ये आने वाले वक़्त की आहट है और ये आहट डराती है. ये अंदेशा खड़ा करती है कि एक भीड़ है, जो उद्दंड है और उसे रोका नहीं जा रहा. अंदेशा इसलिए क्योंकि बीते हफ्ते ही आजादी से भी पहले से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की किसी दीवार पर बरसों से टंगी जिन्ना की एक तस्वीर पर AMU के चरित्र और वफादारी पर सवाल उठने लगे और बवाल होने लगा.
कुछ ही दिन पहले दिल्ली के सफदरजंग इलाके में तुगलक काल के मकबरे को कुछ लोगों ने रंग पोत कर रातोंरात मंदिर में बदल दिया और बीते हफ्तों में गुरुग्राम में कई जगहों पर जुमे की नमाज़ में खलल डाला गया. ये हमारे आज के हिंदुस्तान की कुछ ताजा तस्वीरें हैं.
मगर ये तस्वीरें न तो आखिरी हैं और न पहली. कई सालों से ये सिलसिला बेधड़क बढ़ता जा रहा है. कानून का डर न के बराबर लगता है और डर हो भी क्यों? गुरुग्राम की मिसाल लीजिए, जब भगवा पटकाधारी उद्दंड लड़कों ने जुमे की नमाज़ को किसी हिन्दू संघर्ष समिति के नाम पर रोका तो हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का बयान आया कि नमाज़ सार्वजनिक जगहों पर नहीं होनी चाहिए. मस्जिदों में या अपने घरों में ही होनी चाहिए. मुख्यमंत्री के बयान के बाद हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने भी कहा कि नमाज़ जमीन पर कब्जे के इरादे से हो रही है, ये नहीं होने दिया जायेगा .
नमाज़ यकीनन मस्जिदों में होनी चाहिए खट्टर साहब, यही सही भी है. मैं इस्लाम की बड़ी जानकार नहीं, पर इतना जरूर जानती हूं कि इस्लाम भी यही कहता है कि नमाज़ ऐसी जगह पर अदा करें जो विवादित न हो, जिस पर किसी को ऐतराज़ न हो.
अंजुमन मिनहाज ए रसूल के अध्यक्ष मौलाना अतहर देहलवी कहते हैं, 'यकीनन नमाज़ मस्जिद में होनी चाहिए. लेकिन बढ़ती आबादी और जगह की किल्लत की वजह से या अगर पड़ोस में मस्जिद न हो तो लोकल लोगों या प्रशासन की रजामंदी से जुमा या ईद की नमाज़ जगह की कमी में बाहर भी पढ़ी जा सकती है और ऐसा होता रहा है. लेकिन ऐसे कि आम लोगों को तकलीफ न हो.'
गुरुग्राम का ममला यूं अलग है कि यहां नमाज़ अदा करने वाले मजदूर तबके के लोग थे, जो अपनी फैक्ट्री या वर्कशॉप के इर्द गिर्द नमाज़ अदा करते हैं. यहां वक्फ की काफी जमीन है जिस पर नमाज़ हो सकती है. लेकिन ज्यादातर पर सरकार या भू माफिया का कब्जा है.'
गुड़गांव के मसले में दो बातें ध्यान देने लायक हैं. जो लोग खुली जगह पर नमाज़ पढ़ रहे थे वो सब बाहर से आए मजदूर हैं, जिनके पास रहने को भी अपनी जगह नहीं है तो ऐसे में नमाज़ की जगह दूर की बात है. दूसरा ये कि क्या आस-पास कोई मस्जिद है, जिसे छोड़कर वो वहां एक मैदान में नमाज़ पढ़ने शौकिया इकठ्ठा हो गए थे?.
जिस घटना से इस बात की शुरुआत हुई वो ये है कि कुछ दिनों पहले सेक्टर 53 के वजीराबाद गांव में जुमे के दिन मजदूर तबके के लोग खुले मैदान में नमाज़ अदा कर रहे थे. ये बात कुछ नौजवानों को हजम नहीं हुई जो खुद को हिंदूवादी संगठन हिन्दू संघर्ष समिति का सदस्य बता रहे थे. उन्होंने नमाजियों को रोका.
छह लोगों को नमाज़ में खलल के लिए गिरफ्तार किया गया. लेकिन फिर बेल मिल गई. प्रशासन से समर्थन मिलने पर हौसले बुलंद हो गए और उसके बाद से कई संगठन ने सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ पढ़ने को लेकर अपना विरोध जारी रखा. कई जगह पुलिस की मौजूदगी में नमाज़ हुई. कई जगह पुलिस की मौजूदगी के बावजूद नमाज़ रोकी गई.
अखिल भारतीय हिन्दू क्रांति दल नाम के संगठन के प्रवक्ता ने कहा है कि सहारा मॉल, IMT मानेसर और सेक्टर 40 की तमाम जगहों पर उनके कार्यकर्ताओं ने नमाज़ नहीं होने दी.
जाहिर है वो इसके लिए शर्मिंदा नहीं हैं. उन्हें इस बात पर गर्व है और भरोसा भी कि प्रशासन से समर्थन मिलेगा और मिला भी. कानून का डर न के बराबर है. ऐसी सूरत में क्या हो?
हो ये रहा है कि हरियाणा शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल, हिन्दू क्रांति दल जुट कर हिन्दू संघर्ष समिति के बैनर तले सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ रोकने की मुहिम चला रहे हैं. उनका आरोप है कि नमाज़ के नाम पर यहां ज़मीन पर क़ब्ज़ा चल रहा है.
