live
S M L

राफेल डील: जिस सरकार ने भी जेपीसी जांच को मंजूरी दी वो सत्ता में वापसी नहीं कर पाई

जेपीसी का इतिहास बताता है कि हर बार जेपीसी की निष्पक्ष जांच पर सवाल खड़े किए गए, हर बार रिपोर्ट को खारिज किया गया...

Updated On: Jan 04, 2019 05:19 PM IST

Vivek Anand Vivek Anand
सीनियर न्यूज एडिटर, फ़र्स्टपोस्ट हिंदी

0
राफेल डील: जिस सरकार ने भी जेपीसी जांच को मंजूरी दी वो सत्ता में वापसी नहीं कर पाई

शुक्रवार को लोकसभा में राफेल मुद्दे पर फिर हंगामेदार बहस हुई. लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने एकबार फिर इस डील की जांच के लिए जेपीसी के गठन की मांग की. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में गलत एफिडेविट दाखिल कर कोर्ट और देश की जनता के साथ धोखा दिया है. इसलिए वो जेपीसी की मांग कर रहे हैं. कांग्रेस जेपीसी की मांग पर अड़ी है और सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देकर जांच की मांग को मानने से इनकार कर रही है.

सवाल है कि जेपीसी की मांग पर अड़े रहने के पीछे क्या वजह है, सरकार इस मांग को मानने से क्यों बच रही है और क्या जेपीसी जांच के बाद इस डील की सच्चाई सामने आ जाएगी? इन सवालों के जवाब पाने के लिए जेपीसी के अब तक के इतिहास को देखना होगा.

जेपीसी का इतिहास खंगालने पर कुछ दिलचस्प तथ्य पता चलते हैं. मोदी सरकार से पहले अब तक छह बार जेपीसी का गठन हो चुका है. हर जेपीसी के बाद हुए अगले चुनाव में सरकार वापसी नहीं कर पाई. जिस सरकार ने भी जेपीसी की मांग मानी उसे सत्ता खोनी पड़ी. बोफोर्स तोप सौदे पर गठित पहली जेपीसी के बाद ये सिलसिला अब तक बरकरार है.

मोदी सरकार से पहले अब तक गठित 6 जेपीसी के नतीजे

1987 में बोफोर्स कांड पर पहली जेपीसी

अगस्त 1987 में बोफोर्स तोप सौदे में दलाली के आरोपों की जांच के लिए पहली बार जेपीसी का गठन हुआ. राजीव गांधी सरकार में रक्षा मंत्री केसी पंत ने लोकसभा में 6 अगस्त 1987 को जेपीसी का प्रस्ताव दिया. एक हफ्ते बाद 12 अगस्त को राज्यसभा ने भी इस पर मुहर लगाई. जिसके बाद सरकार ने कांग्रेस नेता बी शंकरानंद के चेयरमैनशिप में जेपीसी गठित कर दी.

इस कमिटी में लोकसभा के 20 और राज्यसभा के 10 मिलाकर कुल 30 सांसद थे. कमिटी ने 50 बैठकों में अपनी जांच पूरी की और 26 अप्रैल 1988 को अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी. जेपीसी ने अपने रिपोर्ट में कांग्रेस की सरकार को क्लीन चिट दे दी. कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि 155 एमएम के 400 तोपों की खरीद के लिए हुई 1700 करोड़ की डील में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है.

ये भी पढ़ें: आप के साथ गठबंधन की जमीन तैयार कर रही है कांग्रेस, इसलिए माकन ने की 'बगावत'

बोफोर्स जांच पर गठित जेपीसी ने कांग्रेस सरकार को दलाली के सारे आरोपों से बरी कर दिया. ये कांग्रेस सरकार के लिए राहत की बात थी. हालांकि विपक्ष ने जेपीसी की रिपोर्ट को खारिज कर दिया. जेपीसी में शामिल ज्यादातर सांसद कांग्रेस के थे. इसी सवाल को उठाते हुए विपक्ष ने संसद में इस जांच रिपोर्ट के नतीजों को मानने से इनकार कर दिया.

BoforsHowitzerGun

1992 में हर्षद मेहता के शेयर मार्केट घोटाले पर दूसरी जेपीसी

नब्बे के दशक में हुए शेयर मार्केट घोटाले ने पूरे देश में सनसनी मचा दी थी. संसद में इस घोटाले को लेकर खूब शोर शराबा हुआ था. इस घोटाले के मास्टरमाइंड हर्षद मेहता के कारनामों के छींटे तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर भी पड़े. हर्षद मेहता ने ये कहकर सनसनी मचा दी थी कि मामले से बच निकले के लिए उसने तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव को पार्टी फंड के नाम पर एक करोड़ रुपए की घूस दी थी.

