गोरखपुर में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के इंसेफेलाइटिस वार्ड के पूर्व नोडल अधिकारी डॉ कफील खान के रवैये को लेकर खूब चर्चा हो रही है. डॉ कफील खान के रवैये पर गोरखपुर के लोग में और मीडिया में भी अलग-अलग राय रखी जा रही है.
कुछ लोग पिछले 9 अगस्त से लेकर 11 अगस्त तक अस्पताल में हुए 30 बच्चों की मौतों के लिए डॉ कफील खान को दोषी मान रहे हैं, तो कुछ लोगों का कहना है कि उनको फंसाया जा रहा है.
वैसे देखा जाए तो डॉ कफील खान का भी विवादों से नाता रहा है. 15 मार्च, 2015 को एक नर्स ने कफील खान और उनके भाई कासिफ जमील पर रेप का चार्ज लगाया था.
पीड़िता जब शिकायत दर्ज कराने थाने गई तो उसकी रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई. पीड़िता ने डॉ कफील अहमद को समाजवादी पार्टी के उस समय के जिलाध्यक्ष का रिश्तेदार बताया था. लगभग एक महीने बाद कोर्ट के आदेश के बाद पीड़ित की शिकायत दर्ज की गई थी.
इस मामले को लेकर उस समय इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोरखपुर के एसपी को अवमानना का नोटिस भी जारी किया था. उस समय जिले के एसपी लव कुमार थे जो फिलहाल गौतमबुद्ध नगर के एसएसपी हैं.
'गंभीर मसले को मोड़ा दूसरी तरफ'
1993 से गोरखपुर में पत्रकारिता कर रहे गोरखपुर न्यूजलाइन के संपादक मनोज सिंह फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहते हैं, 'मुझे लगता है कि इस गंभीर मसले को दूसरी तरफ मोड़ दिया गया है. शासन और अस्पताल की जो खामियां उजागर हुई थी उससे ध्यान भटकाने के लिए सोशल मीडिया में इस तरह की बातें हो रही हैं.'
मनोज सिंह आगे कहते हैं, 'मसला कफील का है पर उनकी भूमिका इस घटनाक्रम में इतनी बड़ी नहीं थी जितनी बताई जा रही है. उन्होंने आगे कहा, 'हमारा मुद्दा है कि अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी हुई और बच्चों की मौत हुई.'
उन्होंने कहा, 'मीडिया ऑक्सीजन वाले मुद्दे पर बात नहीं कर कफील पर बात कर रही है. क्या डॉ कफील पर रेप के आरोप लगने के बाद उनके काम करने पर असर पड़ा है? क्या कफील अस्पताल में काम ठीक ढंग से नहीं कर रहे थे? आप इसकी जांच करिए और अगर वह काम नहीं कर रहे थे तो उन पर कार्रवाई कीजिए.'
बकौल मनोज, 'पूरा फोकस बदल दिया गया है. मेरी चिंता यह है कि अभी भी मौतें हो रही हैं और सारा फोकस कफील पर हो गया है. मुझे लगता है कि सोशल मीडिया पर जो बातें कही जा रही हैं उसका जवाब कफील को ही देना चाहिए. मेरी जानकारी में कफील ऑक्सीजन पर्चेज कमेटी में नहीं थे. अस्पताल में कई पर्चेज कमेटियां होती हैं पर वह ऑक्सीजन पर्चेज कमेटी में नहीं थे. इस घटना से संबंधित किसी भी कमेटी में डॉ कफील नहीं थे.'
इसके बाद मनोज सिंह बताते हैं, 'कफील के बारे में कहा जा रहा है कि वह विभाग के एचओडी हैं पर वह एचओडी नहीं हैं. दरअसल डॉ मित्तल एचओडी हैं. इसके अलावा, वह कभी जेल नहीं गए थे. एक सजायाफ्ता सरकारी अस्पताल का डॉक्टर कैसे हो सकता है. मीडिया में गलत खबर चल रही है.'
'हिंदुस्तान' अखबार के सिटी इंचार्ज अरविंद राय ने फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहा, 'मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता कि, डॉ कफील ने लोकल मीडिया में कई दोस्त बना लिए और उन्हीं के दम पर उन्होंने बच्चों की मौत के बाद अपने पक्ष में खबरें छपवा ली. क्या उस समय खबर को कवर कर रहे पत्रकारों को पता था कि जो डॉक्टर बच्चे को गोद में उठा कर भाग रहा है वह कफील खान हैं?गलत लोग प्रोफेशन में होते हैं लेकिन सभी स्थानीय पत्रकारों के बारे में ऐसा नहीं है. बच्चों की मौत की साफ वजह है ऑक्सीजन सप्लाई में रुकावट लेकिन मुद्दे को भटकने की कोशिश की जा रही है.'
