर पूरी जिंदगी सीडब्लयूआरसी में ही बिताने को मजबूर हो जाते है.
कितनी अजीब बात हैं, जो नदी पूरे साल काजीरंगा और उसके वन्यजीवों का पोषण करती है वही कभी काजीरंगा के जानवरों के लिए काल बन जाती है.
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