आर्टिकल 35ए के मुद्दे को लेकर जम्मू-कश्मीर की सियासत में उबाल आ गया है. दिल्ली के एनजीओ 'वी द सिटीजन' के इसे लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 27 अगस्त तक के लिए टल गई है. इस याचिका में कहा गया है कि इस अनुच्छेद के चलते जम्मू-कश्मीर के बाहर के भारतीय नागरिकों को राज्य में संपत्ति खरीदने का अधिकार नहीं है.
Supreme Court adjourns hearing petitions challenging the validity of Article 35A which empowers J&K state's legislature to define 'permanent residents' of the state and provide special rights to them. SC to hear the matter on August 27. pic.twitter.com/gIvVe0BGnn
— ANI (@ANI) August 6, 2018
1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद के आदेश से आर्टिकल 35ए को संविधान में जोड़ा गया था. तब से अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर के संविधान में शामिल है.
1954 में लागू हुआ आर्टिकल 35ए क्या है?
अनुच्छेद 35ए के तहत जम्मू-कश्मीर में रहने वाले नागरिकों को विशेष अधिकार दिए गए हैं. साथ ही राज्य सरकार को भी यह अधिकार हासिल है कि आजादी के वक्त किसी शरणार्थी को वो सहूलियत दे या नहीं. वो किसे अपना स्थाई निवासी माने और किसे नहीं.
दरअसल जम्मू-कश्मीर सरकार उन लोगों को स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई, 1954 के पहले कश्मीर आकर बसे थे.
इस कानून के तहत जम्मू-कश्मीर के बाहर का कोई भी व्यक्ति राज्य में संपत्ति (जमीन) नहीं खरीद सकता है, न ही वो यहां बस सकता है. इसके अलावा यहां किसी भी बाहरी के सरकारी नौकरी करने पर मनाही है. और न ही वो राज्य में चलाए जा रहे सरकारी योजनाओं का फायदा ले सकता है.
जम्मू-कश्मीर में रहने वाली लड़की यदि किसी बाहरी व्यक्ति से शादी करती है तो उसे राज्य की ओर से मिले विशेष अधिकार छीन लिए जाते हैं. इतना ही नहीं उसके बच्चे भी हक की लड़ाई नहीं लड़ सकते.
आर्टिकल 370 के तहत जोड़ा गया था आर्टिकल 35ए
जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास अनुच्छेद 370 की वजह से डबल सिटिजनशिप (दोहरी नागरिकता) है. आर्टिकल 370 की वजह से जम्मू-कश्मीर में अलग झंडा और अलग संविधान चलता है. इसी से यहां विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है, जबकि देश भर के राज्यों में यह 5 साल होता है.
आर्टिकल 370 की वजह से संसद के पास जम्मू-कश्मीर को लेकर कानून बनाने के अधिकार सीमित हैं. संसद में मंजूर कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते. मसलन यहां न तो शिक्षा का अधिकार, न सूचना का अधिकार, न न्यूनतम वेतन का कानून और न केंद्र का आरक्षण कानून लागू होता है.
आर्टिकल 35ए से कैसी अड़चन?
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के अध्यक्ष उमर अब्दुल्ला की शादी राज्य से बाहर की महिला से हुई है, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के मिलने वाले सारे अधिकार हासिल हैं. दूसरी तरफ, उनकी बहन सारा, जिन्होंने देश के अन्य राज्य के एक व्यक्ति (सचिन पायलट) से विवाह किया है, उनसे राज्य की ओर से मिले तमाम विशेष अधिकार ले लिए गए हैं.
आर्टिकल 35ए हटाने के पीछे की दलील
एनजीओ 'वी द सिटीजन' ने अनुच्छेद 35ए के खिलाफ याचिका दाखिल करते हुए तर्क दिया था कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं करवाया गया. बल्कि इसे राष्ट्रपति आदेश से जबरदस्ती थोपा गया था.
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