साल 2017 की शुरुआत में कश्मीर के जख्मों पर नाटकीय बदलावों का साया देखा जा सकता था. पिछले साल बुरहान वानी के मारे जाने के बाद से हालात बिगड़े हुए थे और तकरीबन सौ लोग अपनी जान गंवा चुके थे, वानी की कहानियां दूर दूर तक पहुंच रहीं थीं और दहशतगर्दों को मिलने वाला संबल नई ऊंचाईयां छू रहा था. कुछ ही आतंकी मारे गए पर कई और नए उनके कदमों के निशान पर चलने के लिए तैयार हो रहे थे. कश्मीर के हालात बेकाबू लगने लगे थे.
साल 2016 में कश्मीर खासकर दक्षिणी कश्मीर के चार जिलों- पुलवामा, शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग में हालात खराब थे. इन इलाकों में मुख्यधारा के लीडरों और एक्टिविस्टों को निशाना बनाया जा रहा था. साल 2016 की घटनाओं ने दहशतगर्दों की ताकत में इजाफा कर दिया था और वे मेनस्ट्रीम के लोगों पर जोर आजमाइश कर रहे थे.
आतंकियों ने खुद के कई वीडियो बनाए और उन्हें सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया. इन वीडियोज में दिखाया गया किस तरह लोकल लीडर्स को बंदूक की नोक पर धमकाकर उनसे ‘मकसद को धोखा’ देने पर ‘माफी’ मंगवाई गई ताकि दूसरे लोगों को इससे सबक मिले.
सिकुड़ रहे सियासी माहौल ने वानी के बाद कमान संभालने मिलिटेंट कमांडरों जैसे सब्जार बट को उभरने का मौका दिया. सब्जार ने धमकी दी कि वह वानी के उस काम को आगे ले जाएगा जो उसके मारे जाने से अधर में रह गया है यानी दहशतगर्दी में ग्लैमर को बढ़ाना. जमात-ए-इस्लामी के एक्टिविस्ट यासीन इटू को हिजबुल मुजाहिदीन के आपरेशनल कमांडर यासीन इटू बनाया गया. इटू इससे पहले यूथ को गुमराह करके दहशतगर्दी के रास्ते पर भेजने का काम करता था.
आपरेशन- ऑल आउट
इन मुश्किल हालात का सामना करने के लिए सुरक्षा एजेंसियों ने एक ब्लूप्रिंट तैयार किया और 200 से अधिक ऐसे दहशतगर्दों की फेहरिश्त बनाई जो कश्मीर में अमन के लिए खतरा थे. इसमें इटू और सब्जार के नाम टॉप पर थे. उनके छिपने के ठिकानों का पता लगाने के लिए खुफिया तरीके इस्तेमाल किए गये. साल के बीच में शुरू हुए ‘आपरेशन ऑल आउट’ ने घाटी में हलचल मचा दी.
कश्मीर में नाराजगी के उबाल के बीच मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने घाटी के पुलिस प्रमुख के पद पर आतंकवाद विरोधी अभियानों को चलाने का खासा तर्जुबा रखने वाले मुनीर खान को तैनात कर दिया. खान का टास्क आसान था: दहशतगर्दों के खिलाफ आपरेशन में सहयोग इस तरह से करना ताकि बेकसूर लोगों की जानें न जाया हों. खान ने बिना थके अपने काम को अंजाम दिया.
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इस साल की शुरूआत में 57 साल के खान ने फर्स्टपोस्ट को बताया, ‘हमारा पहला मकसद था आतंकियों के आकाओं को निशाना बनाना. जब आप एक कमांडर को मौत के घाट उतारते हैं तो नए काडर में जोश भरने वाला कोई नहीं बचता. मैं गरूर से ये बात कह सकता हूं इस साल अलग अलग आतंकी समूहों के 18 टॉप कमांडरों को मार गिराया गया है’.
इसमें कोई शक नहीं सुरक्षा बलों को बड़ी कामयाबी मिली है. सेना, पैरामिलेट्री और जम्मू कश्मीर पुलिस की मिले जुले आपरेशन में इस साल 210 से अधिक आतंकी मारे गए. हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद की टॉप लीडरशिप का सफाया हो चुका है. ये लोग इस साल इलाके के खराब सुरक्षा हालात को देखते हुए खतरनाक मंसूबे पाले हुए थे. हालांकि इन आपरेशनों को चलाने में सेना, सीआरपीएफ और जम्मू कश्मीर के कम से कम 75 जवान शहीद हो गए.
आतंकवाद और आतंकियों के खिलाफ लड़ाई में गहरी अफसोस बात ये है कि 50 से अधिक आम लोगों को जान गंवानी पड़ी. सुरक्षा बलों पर आरोप है कि घाटी में विरोध प्रदर्शन बढ़ने पर ऐसा हुआ है. इसमें ताजा मामला उन दो औरतों का है जिनके कुछ महीनों के बच्चे इस दुनिया में रह गए हैं. उनके मासूम चेहरे इस बात की निशानी हैं कि आम लोग इसकी क्या कीमत चुकाते हैं. उन बच्चों के आंसुओं से भीगे चेहरे कश्मीर के उस दर्द को बयां करते हैं जो खत्म होने का नाम नहीं ले रहा और नासूर बन गया है.
लोगों के समर्थन में आई है कमी
इस साल 200 से अधिक आतंकियों को मार गिराया गया है जिनमें से अधिकांश लोकल थे. हालांकि आतंकियों के जनाजे में पिछले साल की तुलना में कम लोग ही शरीक हुए. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बीते दो सालों में करीब 200 युवाओं ने आतंक का रास्ता पकड़ लिया है. लेकिन साल 2016 में आतंकियों की भर्ती में जो तेजी दिखी थी, खासकर बीते साल जुलाई में वानी के मारे जाने के बाद, उसकी तुलना में साल 2017 में इसमें वो बात नहीं रही. लोगों के समर्थन के बावजूद मुठभेड़ों में आतंकियों का मारा जाना चलता रहा और इसके साल 2018 में भी कायम रहने की उम्मीद है.
आपरेशन ऑल आउट को सही मायनों में कामयाब करार दिया जा सकता है. लेकिन अब सवाल है आगे क्या? क्या आतंकियों के टॉप कमांडरों को मार गिराने से नए खून का दहशतगर्दी के रास्ते पर चलना रुक जाएगा? इस साल कम से कम 117 स्थानीय युवाओं ने कई आतंकी गुटों का दामन पकड़ लिया है जबकि कई दूसरे सही मौके और वक्त की तलाश में हैं. सवाल ये है कि क्या मारने से कश्मीर समस्या हल हो जाएगी? 1990 के दशक की शुरूआत में जब घाटी में आतंक का दौर शुरू हुआ था तब से अबतक 8000 से अधिक आतंकी मारे जा चुके हैं. सवाल ये भी है कि क्या ये खूनखराबा घाटी में अमन की वापसी करवा सकता है?
जम्मू कश्मीर पुलिस प्रमुख एसपी वैद्य और सेना के कई अफसरों ने कहा है कि सुरक्षा बल केवल दहशतगर्दी का मुकाबला कर सकते हैं लेकिन वे इसे खत्म नहीं कर सकते. अब ये नई दिल्ली पर है कि वह बहादुरी से सियासी कदम उठाए और कश्मीर से खूरेंजी के सिलसिले को हमेशा-हमेशा के लिए खत्म कर दे.
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