तमिलनाडु की राजनीति के भीष्म पितामह करुणानिधि पिछले सवा दो दशक से देश की राजनीति के पेंडुलम बने हुए थे. साल 1989 में पहली बार उनकी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कणगम को वीपी सिंह नीत जनता दल वाले मोर्चे की सरकार में केंद्रीय सत्ता का सुख भोगने को मिला था. उसके बाद बीजेपी हो या कांग्रेस या फिर तीसरा मोर्चा हो, केंद्र की सत्ता में करुणानिधि की भूमिका अहम रही है.
यह सिलसिला साल 2014 में बीजेपी को मिले पूर्ण बहुमत के सहारे केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के साथ टूटा है. इसके बावजूद साल 2019 के आम चुनाव में डीएमके की हैसियत को कम आंकना सियासी भूल साबित हो सकती है. पहले करुणानिधि खानदान पर गले तक भ्रष्टाचार में डूबे होने का आरोप लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पिछले साल अचानक करुणानिधि का हालचाल पूछने के लिए उनके घर पहुंच जाना डीएमके की सियासी अहमियत की तस्दीक कर रहा है. इधर कांग्रेस भी डीएमके के साथ यूपीए-1 और यूपीए-2 के समय के अपने गठबंधन को रवानी देने में जुटी हुई है.
96 साल की उम्र और 60 साल का राजनीतिक जीवन
तमिलनाडु के तटीय जिले नागपत्तनम के तिरुवुकवुलाई गांव में तीन जून 1922 को पैदा हुए मुथुवेल करुणानिधि अपने 60 साल लंबे राजनीतिक जीवन में आजतक एक भी चुनाव नहीं हारे. उनका जन्म का नाम हालांकि दक्षिणमूर्ति रखा गया था. इस तरह उन्होंने पिछले ही महीने अपने जीवन के 96 साल पूरे किए थे. उनके समर्थक उन्हें प्यार और सम्मान से कलाइग्नर पुकारते थे. इसीलिए डीएमके समाचार टीवी चैनल का नाम भी कलाइग्नर टीवी है. उन्हें कलाइग्नर का खिताब थूकु मेदई नाटक के लिए एम आर राधा कुमार ने दिया था. उन्होंने तमिल सिनेमा के लिए अनेक फिल्म लिखीं. कलाइग्नर ने तीन शादी की जिनसे उनके कुल छह बच्चे पैदा हुए मगर उनमें से पहली पत्नी पद्मावती और उनके बेटे एम के मुथु की कम उम्र में ही मौत होने के बाद उन्होंने और दो बार शादी की जिनसे उनके कुल पांच बच्चे जीवित हैं. उनमें से तीन बच्चे-एम के स्टालिन, एम के अलागिरि और कनिमोणी राजनीति में सक्रिय हैं.
करुणानिधि का राजनीतिक सफर महज 14 बरस की उम्र में हिंदी विरोधी आंदोलन के साथ ही शुरू हो गया था. द्रविड़ राजनीति के प्रणेता सी एम अन्नादुरै के वे दायां हाथ माने जाते थे. पहली बार 1971 में करूणानिधि, तमिलनाडु के तीसरे मुख्यमंत्री बने थे. उसके सहित करूणानिधि कुल पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके थे. हालांकि 2006 में पांचवीं बार मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने अधिकतर समय व्हीलचेयर पर ही बिताया मगर मानसिक रूप में उन्हें एकदम चौकन्ना बताया गया. करूणानिधि 14 बरस की बाली उमर में ही राजनीति की ओर आकर्षित हो गए थे. वे जस्टिस पार्टी के धुआंधार वक्ता अणगिरिसामी से प्रभावित होकर हिंदी विरोधी आंदोलन में कूदे. बाद में उन्होंने अपने साथी छात्रों के साथ द्रविड़ आंदोलन का पहला युवा संगठन ‘तमिल मनावर मंदरम’ बनाया. उन्होंने पहला बड़ा राजनीतिक मोर्चा साल 1953 में कल्लुकुड़ी कस्बे का नाम बदलकर डालमियापुरम किए जाने के खिलाफ निकाला था जिसमें दो लोग मारे गए थे. डालमिया सेठ ने तब दरअसल वहां सीमेंट का कारखाना लगाया था मगर जगह का नाम बदलने से यह तमिल बनाम उत्तर भारतीय और हिंदी थोपने की शक्ल ले गया.
करुणानिधि का द्रविड़ मेनिफेस्टो
इस आंदोलन में करुणानिधि गिरफ्तार हुए और अपनी भाषण कला, व्यंग्य की शैली के कारण अवाम में जल्द ही धारदार नेता के रूप में पैठ गए. उन्होंने अधिकतर फिल्में सामाजिक और ऐतिहासिक संदर्भ वाली लिखीं, जिनमें द्रविड़ विचारधारा की तार्किक बातों पर जोर रहा. इस लिहाज से पराशक्ति फिल्म को उनका द्रविड़ मेनिफेस्टो माना जाता है जिसने तमिल सिनेमा की शक्ल बदल दी और करुणानिधि को राजनीतिक लाभ पहुंचाया. उन्होंने डीएमके के लिए मुरासोली नामक अखबार भी निकाला जो आज भी रोजाना छपता है और उनके समर्थकों के बीच चाव से पढ़ा जाता है. उनके दिवंगत भतीजे मुरासोली मारन का नाम भी अखबार के नाम पर ही था. तमिलनाडु विधानसभा के लिए कलाइग्नर पहली बार 1957 में निर्वाचित हुए. उनके साथ द्रमुक के 14 अन्य विधायक भी पहली बार निर्वाचित हुए थे. उसके बाद से वे तमिलनाडु में लगातार 12 बार विधायक रहे हैं. उन्होंने तमिल भाषा में ही छह खंडों में अपनी आत्मकथा ‘नेन्जुक्कु नीति’ नाम से लिखी है. उन्होंने करीब 75 साल तक लगातार लेखन किया है. इसकी वजह यह है कि उन्होंने स्कूल के दिनों से ही कविता आदि लिखना और अपने हाथ से लिखी लघु पत्रिका निकालना शुरू कर दिया था.
