कश्मीर से अपने विस्थापन के 29 साल पूरा होने के मौके पर कश्मीरी पंडित समुदाय के कुछ सदस्य शनिवार को यहां राजघाट पर एकत्र हुए और घाटी में अपने लिए एक अलग बस्ती बनाने की मांग की.
उन्होंने कश्मीर घाटी लौटने का संकल्प लिया और उनकी वापसी की सुविधा के लिए सरकार से अपना कर्तव्य पूरा करने की अपील की. आयोजकों ने एक बयान में कहा कि उन्होंने कश्मीरी पंडित विस्थापन दिवस मनाया.
1990 में इसी दिन सशस्त्र आतंकवादियों के साथ सैकड़ों प्रदर्शनकारी कश्मीर की सड़कों पर उतर आए थे और अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नारेबाजी की जो आखिरकार घाटी से उनके पलायन का कारण बना.
बयान में कहा गया है कि 19 जनवरी 1990 से पहले और बाद में कई कश्मीरी पंडितों की हत्या की गयी और उन्हें प्रताड़ित किया गया तथा श्रृंखलाबद्ध तरीके से अल्पसंख्यक पंडितों को निशाना बनाया गया.
विस्थापित कश्मीरी पंडितों में से एक मोना राजदान ने कहा कि वह रात ‘संभवत: हमारे जीवन की सबसे लंबी रात थी.’
उन्होंने कहा, ‘पूरे घाटी से निकली भीड़ ने कश्मीर में हर एक सड़क पर कब्जा कर लिया. वे कश्मीरी पंडितों के खिलाफ नारेबाजी कर मांग कर रहे थे कि या तो हम उनका साथ दें या घाटी छोड़ दें.’
निर्वासित कश्मीरी पंडितों की वर्तमान स्थिति पर दुख व्यक्त करते हुये युवा छात्र विवेक रैना ने कहा कि हमारे 50,000 से अधिक लोग शिविरों में मर गए. वे सांपों और बिच्छुओं के शिकार हुए. जम्मू में अब भी एक शरणार्थी शिविर है जिसमें 25,000 से अधिक लोग आश्रय लिए हुए हैं और वह किसी यातना केंद्र से कम नहीं है.
(तस्वीर प्रतीकात्मक है)
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