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कर्नाटक: SC/ST अफसरों को डिमोट करने के SC के फैसले पर बवाल, चुनाव भी होगा प्रभावित

'आरक्षण के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाया गया था. इस आदेश की वजह से 22,000 से ज्यादा लोग पीड़ित हैं. यह हमारे लिए उम्रकैद की सजा की तरह है'

Updated On: May 05, 2018 01:36 PM IST

Swetha Gowda, Akshatha Jesudasan

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कर्नाटक: SC/ST अफसरों को डिमोट करने के SC के फैसले पर बवाल, चुनाव भी होगा प्रभावित

कर्नाटक चुनाव से कुछ दिन पहले, अनुसूचित जाति (एससी)और अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदाय के 20000 से अधिक सरकारी अधिकारियों को राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों में डिमोट किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था खत्म दिए जाने के आदेश पर कार्रवाई करते हुए कर्नाटक सरकार ने अधिकारियों को डिमोट करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

रिपब्लिक पार्टी ऑफ इंडिया के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व दलित संघ समिति के नेता आर मोहन राज ने कहा, 'यह पूर्वाग्रह से भरा कृत्य है. यह संविधान के अनुच्छेद 16 ए (रोजगार से संबंधित मामलों में समान अवसर) के खिलाफ है.' उन्होंने बताया कि इस आदेश को लागू करने से एससी/एसटी समुदाय के लोग गुस्से में हैं और ये गुस्सा आगामी विधानसभा चुनाव में भी दिखेगा. वे कहते हैं कि एससी/एसटी समुदाय इस आदेश से बुरी तरह प्रभावित हुआ है और उनका भरोसा बीजेपी और कांग्रेस, दोनों से उठ गया है.

चित्रदुर्ग में लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) में कार्यकारी अभियंता के रूप में काम करने वाले केजी जगदीश को भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार डिमोट किया गया है. जगदीश कहते हैं कि उनके जीवन भर के काम का नतीजा यही मिला है. उन्होंने कहा, 'जब काम की बात आती है तो मैंने पूरे मंडल में अपने कार्यालय को सर्वश्रेष्ठ बनाने में मदद की. जब से मैंने नौकरी शुरू की तब से हमेशा एक वफादार कर्मचारी के रूप में काम करता रहा और यह सुनिश्चित किया कि मेरा काम बेहतर हो. मैं बस इतना कह सकता हूं कि अब तक मैंने जो भी किया, उसका कोई मतलब नहीं रह गया.'

जगदीश आगे कहते हैं कि एक कार्यकारी अभियंता के पद से उन्हें ग्रेड 1 सहायक अभियंता के पद पर डिमोट कर दिया गया है. चूंकि, ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला है, इसलिए वो कुछ कर भी नहीं सकते.

बीके पावित्रा और अन्य बनाम भारतीय संघ

पिछले साल फरवरी में बीके पावित्रा और अन्य बनाम भारतीय संघ मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कर्मचारियों को दी गई वरिष्ठता में रियायत को समाप्त करने का आदेश दिया. मार्च में अदालत ने कर्नाटक सरकार को ये फैसला लागू करने का आदेश दिया.

इसके बाद, पिछले साल नवंबर में कर्नाटक विधानसभा ने कर्मचारियों को डिमोशन से बचाने के लिए सर्वसम्मति से एक विधेयक पास किया. इस विधेयक का नाम था कर्नाटका एक्स्टेंशन ऑफ कॉंसक्वेंशल सीन्यॉरिटी टू गवर्नमेंट सर्वेंट प्रमोटेड ऑन द बेसिस ऑफ रिजर्वेशन (टू द पोस्ट इन द सिविल सर्विसेज ऑफ द स्टेट) बिल. लेकिन इस विधेयक को राष्ट्रपति कार्यालय ने वापस कर दिया और राज्य सरकार से इस मामले पर अपने विवेकाधिकार से फैसला करने को कहा.