अन्नाद्रमुक के संस्थापक एमजीआर भी करूणानिधि की लिखी फिल्मों में अभिनय करके लोकप्रिय हुए मगर सत्ता के मोह ने अस्सी के दशक में दोनों की राहें जुदा कर दीं. करुणानिधि राम सेतु के संदर्भ में राम के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगाने संबंधी अपने बयानों के कारण विवादित रहे. इसके बाद लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण की 2009 में मौत के समय उसे उग्रवादी नहीं मानने संबंधी करुणानिधि के बयान ने भी खासा हंगामा किया मगर अगले ही दिन उन्होंने लिट्टे को राजीव गांधी की हत्या का दोषी ठहराकर बवाल शांत करने की कोशिश की. करुणानिधि और अन्ना द्रमुक अध्यक्ष जे जयललिता की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने भी तमिलनाडु की राजनीति में राजनीतिक दुश्मनी के नए रिकॉर्ड बनाए.
नेहरु-गांधी परिवार और जयललिता के साथ दुश्मनी
विधानसभा के भीतर करुणानिधि के पुत्र और डीएमके के वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष एम के स्टालिन और उनके साथी विधायकों का जयललिता के चीरहरण की कोशिश ऐसी ही छिछली मिसाल है. लेकिन भला जयललिता क्यों चूकतीं! उन्होंने भी तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनने पर आधी रात को करुणानिधि और मुरासोली मारन को एक मामले में नींद में ही पुलिस के हाथों उठवा कर हवालात में डाल दिया था. करुणानिधि और मुरासोली मारन की अस्त-व्यस्त कपड़ों में पुलिस वालों के कंधों पर वह चीख-पुकार देश के नागरिक आज तक नहीं भूले.
करुणानिधि का नेहरु-गांधी परिवार से घृणा और राजनैतिक सुविधावाद का लंबा इतिहास है. पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की नीतियों का विरोध करके जहां वे राज्य की राजनीति में जमे, वहीं इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान करुणानिधि की सरकार को बरखास्त करके उन्हें जेल में डाल दिया था. तब उन पर राज्य भर में अपनी मूर्तियां लगवाकर व्यक्ति पूजा को बढ़ावे का आरोप लगा था. यह बात दीगर है कि कांग्रेस अध्यक्ष देवकांत बरूआ ने भी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘इंदिरा इज इंडिया एंड इंडिया इज इंदिरा’ यानी इंदिरा ही भारत और भारत ही इंदिरा कहा गया था.
पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष की 1991 में मध्यावधि चुनाव के दौरान हत्या के मामले में भी बताया जाता है कि सोनिया गांधी नरसिम्हाराव सरकार से करुणानिधि के खिलाफ कार्रवाई की मांग करती रहीं थीं. विडंबना यह है कि साल 2004 में आम चुनाव से ऐन पहले उन्हीं सोनिया गांधी ने करुणानिधि से हाथ मिलाकर यूपीए बनाया और सत्तारूढ़ वाजपेयी सरकार और एनडीए को धूल चटाकर डीएमके के साथ सत्ता बांट ली.
डीएमके का भविष्य क्या?
बहरहाल करुणानिधि की हालत बिगड़ने की खबरों के बाद से ही उनकी पार्टी के भविष्य पर सवालिया निशान लग रहे थे. इसकी वजह उनके बेटों अलागिरि और स्टालिन के बीच डीएमके के बंट जाने की आशंका है. अलागिरि फिलहाल राजनीतिक वनवास में हैं और स्टालिन डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष हैं.
अलागिरि को मदुरै क्षेत्र में राजनीतिक रूप में खासा ताकतवर माना जाता है और खबरें उनके अपने समर्थकों की लामबंदी की बहुधा छन-छनकर आती रहती हैं. इनके अलावा करुणानिधि की तीसरी बीवी की बेटी और फिलहाल डीएमके की राज्यसभा सदस्य कनिमोणी के राजनतिक भविष्य पर भी उनके पिता के बाद सवालिया निशान लगने की आशंका जताई जा रही है. इसलिए जयललिता की मृत्यु के बाद अब करुणानिधि की मौत तमिलनाडु की राजनीति को दोराहे पर ला खड़ा किया है. देखना यही है कि स्टालिन अपने पिता की विरासत को संभालकर राज्य की सत्ता पर अपना दबदबा बरकरार रख पाएंगे या फिर उनकेे पिता के साथ ही डीएमके पार्टी भी अन्नाद्रमुक की तरह इतिहास के पन्नों में सिमटने के कगार पर पहुंच जाएगी.
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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