हर्षद मेहता के स्टॉक मार्केट स्कैम के लिए दूसरी बार जेपीसी गठित की गई. तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने अगस्त 1992 में जेपीसी गठित की थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनिवास मिर्धा को जेपीसी का चेयरमैन बनाया गया. 6 अगस्त 1992 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार के संसदीय कार्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने लोकसभा में जेपीसी को लेकर प्रस्ताव रखा था. इसके अगले दिन राज्यसभा ने भी इस प्रस्ताव पर मुहर लगा दी.

हर्षद मेहता ने किन लोगों की मदद से शेयर मार्केट से लेकर बैंकिंग ट्रांजेक्शन में हेरफेर की, इसकी जांच जेपीसी को करनी थी. हालांकि जेपीसी की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया गया. इस मामले में जेपीसी के दिए प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव को देश को नब्बे के दशक के आर्थिक संकट से निकालने का श्रेय दिया गया तो उनके हिस्से शेयर मार्केट घोटाले की बदनामी भी आई. 96 में हुए अगले लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने कांग्रेस सरकार को नकार दिया. ये कहा जा सकता है कि जेपीसी ने एक और सरकार की बलि ले ली.

2001 के केतन पारेख शेयर मार्केट घोटाले पर तीसरी जेपीसी

अप्रैल 2001 के केतन पारेख शेयर मार्केट घोटाले में तीसरी जेपीसी का गठन हुआ था. तत्कालीन वाजपेयी सरकार में संसदीय कार्यमंत्री रहे प्रमोद महाजन ने 26 अप्रैल 2001 को लोकसभा में जेपीसी का प्रस्ताव दिया था. बीजेपी के सीनियर लीडर प्रकाश मणि त्रिपाठी को जेपीसी का चेयरमैन नियुक्त किया था.

शेयर मार्केट में हुए घोटाले की जांच के लिए 105 बार कमिटी की बैठक हुई. जेपीसी ने 19 दिसंबर 2002 को अपनी रिपोर्ट सौंपी. जेपीसी ने शेयर मार्केट के नियम कायदों में बदलाव के कई प्रस्ताव दिए. हालांकि बाद में जेपीसी के कई प्रस्तावों में बदलाव करके नरम कर दिए गए.

2003 में सॉफ्ट ड्रिंक्स में पेस्टिसाइड्स को लेकर चौथी जेपीसी

2003 की वाजपेयी सरकार में ही सॉफ्ट ड्रिंक्स में पेस्टिसाइड्स मिले होने पर जेपीसी का गठन हुआ था. उस वक्त पहली बार खुलासा हुआ था कि सॉफ्ट ड्रिंक्स, फ्रूट जूस और दूसरे पेय पदार्थों में पेस्टिसाइड्स मिलाए जा रहे हैं, जो सेहत के लिए बेहद खतरनाक हैं. पेय पदार्थों के स्टैंडर्ड तय करने के लिए अगस्त 2003 में सरकार ने जेपीसी गठित की.

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया. कमिटी ने इस मामले में 17 बैठकें कीं. 4 फरवरी 2004 को इसने अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपी. जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में माना कि पेय पदार्थों में तय मात्रा से ज्यादा पेस्टिसाइड्स मिलाए जा रहे हैं और इस बारे में कुछ सख्त प्रस्ताव दिए. संसद के साथ सरकार भी इन्हें मानने पर राजी हो गई. इनमें से एक था- ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड में किसी प्रख्यात वैज्ञानिक को शामिल करना. हालांकि उस वक्त सुझाए गए जेपीसी के प्रस्ताव आज तक लागू नहीं हुए हैं.

वाजपेयी सरकार में दो बार जेपीसी का गठन हुआ. बीजेपी की सरकार के लिए भी जेपीसी पनौती ही साबित हुई. इंडिया शाइनिंग के नारे के साथ हुए 2004 के चुनाव में बीजेपी की सरकार वापसी नहीं कर पाई. देश में यूपीए शासन का दौर शुरू हुआ.

AtalBihariVajpayee

2011 के 2जी स्पेक्ट्रम केस में पांचवी जेपीसी

यूपीए-2 के दौर में मनमोहन सिंह सरकार पर घोटाले के आरोपों की भरमार थी. इन्हीं में से एक था- 2जी स्पैक्ट्रम आवंटन का मामला. सीएजी की रिपोर्ट में बताया गया था कि गलत तरीके से 2जी आवंटित किए जाने की वजह से सरकार को डेढ़ लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा का चूना लगा. सीएजी की रिपोर्ट पर मनमोहन सरकार को विपक्ष ने जबरदस्त राजनीतिक हमले किए. फरवरी 2011 में मनमोहन सरकार ने इस मामले में पांचवी जेपीसी गठित की.

