नई शिक्षा नीति की मसौदा रिपोर्ट की सिफारिशों के अनुसार देश भर में कक्षा 8 तक हिंदी को अनिवार्य करने के साथ तीन-भाषा के फार्मूले का पालन करें, विज्ञान और गणित के लिए एक समान पाठ्यक्रम सुनिश्चित करें, आदिवासी बोलियों के लिए देवनागरी में एक स्क्रिप्ट विकसित करें, और हुनर (कौशल) के आधार पर शिक्षा को बढ़ावा देने जैसी बातों से मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने साफ इनकार किया है. उन्होंने कहा- नई शिक्षा नीति संबंधी समिति ने अपनी मसौदा रिपोर्ट में किसी भी भाषा को अनिवार्य बनाने की सिफारिश नहीं की है. मीडिया के एक वर्ग में भ्रामक रिपोर्ट के मद्देनजर यह स्पष्टीकरण आवश्यक है.
The Committee on New Education Policy in its draft report has not recommended making any language compulsory. This clarification is necessitated in the wake of mischievous and misleading report in a section of the media.@narendramodi @PMOIndia
— Prakash Javadekar (@PrakashJavdekar) January 10, 2019
नीति के लिए अगला कदम तय करना बाकी
इससे पहले कहा गया था कि ये नई शिक्षा नीति (NEP) पर 9 सदस्यीय के कस्तूरीरंगन समिति द्वारा तैयार की गई मसौदा रिपोर्ट में कुछ प्रमुख सिफारिशें हैं, जिनका उद्देश्य भारत-केंद्रित और वैज्ञानिक प्रणाली को लागू कर स्कबल में बच्चों को सीखाना है. सूत्रों से मिली जानकारी के समिति ने 31 दिसंबर 2018 को अपना कार्यकाल समाप्त होने से पहले पिछले महीने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. समिति के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा- हमने औपचारिक रूप से रिपोर्ट सौंपने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्री के साथ एक बैठक की मांग की है.
सामाजिक विज्ञान में विषयों को स्थानीय सामग्री की आवश्यकता होती है
द इंडियन एक्सप्रेस के मुातबिक, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था- समिति की रिपोर्ट तैयार है और सदस्यों ने नियुक्ति की मांग की है. मुझे संसद सत्र के बाद रिपोर्ट मिल जाएगी. सूत्रों ने कहा कि सरकार को नीति के लिए अगला कदम तय करना बाकी है जिसमें इसे आगे के सुझावों और प्रतिक्रिया के लिए सार्वजनिक डोमेन में रखना शामिल है. सूत्रों ने कहा था- सामाजिक विज्ञान के तहत विषयों को स्थानीय सामग्री की आवश्यकता होती है, लेकिन कक्षा 12 तक के विभिन्न राज्य बोर्डों में विज्ञान और गणित के विभिन्न पाठ्यक्रम के लिए कोई तर्क नहीं है. किसी भी भाषा में विज्ञान और गणित पढ़ाया जा सकता है, लेकिन सभी राज्यों में पाठ्यक्रम समान होना चाहिए.
हमें भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली की जरूरत है
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक प्रस्तावित एनईपी उन क्षेत्रों में, जहां वे बोली जाती हैं, अवधी, भोजपुरी, मैथिली आदि स्थानीय भाषाओं में कक्षा 5 तक के पाठ्यक्रम को विकसित करने की वकालत करते हैं. इसके अलावा, कई जनजातीय बोलियां हैं, जिनमें या तो कोई स्क्रिप्ट नहीं है या मिशनरियों के प्रभाव के कारण रोमन लिपि में लिखी गई हैं. एनईपी का कहना है कि इन बोलियों के लिए देवनागरी को एक लिपि के रूप में विकसित किया जाएगा. सूत्रों का कहना है कि हमें भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली की जरूरत है. एनईपी के मसौदे से यह भी पता चला है कि कक्षा 8 तक देश भर में हिंदी अनिवार्य किए जाने की सिफारिश करते हुए तीन-भाषा के फॉर्मूले का सख्त कार्यान्वयन का सुझाव दिया गया है. वर्तमान में कई गैर-हिंदी भाषी राज्यों के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य नहीं है, जैसे कि तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गोवा, पश्चिम बंगाल और असम.
समिति द्वारा की गई अन्य सिफारिशे इस प्रकार हैं:
शिक्षा पर स्थायी उच्च-शक्ति समिति, प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नियमित अंतराल पर बैठक करना.
विनियामक तंत्र को मजबूत बनाना और गैर-नौकरशाहों का नेतृत्व जरूरी.
एससी-एसटी छात्रों के बीच तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों को बढ़ावा दिया जाना.
सूत्रों के मुताबिक, एनईपी का मसौदा 16 अगस्त 2018 को मैराथन चर्चा के बाद तैयार किया गया था. समिति ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) से प्राप्त सुझावों को शामिल करना सीखा है. सूत्रों के मुताबिक, पैनल ने प्रकाश जावड़ेकर और सात राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की है. सूत्रों ने कहा कि प्रस्तावित नीति पर 20 दिसंबर 2018 को दिल्ली में आरएसएस से जुड़े संगठनों की शिक्षा समोह (शिक्षा समूह) की एक बैठक के दौरान भी चर्चा की गई थी.
आखिरी एनईपी 1986 में लाया गया और 1992 में संशोधित किया गया था
पिछले अक्टूबर में अपने विजयादशमी के संबोधन में नीति का जिक्र करते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था- नई शिक्षा नीति के लागू होने के इंतजार में समय निकल रहा है. मार्च 2015 में आरएसएस अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) ने मातृ भाषा में प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव पारित किया था. बता दें कि आखिरी एनईपी 1986 में लाया गया था और 1992 में संशोधित किया गया था. एनईपी के आधार पर राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (एनसीएफ) 2005 में जारी की गई थी और 10 वर्षों के बाद संशोधित होने की उम्मीद थी. हालांकि एनडीए सरकार ने इसके बजाय एनईपी को अंतिम रूप देने का फैसला किया.
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