तीन साल में अचानक कश्मीर में हो रही हिंसा में उबाल आ गया है. आतंकी घटनाओं में इज़ाफ़ा हुआ. आतंकियों के निशाने पर सुरक्षा बल के साथ-साथ लोकल पुलिस भी आ गई. पत्थरबाजी की नई तस्वीर सामने आने लगी. सड़कों पर उतरती भीड़ के हाथों में कभी पाकिस्तानी झंडा तो कभी आईएस का ब्लैक फ्लैग और कपड़ों से ढके चेहरों के हाथ में भारतीय फौज पर बरसाने के लिये पत्थर.
अचानक ही पत्थरबाज़ी की बाढ़ आ गई. बड़ा सवाल ये था कि आखिर घाटी की फिजा को अचानक इतने पेशेवर तरीके से बदतर कैसे कर दिया गया. इसके पीछे क्या सिर्फ पाकिस्तान का ही हाथ है? या फिर इन विरोध प्रदर्शन के पीछे खेल दूसरा है? दरअसल एनआईए को जानकारी मिली कि घाटी में आतंकवाद के लिये अलगावादियों के जरिये टेरर फंडिंग की जा रही है. वहीं पैसे का इस्तेमाल दो जगह हो रहा है. कुछ रकम भटके हुए युवाओं को बरगला कर पत्थर फेंकने, सेना पर हमला करने और घाटी में स्कूल और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में किया जा रहा है तो बाकी पैसे से अलगाववादी अपनी जेबें भर रहे हैं.
एनआईए ने उसी खेल का पर्दाफाश किया. अब 18 दिनों की रिमांड पर वो कट्टरपंथी अलगाववादी हैं जिन पर एनआईए का आरोप है कि घाटी में आतंकवाद की ये लोग फंडिंग कर रहे थे. गिरफ्तार हुए लोगों में कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी के दामाद अल्ताफ अहमद शाह समेत 7 अलगाववादी हैं. इन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद 18 दिन की रिमांड पर लिया गया है.
सैयद अली शाह गिलानी का दामाद अल्ताफ अहमद शाह उर्फ अल्ताफ फंटूश सबसे बड़ी कड़ी है. वहीं हुर्रियत कान्फ्रेंस के गिलानी धड़े के मेहराजुद्दीन कलवाल और नईम खान को गिरफ्तार किया है. एक निजी चैनल के स्टिंग में हुर्रियत नेता नईम खान ने कबूल किया था कि उन्हें घाटी में आतंक फैलाने के लिये पाकिस्तान से फंडिंग मिलती है. स्टिंग ऑपरेशन के बाद नईम खान को गिलानी नेतृत्व वाले हुर्रियत ने निलंबित कर दिया था.
इस बार एनआईए ने कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए टेरर फंडिंग से जुड़ी अलगाववादियों के नेटवर्क की कमर तोड़ दी है. एनआईए ने मीरवाइज़ उमर फारूक के नेतृत्व वाली हुर्रियत कान्फ्रेंस के नरमपंथी धड़े के प्रवक्ता शाहिद उल इस्लाम को भी गिरफ्तार किया है. तहरीके हुर्रियत के फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे और जावेद अहमद बाबा उर्फ गाजी से पूछताछ में बड़ा खुलासा हुआ.
टेरर फंडिंग का हवाला कनेक्शन
सूत्रों के मुताबिक सैय्यद अली शाह गिलानी समेत दूसरे अलगाववादी नेताओं को पाकिस्तान से हवाला और क्रॉस बॉर्डर ट्रेड के जरिये पैसा मिलता है. एनआईए को ऐसे सबूत मिले थे जिसमें अलगाववादियों को मिल रही टेरर फंडिंग के तार दिल्ली के हवाला कारोबारियों तक से जुड़े थे. दिल्ली से ये पैसा पंजाब और हिमाचल प्रदेश के हवाला ऑपरेटरों के जरिये जम्मू कश्मीर पहुंचता है. जम्मू-कश्मीर से बाहर के व्यापारियों के शामिल होने से साफ हो गया है कि हवाला कारोबार के तार पूरे देश में जुड़े हुए हैं. अलगाववादी गुटों को पाकिस्तान से हवाला के जरिये भेजी गयी फंडिंग सउदी अरब, बांग्लादेश और श्रीलंका के रास्ते दिल्ली के हवाला ऑपरेटरों तक भेजी जाती है.