अगर ये सच है तो वहां की सरकार के पास इतनी ताकत जरूर है कि हिन्दू संघर्ष समिति की आड़ में नहीं, बल्कि इसे कानूनन रोक सकें. जिनकी जमीन है, वो इस पर ऐतराज़ कर सकते हैं. ऐसी सूरत में सरकार को दूसरी जगह का इंतजाम भी करना चाहिए था न कि अलग अलग हिंदूवादी संगठनों को कानून व्यवस्था अपने हाथ में लेने की इजाजत मिलनी चाहिए थी और उसके कुछ दिनों बाद मुख्यमंत्री का ये बयान देना कि नमाज़ तो मस्जिद या घरों में ही होनी चाहिए, सोने पर सुहागा था.
खट्टर साहब, यकीनन होनी चाहिए. लेकिन याद रखें ये यूरोप नहीं, हिंदुस्तान है, जहां हर गली-चौराहे, नुक्कड़ पर पूजा पाठ, जागरण, जगराता, ताजिया, नमाज़ या अन्य आयोजन होते रहे हैं और लोग पूरी श्रद्धा से इसे कबूल करते रहे हैं. अब ये बर्दाश्त के बाहर क्यूं होता जा रहा है?
ये यूरोप नहीं, जहां धार्मिक कर्मकांड बंद दरवाजों के पीछे हो रहा हो. यहां तो मज़हब हमारी संस्कृति का भी हिस्सा रहा है और उत्सव का भी. फ्रांस में किसी सार्वजनिक जगह पर नमाज़ अदा करने पर पाबंदी है. धार्मिक चिन्ह की नुमाइश पर भी जैसे कि बुर्का, लेकिन वहां दूसरे समुदाय भी सड़कों पर धर्म का मुजाहिरा नहीं करते और सबसे बड़ी बात कि ऐसा करके फ्रांस का समाज कोई आदर्श समाज नहीं बन गया है .
यूरोप के कई मुल्क अपनी एक बड़ी आबादी को लगातार हाशिए पर धकेलते गए हैं, जिससे नौजवानों में गुस्सा है और वो कट्टर होते जा रहे हैं. हमारे समाज की खासियत रही है मिल जुल कर रहना.
बहरहाल, ज़्यादातर मुस्लमान भी ये मानते हैं कि नमाज़ से किसी को परेशानी हो तो वहां नमाज़ नहीं पढ़ी जानी चाहिए. सार्वजनिक जगहों पर नमाज़ पर रोक लगेगी तो बड़ा सवाल ये भी उठ रहा है कि ये क्या सिर्फ नमाज़ तक सीमित है या फिर सड़क पर होने वाले किसी भी धार्मिक कार्यक्रम के लिए लागू होगा? क्या ये कायदे सिर्फ एक धर्म तक ही सीमित होंगे?
सोचिएगा.. कभी अज़ान का शोर ज्यादा हो जाता है, कभी नमाज़ लोगों की परेशानी की वजह बनती है. ऐसे में कल कोई नया मसला हो सकता है. सरकार की नीयत सबके साथ की हो तो प्रशासन के ही स्तर पर इसका हल निकलना चाहिए.
अच्छी बात ये है कि बहुसंख्यक हिन्दू आबादी का एक बड़ा हिस्सा हिंदुत्व समर्थक नहीं है. तभी गुरुग्राम में भी स्थानीय आबादी का एक हिस्सा इन मजदूरों के साथ है जिनमें से कुछ खौफ से पलायन भी करने लगे हैं. लेकिन सोशल मीडिया और टीवी पर हो रही आक्रामक बहसों से ये धारणा धीरे-धीरे घर की जा रही है कि मुसलमान अच्छे नहीं हैं. तभी उनका प्रतिनिधित्व करने के लिए आधुनिक खयाल वाले, कामकाजी, प्रगतिशील मुसलमानों को जगह नहीं मिलती और सिर्फ ओवैसी जैसी कट्टर आवाजें बुलंद होती हैं. कुछ मुद्दे उछाल कर, कुछ एजेंडे लहरा कर, खासतौर से किसी भी चुनाव से पहले माहौल में राष्ट्रवाद और धार्मिक बंटवारे की कोशिश लगातार हो रही है.
ये सही है कि जुमे की नमाज़ पढ़ रहे मुसलमानों की कतारों में पहुंचकर वंदेमातरम् और जय श्रीराम के नारे लगाने वाले और नमाज़ में रुकावट डालने वाले लड़के प्रधानमंत्री या बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की इजाज़त लेकर तो वहां लोगों को डराने नहीं आए थे. ये तो हिंदू संयुक्त संघर्ष समिति का फैसला था जिसमें बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद, शिव सेना और हिंदू जागरण मंच के लोग शामिल हैं.
लेकिन सोचने वाली बात ये है कि ये माहौल क्यों बन रहा है, जहां AMU में जिन्ना की तस्वीर पर हंगामा होता है, जहां रातों रात ऐतिहासिक मकबरे को मंदिर बना दिया जाता है और जहां किसी मैदान में नमाज़ पढ़ने वालों को रोका जाता है, वो भी एक ऐसे देश में जहां सालों से जुमे की नमाज़ और होली के रंग गले मिलते आए हैं.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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