जम्मू-कश्मीर में आतंकियों ने एक बार फिर सेना के कैंप पर हमला किया. ये आतंकी हमला उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में स्थित सेना के एक कैंप पर हुआ.
कहा जा रहा है कि जैश-ए-मोहम्मद के संदिग्ध आतंकियों ने इस कैंप पर हमला किया, जिसमें सेना के एक कैप्टन समेत तीन जवान शहीद हो गए, जबकि पांच जवान जख्मी हो गए.
सेना की जवाबी कार्रवाई में दो आतंकवादी भी मारे गए. रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक आतंकियों ने कुपवाड़ा के पंजगाम स्थित सेना के कैंप पर सुबह चार बजे हमला किया. आशंका जताई जा रही है कि कुछ आतंकवादी, अंधेरे का फायदा उठाकर कैंप में छुपे हो सकते हैं. इनकी तलाश की जा रही है.
आतंकवादियों ने हमले के लिए यही वक्त क्यों चुना?
जानकार कहते हैं कि गर्मी बढ़ने के साथ ही सरहद पर बर्फ पिघल रही है. इसी वजह से कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं बढ़ रही हैं. आतंकियों ने हमले के लिए सुबह का वक्त इसलिए चुना क्योंकि उस वक्त निगरानी करने वाले सुरक्षाकर्मियों की शिफ्ट बदलती है.
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक चूक क्या है?
रक्षा विशेषज्ञ अनिल गुप्ता कहते हैं कि हमें अपनी सुरक्षा में नाकामी की पड़ताल करनी चाहिए. वो मानते हैं कि कश्मीर में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद सुरक्षाकर्मियों ने आतंकवादियों के खिलाफ कोई बड़ा ऑपरेशन नहीं चलाया है. इसकी सख्त जरूरत है.
डिफेंस एक्सपर्ट पी के सहगल मानते हैं कि आतंकियों को हर हमले के बदले दस से बीस गुना कीमत चुकानी पड़े तभी वो ऐसी हरकतों से बाज आएंगे. इसके लिए हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी.
रणनीति में बदलाव की जरूरत इसलिए भी है कि आतंकी हमले के बाद जब सुरक्षा बल जवाबी कार्रवाई शुरू करते हैं, तो स्थानीय लोग पत्थरबाजी शुरू कर देते हैं. कुपवाड़ा में हमले के बाद भी ऐसा ही हुआ.
जब सेना का एक काफिला, कुपवाड़ा की तरफ जा रहा था, तो रास्ते में करालपुरा नाम की जगह पर लोगों ने उस पर पत्थरबाजी शुरू कर दी. करालपुरा, सेना के उस कैंप से 6-7 किलोमीटर दूर है, जहां पर आतंकी हमला हुआ. साफ है कि आतंकवादी और पत्थरबाज आपसी तालमेल से काम कर रहे हैं.
भारत विरोधियों के नेटवर्क कैसे काम करते हैं?
खुफिया सूत्रों के मुताबिक इस वक्त कश्मीर में पत्थरबाजों के 300 व्हाट्सऐप ग्रुप सक्रिय हैं. हर ग्रुप में करीब 250 सदस्य बताए जाते हैं. फिलहाल तो जम्मू-कश्मीर सरकार ने राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी है. मगर पत्थरबाजी की घटनाएं फिर भी हो रही हैं.
पिछले कुछ समय के आंकड़े क्या कहते हैं?
पिछले कुछ महीनों के आंकड़ों पर नजर डालें तो कश्मीर के हालात बेहद डरावने लगते हैं. पिछले साल से कश्मीर में हिंसक वारदातों में तीन गुना इजाफा हुआ है.
राज्य की पुलिस के क्राइम ब्रांच के आंकड़े के मुताबिक कश्मीर में 2016 में बलवे की 3404 मामले दर्ज किए गए. वहीं आगजनी के 267 मामले सामने आए. इसी दौरान पत्थरबाजी की 2690 घटनाएं हुईं.
पत्थरबाजी की सबसे ज्यादा 1248 घटनाएं उत्तरी कश्मीर में हुईं. वहीं दक्षिण कश्मीर में 875 और मध्य कश्मीर में पत्थरबाजी के 567 मामले दर्ज किए गए.
