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जिन्ना की इस तस्वीर पर मचे बवाल के पीछे की हकीकत क्या है?

जिन्ना सिर्फ एक तस्वीर नहीं हैं, मज़हब के नाम पर देश विभाजित करने वाले हैं. उनकी तस्वीर देश के किसी शैक्षणिक संस्था में क्यों होनी चाहिए, क्या इसका जवाब है आपके पास?

Updated On: May 04, 2018 11:11 AM IST

Nazim Naqvi

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जिन्ना की इस तस्वीर पर मचे बवाल के पीछे की हकीकत क्या है?

तर्क आप चाहे जितने दे दीजिए, उनसे क्या होगा? विवाद को कैसे रोक पायेंगे. मेरे पत्रकार मित्र ने कहा तो सवाल कौंधा, विवाद है क्या? जवाब मिला, विवाद है जिन्ना की तस्वीर पर, जो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के यूनियन-हाल में लगी है.

विवाद की शुरुआत होती है अलीगढ़ से बीजेपी के सांसद सतीश कुमार गौतम की ओर से वाइस-चांसलर को लिखे गए एक पत्र से. सांसद लिखते हैं कि उन्हें पता चला है कि यूनिवर्सिटी के यूनियन-हाल में जिन्ना की तस्वीर लगी है और ये कैसे हो सकता है कि जिसने विभाजन कराया, उसकी तस्वीर यूनिवर्सिटी लगाए. इसे लेकर हिंदूवादी संगठनों ने विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया. जिन्ना का पुतला फूंका गया. छात्र-संघ के सदस्यों और हिंदू-संगठन के सदस्यों में झड़पें हुईं. कुल मिलाकर देखते ही देखते अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी का इलाका छावनी में तब्दील हो गया. यह आयोजन 2 अप्रैल को ही क्यों हुआ यह भी दिलचस्प है लेकिन उस पक्ष पर बाद में आते हैं.

पहले तो यह कि कैसे इस देश में कोई विषय अचानक अहम हो जाता है इस पर लोगों को शोध करना चाहिए. जो तस्वीर सन 1938 से लगी है. यानी गुलाम भारत में कांग्रेस और मुस्लिम-लीग में जो रस्साकशी (1936) शुरू हुई थी उसके दो साल बाद से वह यहां की दीवार पर टंगी है. उस पर पिछले 90 वर्षों में कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई गई. लेकिन इस तर्क पर भी इस विवाद को समझा नहीं जा सकता.

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जरा सोचिए, तस्वीर टांगने के एक दशक बाद देश को आजादी मिली. असली चेहरा पाकिस्तान लेकर अलग हो गया, वहां का गवर्नर-जनरल बन गया, लेकिन फिर भी उसकी तस्वीर यूनियन-हाल के ऊपरी हिस्से में टंगी रही. वैसे हम अपने पाठकों को ये बताते चलें कि यह अकेली तस्वीर नहीं है. छात्रसंघ के अध्यक्ष मशकूर अहमद कहते हैं की युनिवर्सिटी अब तक 100 लोगों को छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दे चुका है और इसके पहले सदस्य महात्मा गांधी से लेकर दर्जनों चेहरे इस हाल की दीवार का हिस्सा हैं.

महात्मा गांधी के साथ मुहम्मद अली जिन्ना

महात्मा गांधी के साथ मुहम्मद अली जिन्ना

'जिन्ना विभाजन के जिम्मेदार, उनकी तस्वीर क्यों?'

शिक्षाविद् और सियासतदां आरिफ मोहम्मद खान जो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व-अध्यक्ष रह चुके हैं, दो-टूक कहते हैं, ‘पहली बात तो ये है कि तस्वीर क्यों होनी चाहिए? और अगर आप मुझसे पूछ रहे हैं तो मैं तो कहूंगा कि दस बड़े-बड़े आदम-कद, कट-आउट लगवा देने चाहिए और कहना चाहिए कि अगर इस आदमी से कोई सबक हासिल कर सकते हों तो कर लो. इस शख्स ने इस मुल्क में जो बर्बादी की है... अगर विभाजन नहीं होता तो कितनी मुसीबतों से बचा जा सकता था. यही वो चेहरा है जो विभाजन का जिम्मेदार है’. आखिर आरिफ की इस दलील से कोई कैसे इंकार कर सकता है.

