पत्थरबाजों से निपटने के लिए जम्मू-कश्मीर पुलिस नई रणनीति के साथ सामने आई है. पुलिस अब पत्थरबाजों में शामिल होकर ही उनपर शिकंजा कस रही है. इसका पहला नमूना शुक्रवार को जुमे की नमाज के बाद देखने को मिला.
शुक्रवार को श्रीनगर के जामा मस्जिद में जुमे की नमाज के बाद पत्थरबाजों की एक भीड़ ने पुलिस और सीआरपीएफ के जवानों पर पत्थर फेंकना शुरू कर दिया. लेकिन आमतौर पर इसका मुकाबला पैलेट गन और आंसू गैस के गोले छोड़कर जवाब देने वाले सुरक्षाबलों ने कुछ नहीं किया.
जब इस भीड़ में 100 के आसपास पत्थरबाज जमा हो गए और उन्हें दो ऐसे पत्थरबाजों ने लीड करना शुरू किया. जो अकसर ही ऐसी घटनाओं में आगे रहते हैं, तब अचानक से सुरक्षा बलों ने उन्हें बिखेरने के लिए उनपर आंसू गैस के गोले बरसाए और तभी अचानक से पत्थरबाजी कर रहे दो पत्थरबाजों ने लीड कर रहे उन दोनों पत्थरबाजों को पकड़ लिया और नकली बंदूक निकालकर दूसरों को डराने लगे. उन दोनों पत्थरबाजों को पकड़कर इंतजार कर रही पुलिस की गाड़ियों में डालकर ले जाया गया.
ये पत्थरबाज नहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान थे. पुलिस ने पत्थरबाजों को कमजोर करने के लिए शुक्रवार को अपनी इस नई स्ट्रेटजी को अपनाया और इसका नतीजा भी मिला. पुलिस ने अपने दो आदिमयों को पत्थरबाजों के बीच भेज दिया था, जिन्होंने पत्थरबाजी में हिस्सा लिया और मौका देखते ही मुख्य पत्थरबाजों को पकड़कर पुलिस स्टेशन ले गए. यहां तक कि नकली पत्थरबाज बने इन पुलिसवालों के हाथ में बंदूक भी नकली थी.
पुलिस की इस स्ट्रेटजी से हैरान होकर बाकी के प्रदर्शनकारियों ने विरोध जल्दी खत्म कर दिया और लौट गए.
बता दें कि पुलिस ने ये स्ट्रेटजी एक बार 2010 में भी अपनाई थी ताकि इलाके के पत्थरबाजों की पहचान कर गिरफ्तारी की जा सके.
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