सामान्य श्रेणी बनाम आरक्षित श्रेणी

इस साल सामान्य श्रेणी, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक समूह एएचआईएमएसए ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को 9 मई तक सभी प्रमोशन और डिमोशन का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करने का आदेश दिया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह भी कहा गया है कि न तो कर्नाटक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल (केएटी) और न ही उच्च न्यायालय इस मामले में किसी तरह का स्टे (रोक) दे सकता है.

जगदीश ने कहा, 'सुप्रीम कोर्ट के आदेश के कारण हमारी याचिका केएटी (कर्नाटक एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल) ने भी खारिज कर दी. भारत में कानून और व्यवस्था सही नहीं है. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोग, जो निम्न पद पर थे और मेरे अधीन काम कर रहे थे, उन्हें पदोन्नत (प्रमोट) कर दिया गया और मुझे डिमोट कर दिया गया. मुझे लगता है कि मुझे सामाजिक रूप से अपमानित किया गया है. हम गर्व और गरिमा के साथ जीना चाहते है न कि भेदभावपूर्ण जीवन.'

लेकिन एएचआईएमएसए के अध्यक्ष एम नागराज का मानना है कि सामान्य श्रेणी के योग्य व्यक्तियों को, जो पदोन्नति से वंचित थे, समायोजित करने के लिए डिमोशन किया जा रहा है. उन्होंने कहा, 'ये डिमोशन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कई अंतरिम आदेश दिए थे. फिर भी, सरकार ने हर बार आरक्षण के आधार पर प्रमोशन करने के लिए इस तर्क का सहारा लिया कि सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम आदेश आना बाकी है.'

यह बताते हुए कि प्रोमोशन में रिजर्वेशन की सीमा अनुसूचित जाति के लिए 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति के लिए 3 प्रतिशत की सीमा है, नागराज ने कहा, 'संविधान में ईसाई या मुसलमान या अन्य समुदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए कोई प्रावधान नहीं है.'

आरक्षण सही तरीके से लागू हुआ?

बेंगलुरू विकास प्राधिकरण (बीडीए) में काम करने वाले अभियंता पवित्रा ने राज्य में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कर्मचारियों को पदोन्नति के लिए वरिष्ठता में रियायत देने के नियम को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. पवित्रा के पक्ष में आए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के कारण, कई अधिकारियों लगता है कि यह सरकार की गलती है कि उसने आरक्षण अधिनियम (रिजर्वेशन एक्ट) को सही ढंग से क्रियान्वित नहीं किया और यह आदेश त्रुटिपूर्ण सूचनाओं और तथ्यों पर आधारित है.

थिप्पेस्वामी एसी सूचना विभाग में डिप्टी डायरेक्टर थे. अब उन्हें अधीक्षक पद के लिए डिमोट कर दिया गया है. वे सवाल करते है कि रिजर्वेशन एक्ट के अनुसार सरकार के पास रोस्टर सिस्टम है. ये बताता है कि एससी को 15 फीसदी और एसटी को 3 फीसदी आरक्षण दिया जाना चाहिए. क्या आपको लगता है कि सरकार इस प्रणाली का पालन कर रही है?

मोहन राज का मानना है कि पिछले पचास वर्षों में आरक्षण को सही तरीके से लागू नहीं किया गया है. इस वजह से एससी/एसटी समुदाय समाज की मुख्यधारा से अलग-थलग हैं. उन्होंने इस स्थिति का सही रिकॉर्ड न रखने के लिए सरकार की उदासीनता को दोषी ठहराया. उन्होंने कहा, 'राजस्व विभाग और कृषि विभाग जैसे कई विभाग आरक्षण कोटा को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं. न केवल एससी/एसटी समुदायों के लोगों को, बल्कि अन्य को भी समयबद्ध प्रमोशन नहीं मिल सका. उन्होंने कहा कि वरिष्ठता सूची और प्रोमोशन साइकल के उचित रखरखाव न होने से सामान्य श्रेणी के कर्मचारियों के मन में ये भावना घर कर गई कि सरकारी कार्यालयों में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के लोगों की संख्या अधिक है. वे कहते है, 'कई फाइलों को ठीक से नहीं रखा गया है और गृह सचिव ने इस मुद्दे पर कोई जिम्मेदारी नहीं ली है.'

