कानपुर से 60 किलोमीटर दूर पुखरायां में इंदौर-पटना एक्सप्रेस के 14 डिब्बे पटरी से उतरने से 116 लोगों की मौत हो गई और लगभग 200 से अधिक लोग घायल हो गए. रेलवे की शुरुआती जांच में पाया गया कि यह भीषण दुर्घटना पटरी में फ्रेक्चर होने के कारण हुई है. यह आशंका भी प्रकट की गई है कि किसी कोच के चलने में असामान्य आवाज आ रही थी और इस असामान्य स्थिति का अहसास ट्रेन के ड्राइवर को भी हुआ था.
इस बात को भी खारिज करना जरूरी है कि क्या किसी ने तोड़फोड़ की कोशिश तो नहीं की? जांच के बाद ही वास्तविक कारण का पता चलेगा. एक बात स्पष्ट है कि इस रेल लाइन पर पिछले कई सालों से यातायात का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा था पर जरूरत के अनुसार सिंगल लाइन को डबल लाइन करने के 5 साल पुराने प्रस्ताव पर केन्द्र सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया.
पिछले कई दशकों से रेल मंत्रालय का इस्तेमाल वोट पाने की राजनीति के लिए किया गया है. रेलवे के आधुनिकीकरण के लिए धन उपलब्ध कराने की बजाय जोर इस बात पर रहा कि नेताओं के दबाव में आकर नई गाड़ियां चलाई जाए. कई रेल मार्गों की स्थिति यह है कि उन पर क्षमता से कई गुना अधिक ट्रैफिक चल रहा है.
कुछ माह पूर्व मोदी सरकार ने यह स्वागतयोग्य निर्णय लिया कि रेल बजट को आम बजट का हिस्सा बना दिया जाए. रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पिछले बजट में किसी भी नई ट्रेन की घोषणा न करके रेलवे को राजनीति के दुष्प्रभाव से बचाने का सराहनीय प्रयास किया. पिछले कई दशकों के दौरान रेलवे में समुचित निवेश न होने का नतीजा है कि रेलवे इंफ्रास्ट्रक्चर में कई स्तरों पर दरारें आ रही हैं. कई रेल पुल ऐसे हैं जो अपनी उम्र पूरी कर चुके हैं, लेकिन अभी भी उपयोग में हैं.
वर्ष 2009 व 2014 के बीच हुई रेल दुघर्टनाओं के कारणों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि दुघर्टनाओं का 86 प्रतिशत कारण मानवीय भूल रही है. 80 प्रतिशत रेल दुघर्टनाएं ट्रेन के पटरी से उतरने व रेलवे क्रासिंग पर हुई हैं. पुखरायां की दुघर्टना में भी मानवीय भूल एक कारण हो सकती है. जब किसी डिब्बे से असामान्य आवाज आ रही थी, तो तुरंत ट्रेन रोककर जांच क्यों नहीं करवाई गई? यदि पटरी फ्रेक्चर हुई है, तब भी ट्रेक का प्रबंधन करनेवाले सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.
पुखरायां में हादसे की जगह पर रेल मंत्री सुरेश प्रभु (फोटो: पीटीआई)
रेलवे में आधुनिककीकरण की प्रक्रिया चल रही है, पर उसी अनुपात में मानव संसाधनों के प्रशिक्षण का काम नहीं हो रहा है. यदि हम मानव संसाधनों के प्रशिक्षण पर उचित ध्यान दें तो रेल दुघर्टनाओं में बड़े पैमाने पर कमी ला सकते हैं.
2009 से 2014 के दौरान औसतन प्रतिवर्ष 130 लोग रेलवे से जुड़ी दुघर्टनाओं में मारे गए हैं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलना के हिसाब से भारतीय रेलवे में होनेवाली दुघर्टनाएं अधिक नहीं है, लेकिन निवेश में बढ़ोतरी व प्रशिक्षण के माध्यम से इस रिकॉर्ड को बेहतर बनाया जा सकता है. आंकड़े बताते हैं कि भारत में आज भी सड़क यात्रा से रेल यात्रा अधिक सुरक्षित है.
जापान में चलनेवाली बुलेट ट्रेन ने 50 साल पूरे कर लिए हैं, जो 300 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ती हैं. उल्लेखनीय बात यह है कि इन 50 सालों में एक भी व्यक्ति ट्रेन दुघर्टना में मौत का शिकार तो दूर घायल तक नहीं हुआ है. हमें दुनिया से अभी भी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.
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