इस गिरफ्तारी की असली पटकथा पिछले महीने एनआई के छापों ने लिखी. अलगवावादियों के घरों पर एनआईए ने छापे मार कर दो करोड़ रुपए नकद बरामद किये थे. साथ ही लश्कर-ए-तैयबा और हिज्बुल मुजाहिद्दीन समेत प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों के लेटरहेड भी मिले थे. एनआईए की जांच का मकसद टेरर फंडिंग करने वाले लोगों की पहचान करना था. टेरर फंडिंग के पैसों से स्थानीय लोग सुरक्षा बलों पर पथराव, स्कूल जलाने और सरकारी संपत्ति को आग के हवाले करने का काम करते थे. पिछले साल 8 जुलाई को सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में कई स्कूलों में तोड़फोड़ कर आग लगा दी गई थी.
हवाला से मिले करोड़ों रुपयों का कुछ हिस्सा विरोध प्रदर्शन और सेना के जवानों पर हमले में इस्तेमाल हो रहा था और बाकी पैसे से अलगाववादी अपनी तिजोरी भर रहे थे. बाकायदा पत्थरबाजी, दंगा और सुरक्षा बलों पर हमले के लिये पैसों की वसूली का धंधा चल रहा था जिसका संगठित नेटवर्क बना हुआ है.
इन करोड़ों रुपयों से अलगाववादी अमीर होते चले गए और हाथों में पत्थर और बंदूक उठाने वाले कश्मीरी नौजवान इनकी साजिश के चलते कफन पहनने को मजबूर हो गए.
इन्हीं के भड़काऊ भाषणों के चलते स्कूलों में आग लगाने से लेकर परीक्षा में छात्रों को बैठने न देने की वजह से हजारों छात्रों की पढ़ाई बीच में रुक गई. गरीब और बेरोजगार छात्रों को बंदूक थमा कर जेहाद के नाम पर आतंक के रास्ते पर उतार दिया गया. बुरहान वानी के एनकाउन्टर को भुना कर कश्मीर के हालात बिगाड़ कर हवाला के जरिये करोड़ों की रकम डकार गए. इन अलगावादियों के पास बरामद करोड़ों रुपये से साफ हो गया कि कश्मीर में हिंसा के जरिये ये करोड़ों रुपये कमा रहे थे.
इससे पहले लश्क-ए-तैयबा के सरगना हाफिज़ सईद की भी यासीन मलिक के साथ फोन पर बातचीत को खुफिया एजेंसी ने इंटरसेप्ट किया था जिसमें हाफिज़ कश्मीर में हालात भड़काने की बात कर रहा था और यासीन मलिक पैसे की मांग कर रहा था.
कई घरों के चिराग़ बुझाने वाले ये अलगाववादी असल में पाकिस्तान के हाथ की कठपुतली नहीं बल्कि सौदागर हैं. ये जानते हैं कि अलगाववादी की सियासत से तिजोरियां कैसे भरी जाती हैं. दिलचस्प ये है कि दूसरे नौजवानों के हाथों में जेहाद के नाम पर बंदूकें थमाने वाले अलगाववादियों के खुद के बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं जबकि कश्मीर में छात्र पढ़ने को मजबूर हैं.
अलगाववादियों की गिरफ्तारी के विरोध में घाटी में बंद बुलाया गया है. ये बंद आम कश्मीरी की जरुरतों को प्रभावित करता है. हिंसा, हड़ताल और हमलों के चलते घाटी के हालात बदतर करने में इन अलगाववादी नेताओं की भूमिका टेरर फंडिंग के चलते बेनकाब हो चुकी है. पाकिस्तान के साथ मिलकर इनके संगठन पैसों के लिये मासूमों को कफन पहना रहे हैं तो दूसरी तरफ कश्मीर में इंसाफ की दुहाई दे रहे हैं.
दिलचस्प ये है कि इन अलगाववादी नेताओं की हिफाज़त में केंद्र सरकार के पैसों से राज्य सरकार हर साल तकरीबन पचास करोड़ रुपये खर्च करती है. ऐसे में ये सोचने वाली बात है कि विशेष राज्य का दर्जा पाए जाने वाले राज्य के अलगवावादी नेता हिफाजत केंद्र से चाहते हैं और देश के खिलाफ साजिश में भी शामिल होते हैं.
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