जुलाई 2016 से अक्टूबर 2016 के बीच पत्थरबाजों और सुरक्षा बलों के बीच भिड़ंत में 19 हजार लोग घायल हुए जबकि 92 लोग मारे गए. इन घटनाओं में करीब चार हजार सुरक्षाकर्मी भी जख्मी हुए.
आंकड़े बताते हैं कि कश्मीर में पत्थरबाजी बाकायदा एक कारोबार के तौर पर कराई जा रही है.
पत्थरबाजों को किस हिसाब से पैसे मिलते हैं?
अच्छी कद-काठी वाले युवाओं को पत्थरबाजी के एवज में 7 से 7500 हजार रुपए तक हर महीने दिए जाते हैं. कई बार उन्हें कपड़े और जूते भी दिए जाते हैं. वहीं थोड़े कमजोर बच्चों को पत्थर फेंकने के बदले 5500-6000 रुपए महीने मिलते हैं.
बारह साल तक के बच्चों को पत्थर फेंकने के बदले 4 हजार रुपए हर महीने दिए जाते हैं. पत्थरबाजी की साजिश रचने वाले इंटरनेट की मदद से इन बच्चों को इकट्ठा करते हैं.
मौजूदा हालात का ज्यादा नुकसान भारत ने उठाया कि आतंकवादियों ने?
कश्मीर में बिगड़ते हालात का खामियाजा सुरक्षा बल उठा रहे हैं. इस साल के पहले दो महीनों में हमारे 26 जवान शहीद हो गए. जबकि सिर्फ 22 आतंकवादी मारे गए.
पिछले तीन सालों के आंकड़े पर गौर करें, तो 2013 में जहां 61 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे. वहीं 2014 में ये तादाद घटकर 51 रह गई. 2015 में इसमें और गिरावट आई और हमारे केवल 48 जवान शहीद हुए. वहीं 2016 में देश ने कश्मीर में 88 जवान गंवा दिए. यानी साल भर में इसमें 88 फीसद का इजाफा हुआ.
आतंकियों को हुए नुकसान की बात करें तो, 2013 में 100 आतंकी मारे गए थे. वहीं 2014 में 110, 2015 में 113 और पिछले साल 165 आतंकवादियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया.
हाल में कश्मीर में कितने आतंकवादी हमले हुए हैं?
हाल के कुछ आतंकवादी हमलों की बात करें तो 17 अगस्त 2016 को बारामुला में सेना के काफिले पर आतंकी हमला हुआ. इसमें सेना के दो जवान और एक पुलिस कर्मी शहीद हो गए.
18 सितंबर 2016 को उड़ी में सेना के कैंप पर आतंकी हमला हुआ, जिसमें सेना के 18 जवान शहीद हुए.
29 नवंबर 2016 को नगरोटा में सेना की पोस्ट पर हमला हुआ, जिसमें दो अफसर और 5 जवान मारे गए. सेना ने तीनों हमलावर आतंकियों को मार गिराया.
29 नवंबर 2016 को ही सांबा सेक्टर में बीएसएफ ने घुसपैठ कर रहे तीन आतंकवादियों को मार गिराया
17 दिसंबर 2016 को पंपोर इलाके में सेना के काफिले पर हुए हमले में तीन जवान शहीद हो गए थे
9 जनवरी 2017 को अखनूर में आतंकियों ने जनरल रिजर्व इंजीनियरिंग फोर्स के कैंप पर हमला किया, जिसमें हमारे तीन जवान मारे गए.
12 फरवरी 2017 को कुलगाम में आतंकियों से मुठभेड़ में दो सैनिक शहीद हो गए. इस मुठभेड़ में चार आतंकवादी और दो नागरिक भी मारे गए थे.
14 फरवरी 2017 को बांदीपुरा और हंदवाड़ा में हुई मुठभेड़ों में चार सैनिक शहीद हुए थे. जबकि चार आतंकवादी भी मारे गए.
ये आंकड़े बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर में अब देश को रणनीति बदलने की जरूरत है. आतंकवादी और पत्थरबाज मिलकर, सुरक्षा बलों के लिए घातक साबित हो रहे हैं.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
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