कांग्रेस के सीनियर लीडर पीसी चाको को कमिटी का चेयरमैन बनाया गया. 30 सदस्यीस इस कमिटी में 15 सदस्य कांग्रेस के और 15 बीजेपी, जेडीयू, सीपीआई, सीपीएम, बीजेडी, टीएमसी, एआईएडीएमके और डीएमके जैसी पार्टियों के सांसदों को शामिल किया गया. जेपीसी में शामिल विपक्षी पार्टी के सांसदों ने पीसी चाको पर पक्षपात करने के आरोप लगाए. जेपीसी की ड्राफ्ट रिपोर्ट में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम को सभी आरोपों में क्लीन चिट दे दी गई थी.

जेपीसी के कई सदस्यों ने इसके विरोधस्वरूप लोकसभा स्पीकर को मेमोरेंडम देकर पीसी चाको को जेपीसी से हटाए जाने की मांग कर दी. जेपीसी ने असहमति के 6 अहम नोट्स के साथ अपनी रिपोर्ट लोकसभा स्पीकर को सौंपी. इसमें स्पेक्ट्रम आवंटन में गड़बड़ी के आरोपों से तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और वित्तमंत्री पी चिदंबरम को बरी किया गया था. रिपोर्ट में गड़बड़ियों के लिए टेलीकॉम मिनिस्टर रहे ए राजा को जिम्मेदार ठहराया गया. जेपीसी ने सीएजी के 2जी आवंटन में हुए 1.76 लाख करोड़ के नुकसान के आंकड़ों को काल्पनिक माना. विपक्ष ने जेपीसी रिपोर्ट को लेकर हंगामा किया और इसे मानने से इनकार कर दिया.

2013 के वीवीआईपी चॉपर घोटाले पर छठी जेपीसी

2013 में वीवीआईपी चॉपर के लिए अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के साथ हुई डील में घोटाले की खबरों ने मनमोहन सिंह सरकार पर एक और दाग लगा दिया. आरोप लगे कि 3600 करोड़ रुपए के 12 हेलीकॉप्टर्स की खरीद में 362 करोड़ रुपए की घूस दी गई. संसद में इस डील को लेकर खूब हंगामा मचा. जिसके बाद 27 फरवरी 2013 को तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री कमल नाथ ने इस मामले में जेपीसी गठन की घोषणा की. 30 सदस्यों वाली जेपीसी की पहली बैठक के तीन महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा गया.

विपक्ष इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश में जांच करवाए जाने की मांग कर रहा था. उस वक्त राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे अरुण जेटली ने भी घोटाले की जांच के लिए बनी जेपीसी का विरोध किया था. उन्होंने कहा कि सरकार ने सिर्फ इस मुद्दे को भटकाने के लिए जेपीसी गठित की है और इससे कुछ हासिल नहीं होगा.

Agusta westland Helicopter

प्रतीकात्मक

मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल यानी यूपीए-2 में दो बार जेपीसी गठित की गई. एक के बाद एक कई घोटालों के दाग और दो बार बनी जेपीसी की पनौती ने कांग्रेस की लुटिया डुबो दी. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर में चली गई.

ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी का गठन इसलिए होता है कि किसी मामले में लगे आरोप पर कमिटी निष्पक्ष रूप से जांच करे. इसलिए ऐसी कमिटी में सत्ताधारी दल के साथ विपक्ष के सांसदों को शामिल किया जाता है. लेकिन जेपीसी का इतिहास बताता है कि हर बार जेपीसी की निष्पक्ष जांच पर सवाल खड़े किए गए, हर बार रिपोर्ट को खारिज किया गया और हर बार जेपीसी गठन के बाद हुए चुनाव में सत्ताधारी पार्टी वापसी नहीं कर पाई.

एक तथ्य ये भी है कि अब तक केंद्र सरकार राफेल डील पर घोटाले के आरोप को मनगढंत बताती आई है. अगर वो जेपीसी जांच की मांग मान लेती है तो जांच रिपोर्ट में चाहे जो निकले, ये विपक्ष के आरोप को मजबूती प्रदान करेगा और अब तक घोटाले से बेदाग रहने का मोदी सरकार का दावा कमजोर पड़ जाएगा.

ये भी पढ़ें: राफेल डील: क्या बोफोर्स मामले में कांग्रेस का हश्र देखकर मोदी सरकार JPC जांच से बच रही है?

0

अन्य बड़ी खबरें

वीडियो
KUMBH: IT's MORE THAN A MELA

क्रिकेट स्कोर्स और भी

Firstpost Hindi