हमारे समाज की संरचना ऐसी बनती जा रही है जहां क्या बात कही जा रही है से ज्यादा महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि कौन कह रहा है. कुछ साल पहले एक्टर आमिर खान ने एक गलती की थी जिसकी सजा उन्होंने जबरदस्त ट्रोल होकर चुकाई थी, अब कुछ वैसी ही गलती नसीरुद्दीन शाह ने कर दी है. आमिर खान ने कहा था कि देश के उग्र माहौल को लेकर उनकी पत्नी किरण ने चिंता जाहिर की और देश छोड़ने का जिक्र भी किया. आमिर ने यह बात एक कार्यक्रम में कही थी. इसके बाद आमिर के खिलाफ सोशल मीडिया पर जबरदस्त कैंपेन चलाया गया. वो स्नैप डील के ब्रांड एंबेस्डर थे तो प्रतिकारस्वरूप उस कंपनी के ऐप डिसेबल करने के लिए कैंपेन चलाया गया. आमिर खान बिल्कुल सकते में आ गए और उसके बाद उन्होंने समाज के किसी भी मुद्दे पर तकरीबन न बोलने का रुख अख्तियार कर लिया है. सामान्य तौर पर वो सिर्फ अपनी फिल्मों को लेकर ही बातचीत करते हैं किसी अन्य मुद्दे पर नहीं.
गुरुवार को एक्टर नसीरुद्दीन शाह का एक वीडियो यूट्यूब पर वायरल हुआ जिसमें वो समाज के बदलते रूप को लेकर गुस्सा जाहिर कर रहे हैं. एक वेबसाइट से बातचीत करते हुए नसीरुद्दीन शाह ने कहा, 'हमने बुलंदशहर हिंसा में देखा कि आज देश में एक गाय की मौत की अहमियत पुलिस ऑफिसर की जान से ज्यादा होती है. इन दिनों समाज में चारों तरफ जहर फैल गया है. मुझे इस बात से डर लगता है कि अगर कहीं मेरे बच्चों को भीड़ ने घेर लिया और उनसे पूछा जाए कि तुम हिंदू हो या मुसलमान? मेरे बच्चों के पास इसका कोई जवाब नहीं होगा. पूरे समाज में जहर पहले ही फैल चुका है.'
नसीरुद्दीन शाह का ये वीडियो जैसे ही वायरल हुआ सोशल मीडिया रिएक्शन्स से भर गया. कई नामी लोगों ने उनका समर्थन किया तो जबरदस्त विरोध की आवाजें भी शुरू हो गईं. केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के नेता और पश्चिम बंगाल में पार्टी प्रभारी कैलाश विजय वर्गीय ने इसे इंनटॉलरेंस मूवमेंट पार्ट 2 करार दिया.
Intolerance Season-2 (for 2019) has begun officially with #NaseeruddinShah feeling scared and not safe in India.
— Kailash Vijayvargiya (@KailashOnline) December 20, 2018
इसके साथ ट्विटर पर ऐसे कमेंट की बाढ़ आ गई जो नसीरुद्दीन शाह की धार्मिक पहचान के साथ भी जुड़े हुए थे. ट्विटर पर एक पोस्ट कुछ ऐसी भी थी कि केंद्र सरकार को ऐसे लोगों को बैन कर देना चाहिए जिन्हें हमारे देश में असुरक्षा महसूस होती है और जो आतंकियों को बचाने के लिए पेटिशन डालते हैं. एक कॉमेंट यह भी था नसीर को इस समय फेम में रहने की जरूरत है इसलिए वो ऐसे बयान देकर लाइमलाइट में बने रहना चाहते हैं.
लेकिन क्या नसीरुद्दीन शाह पर लगाए जा रहे ये सारे आरोप सच हैं? अगर कुछ देर के लिए यह मान भी लिया जाए कि नसीरुद्दीन शाह यह सबकुछ लाइमलाइट में रहने के लिए कर रहे हैं तो भी हमें उनके सवालों पर ध्यान देना चाहिए. हमें यह ध्यान देना चाहिए कि नसीरुद्दीन शाह की बातों में कितना दम है. क्या यह सच नहीं है कि हमारे देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हैं? क्या इन घटनाओं में निर्दोषों की जान नहीं गई है? क्या महज कुछ ही दिनों पहले बुलंदशहर में पुलिस इंस्पेक्टर की पगलाई भीड़ द्वारा हत्या नहीं की गई ?
दरअसल नसीरुद्दीन शाह ने सवाल बिल्कुल सही उठाए हैं. बस उनके सवालों को चश्मा लगाकर देखा जा रहा है. सोशल मीडिया पर पैदा हुई राष्ट्रवादियों की एक नई फौज हर जरूरी बात को चश्मा लगाकर नकार देती है भले ही इन्हीं तकलीफों को अपने घर में बैठकर परिवारवालों के साथ साझा करती हो.
सोशल मीडिया पर अंधी ट्रोलिंग के दौर में हम कबीर दास के निंदक नियरे राखिए के कॉन्सेप्ट को बिल्कुल नकारते जा रहे हैं. बल्कि हम समाज में किसी भी तरीके की निंदा करने वाले की नींद हराम कर देने के दौर में जी रहे हैं. अगर हम मॉब लिंचिंग की खबरें अखबारों में पढ़कर तकलीफ जाहिर करते हैं तो वही बात किसी बड़े कलाकार ने कह दी तो इसमें हजम न होने वाली कौन सी बात है. क्या इतना सियापा उस कलाकार की धार्मिक पहचान की वजह से है? अगर ऐसा है तो हम एक समाज के तौर पर वाकई बेहद बुरे दौर से गुजर रहे हैं
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