सामाजिक अपमान?

डिमोट किए गए कई कर्मचारी जबरदस्त मानसिक दबाव से गुजर रहे हैं और कुछ ने इस्तीफे की पेशकश भी की है. जगदीश ने बताया कि डिमोशन के अपमान से उनके एक सहयोगी को कार्डियक अरेस्ट (हृदयगति थमना) तक हुआ.

उन्होंने बताया कि 'मेरे सहयोगी, लिंगराजू को ग्रेड 2 सहायक अभियंता के रूप में डिमोट कर दिया गया और वे इस दर्द को सह नहीं पाए. उन्हें दिल का दौरा आया और उनका निधन हो गया. लिंगराजू के करीबी दोस्त मल्लिकार्जुन ने बताया कि 27 अप्रैल को लिंगराजू के डिमोशन की खबर आई. 28 अप्रैल को उन्हें इस बारे में सूचित किया गया. वे डिमोट होने की बजाय रिटायर होना चाहते थे, लेकिन उनके वरिष्ठ अधिकारी श्री जगदीश ने उनसे जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाने के लिए कहा. लेकिन, लिंगराजू इस अपमान को सह नहीं सके और 29 अप्रैल को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया.'

उन्होंने आगे कहा, 'एससी/एसटी समुदाय सरकार से निराश हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के मुख्य सचिव रत्ना प्रभा से एक रिपोर्ट जमा करने के लिए कहा था. ये रिपोर्ट इस तथ्य पर बनाना था कि क्या आरक्षण के कारण सरकारी कार्यालयों में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है या पदोन्नति में आरक्षण अप्रभावी हो गया है. रिपोर्ट से पता चलता है कि एससी/एसटी समुदाय को कर्नाटक स्टेट सिविल सर्विसेज एक्ट के अनुसार उचित आरक्षण नहीं दिया जा रहा है.'

उम्मीद बाकी है

थिप्पेस्वामी बताते है, '19 साल की सेवा के बाद मुझे 1 जुलाई, 2013 को अनारक्षित श्रेणी के तहत सहायक प्रशासनिक अधिकारी (एएओ) के रूप में पदोन्नत किया गया. मैं प्रशासनिक अधिकारी बनने के योग्य था. लेकिन 16 अप्रैल, 2018 को मुझे अधीक्षक पद पर डिमोट कर दिया गया. मैं अपने कार्यालय का सबसे अनुभवी व्यक्ति हूं, फिर भी मुझे सही पदोन्नति नहीं दी गई है. अब मैं काम नहीं करने जा रहा हूं और 23 मई तक छुट्टी पर हूं.'

वे कहते हैं, 'आरक्षण के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा एक अध्यादेश लाया गया था और यदि राष्ट्रपति इसे मंजूरी देते हैं, तभी कुछ संभव है. इस आदेश की वजह से 22,000 से ज्यादा लोग पीड़ित हैं. यह हमारे लिए उम्रकैद की सजा की तरह है. एससी/एसटी समुदायों के लोग अब एकजुट हो रहे हैं. हम अपने अधिकार के लिए लड़ेंगे.'

मुख्य सचिव रत्ना प्रभा ने कहा कि 9 मई को होने सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई के बाद सरकार उन अधिकारियों का ब्योरा जारी करेगी, जिन्हें डिमोट किया गया है.

(लेखक बेंगलुरु स्थित मीडिया स्टार्टअप 'द न्यूजकार्ट' के सदस्य हैं.)

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