सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले को निरस्त कर दिया है. सुप्रीमकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आलोक वर्मा फिलहाल कोई नीतिगत फैसला नहीं लेंगे और इस मसले को चयन समीति में भेजे जाने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर कानूनविद और अधिकारी अपने तरीके से टिप्पणियां कर रहे हैं.
अवनी साहू फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत करते हुए कहते हैं कि पॉलिसी डिसीजन का सवाल तब उठता है जब जब सीबीआई मैन्यूअल से छेड़छाड़ की बात सामने आती हो लेकिन ट्रांसफर पोस्टिंग से लेकर अन्य रिश्वत मसले पर कार्रवाई करना रूटीन मसला है इस पर सीबीआई डायरेक्टर फैसले ले सकते हैं.
सामान्य काम-काज की कोई मनाही नहीं
वहीं सीबीआई में ज्वाइंट डायरेक्टर पर काम कर चुके एक वरिष्ठ अधिकारी भी फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में कहते हैं कि नीतिगत फैसले के दायरे को किस तरह मापा जाय ये कहना कठिन है. सीबीआई में पिछले ढाई महीने से कार्यरत अधिकारी भी रूटीन ट्रांसफर से लेकर रेड वगैरह का काम बखूबी कर रहे थे. ऐसे में आलोक वर्मा अपने शेष समय में क्या करते हैं वो उनका विवेक होगा लेकिन सुप्रीमकोर्ट ने इस मसले पर साफ कर दिया कि सीबीआई डयरेक्टर का कार्यकाल 2 साल का है और उससे पहले उसे हटाने का फैसला सिर्फ चयन समिति ही ले सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई डायरेक्टर पोस्ट को प्रोटेक्ट किया
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी के मुताबिक सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने गलत करार दिया है लकिन इसे सेलेक्ट कमेटी में भेजकर सरकार के लिए थोड़ी राहत भी दे दी है जिससे फेस सेविंग करने का मौका समझा जाना चाहिए. वहीं दूसरे सीनियर आईपीएस ऑफिसर नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई डायरेक्टर के ऑफिस को पूरी तरह प्रोटेक्ट किया है लेकिन वर्तमान सीबीआई डायरेक्टर के लिए बचे समय में स्वतंत्र रूप से काम करने का फैसला नहीं सुनाया है.
सीबीआई vs सीबीआई की जंग जारी रहेगी?
दरअसल सेलेक्ट कमेटी को रेफर कर सुप्रीम कोर्ट ने एक सप्ताह का समय दिया है जिसमें तमाम चीजों पर विचार करने की बात कही गई है और फिर इस मसले को सरकार के सामने रखे जाने की बात कही गई है. जाहिर है जिन दो मुद्दों पर विपक्ष के तेवर मोदी सरकार पर तीखे थे उसको लेकर लोगों के जेहन में सवाल अब भी बरकरार हैं. क्या सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा राकेश अस्थाना के खिलाफ फिर वही तेवर अपनाएंगे?
वैसे राकेश अस्थाना के खिलाफ मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है और सीबीआई डायरेक्टर 31 जनवरी तक इस पद पर बने रह सकते हैं. जाहिर है इस दरम्यान कोर्ट ने उन्हें नीतिगत फैसले लेने को मना किया है और इस मसले को सेलेक्ट कमेटी रेफर कर दिया है. इस मसले पर कई जानकार अपनी राय में कह रहे हैं कि डायरेक्टर ऑफिस की गरिमा और उसके कार्यकाल की अवधि को प्रोटेक्ट किया गया है लेकिन आलोक वर्मा इस फैसले के बाद पावरलेस नजर आ रहे हैं.
आलोक वर्मा की जीत हुई है: प्रशांत भूषण
सुप्रीमकोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में कहा कि सरकार भले ही अपना चेहरा छुपाने की कोशिश करे लेकिन जीत तो आलोक वर्मा की हुई है और वो एफआईआर दर्ज करने के लिए स्वतंत्र हैं चाहे मसला राफेल का ही क्यों न हो.
जाहिर है 31 जनवरी तक सीबीआई डायरेक्टर की भूमिका क्या होगी इस पर लोगों की निगाहें टिकी रहेंगी लेकिन सीबीआई डायेरेक्टर के कार्यकाल और उनको हटाने की प्रक्रिया पर उठे तमाम सवाल के जवाब सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर दे दिए हैं और इसको लेकर कोई संशय की स्थिति नहीं है कि सीबीआई डायरेक्टर को छुट्टी पर भी बिना चयन समिति के फैसले के नहीं भेजा जा सकता है.
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