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लेकिन जैसा कि अक्सर होता है, हर विरोध प्रदर्शन सियासी होता है. अभी कोई एक हफ्ता पहले एक आरएसएस कार्यकर्त्ता ‘आमिर रशीद’ ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर तारिक मंसूर को एक चिट्ठी लिखकर यूनिवर्सिटी प्रांगण में संघ की शाखा लगाये जाने की अनुमति मांगी थी. चिट्ठी में कहा गया है कि ‘हम चाहते हैं कि मुस्लिम युवाओं के मन में संघ के प्रति बैठी भ्रांतियों को दूर किया जाए. इसकी बहुत जरुरत है कि विद्यार्थियों को संघ की विचारधारा पता चले.'

हामिद अंसारी का संबोधन बना वजह?

हिंदू-संगठनों द्वारा जिन्ना के चित्र को लेकर 2 अप्रैल को इसलिए चुना गया क्योंकि उसी दिन पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी को अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में ‘बहुलतावाद’ के विषय पर एक सभा को संबोधित करना था. और उन्हें भी विश्वविद्यालय आजीवन सदस्यता देना चाहता था. ये वही हामिद अंसारी हैं जिनका दावा है कि दस साल उप-राष्ट्रपति रहते हुए उन्होंने कभी सियासत नहीं की. लेकिन पद छोड़ने से कुछ देर पहले ऐसी सियासत कर गए कि सत्ता-दल को बगलें झांकने पर मजबूर कर दिया.

अंसारी के कार्यकाल के अंतिम दो-वर्ष बीजेपी शासन में बीते, और उनकी तरफ से कभी कोई ऐसी टिप्पणी नहीं आई, जिससे लगता कि वह असहज महसूस कर रहे हैं. रिटायर होने से कुछ घंटे पहले ये कहकर चलते बने कि ‘वर्तमान में देश के अल्पसंख्यक बहुत असहज महसूस कर रहे हैं.’

India's Vice President Shri Mohammad Hamid Ansari listens as he meets with Chinese President Xi Jinping at the Great Hall of the People in Beijing

यही है सियासत

अब जिस बहुलवाद पर अंसारी साहब बोलने गए थे उस बहुलवाद के सबसे बड़े दुश्मन के चित्र पर राज्य की सत्ता पार्टी ने या उसके समर्थकों ने विरोध करके उनकी जैसी टाइमिंग का इस्तेमाल करते हुए उन्हें परास्त करने की कोशिश की और कामयाब भी हुए. हामिद अंसारी को बिना अपना भाषण दिए बैरंग लौटना पड़ा. दरअसल हामिद अंसारी की इस अलीगढ़ यात्रा ने ही एक तरह से इस विवाद में उत्प्रेरक का काम किया है. राज्य में बीजेपी का शासन हो और उसके खिलाफ बोलने वाले का सम्मान उसी राज्य में किया जाए, सियासत अब इस रूप में कहां होती है?

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तो कुलमिलाकर इस तस्वीर के पीछे, एक तो हामिद अंसारी का चेहरा है जो बीजेपी को नापसंद है. दूसरी तरफ इस विवाद को इस चश्मे से भी देखने की कोशिश हो रही है कि एनडीए अपनी अंतिम और चुनावी वर्ष में ध्रुवीकरण के अपने सबसे विश्वस्त अस्त्र का भरपूर इस्तेमाल करेगी.

और एक नजरिया यह भी है जिसे अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी के छात्रों को और इस विवाद में उनके समर्थन में खड़े स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे नेताओं को यह भी सोचना चाहिए कि वह इस विरोध का विरोध क्यों कर रहे हैं. जिन्ना सिर्फ एक नाम नहीं हैं, वह एक ऐसा नाम हैं कि जो इसे जुबान पर लाया, अाडवाणी बन गया, जसवंत सिंह हो गया. जिन्ना सिर्फ एक तस्वीर नहीं हैं, मज़हब के नाम पर देश विभाजित करने वाले हैं. उनकी तस्वीर देश के किसी शैक्षणिक संस्था में क्यों होनी चाहिए, क्या इसका जवाब है आपके पास?

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