कफील पर लोगों की राय है बंटी
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कुछ डॉक्टर और गोरखपुर के स्थानीय लोग भी डॉ कफील खान के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं. गोरखपुर के सड़कों से लेकर चौक-चौराहों तक और राहगीरों से लेकर ऑटो रिक्शा में बैठे लोगों तक में यह मुद्दा खूब गरम है.
कुछ लोग डॉ कफील खान को इस पूरे घटनाक्रम के लिए बलि का बकरा बनाने की बात करते सुनाई देते हैं, तो कुछ लोग उसे अपराधी बताने से भी नहीं चूकते.
डॉ खान को हटाने के बाद भी अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला थम नहीं रहा है. ऐसे में डॉ कफील खान पर हुई कार्रवाई पर सवाल उठना लाजमी है.
गोरखपुर की इस घटना के बाद राजनीतिक नेताओं द्वारा इसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी जारी है. एक वर्ग जहां डॉ कफील खान को मसीहा बनाने से नहीं थक रहा है तो वहीं दूसरा वर्ग उन्हें विलेन बनाने से भी नहीं थक रहा है.
डॉ कफील खान को मीडिया ने उनके काम के लिए पहले हीरो बनाया था, लेकिन अब वह जीरो हो गए हैं. मीडिया ने उन्हें पहले बच्चों की जान बचाने के लिए गैस सिलेंडर का इंतजाम करने वाला एक मसीहा बताया था. लेकिन अचानक वह विलेन हो गए और सरकार ने उन्हें उनके पद से हटा दिया.
पिछले कुछ दिनों से दिल्ली से आए कुछ मीडियाकर्मी गोरखपुर में अड्डा जमाए हुए हैं. ये मीडियाकर्मी डॉ कफील खान से संपर्क करने की कोशिश लगातार कर रहे हैं पर डॉ कफील खान लगातार मीडिया से दूरी बनाए हुए हैं.
11 अगस्त के बाद किसी ने डॉ कफील खान से संपर्क नहीं किया है. जो भी बातें की जा रही हैं वह सिर्फ हवा में ही चल रही है.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एक प्रोफेसर ने नाम नहीं छापने के शर्त पर कहा, 'डॉ कफील खान ने कुछ साल पहले कॉन्ट्रैक्ट पर मेडिकल कॉलेज ज्वाइन किया था. बाद में अखिलेश यादव के समय में उनकी स्थाई नियुक्ति अस्पताल में हुई थी. अखिलेश यादव के राज में अस्पताल में उनका काफी रुतबा था.'
प्रोफेसर ने कहा, 'मीडिया में उन्होंने ऐसी खबरें चलवाई जिसमें उन्हें बच्चों की जान बचाने वाला मसीहा बताया गया. डॉ कफील खान एक 50 बिस्तर वाला बच्चों का प्राइवेट अस्पताल भी चलाते हैं. इस अस्पताल का मालिकाना हक उनकी पत्नी और दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. शबिस्ता खान पर है.'
'कफील को थी ऑक्सीजन के कमी की जानकारी'
प्रोफेसर आगे कहते हैं, 'वह मेडिकल कॉलेज की खरीद कमेटी के सदस्य भी थे और उन्हें इस बात की पूरी जानकारी थी कि मेडिकल कॉलेज की तरफ से ऑक्सीजन सिलेंडर की आपूर्ति करने वाली कंपनी का भुगतान बकाया है जिसके बावजूद भी वह काम करते रहे. वह मीडिया के सामने आकर सारी बात क्यों नहीं रख रहे हैं.'
एक स्थानीय व्यक्ति आनंद राय के मुताबिक डॉ. कफील पर ऑक्सीजन सिलिंडर चोरी का आरोप पूरी तरह से बकवास है क्योंकि 10 अगस्त की रात लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने के पहले इंसेफलाइटिस वार्ड सहित मेडिकल कॉलेज के दूसरे विभाग में भी लिक्विड ऑक्सीजन सप्लाई हो रही थी.
उन्होंने कहा, 'यह ऑक्सीजन सप्लाई पाइप लाइन से हो रही थी. ऑक्सीजन सिलिंडर सिर्फ संकट की स्थिति में रखा जाता है. भला पाइप लाइन से ऑक्सीजन की कैसे चोरी हो सकती है?'
'प्राइवेट प्रैक्टिस करने पर कार्रवाई सिर्फ कफील पर ही क्यों?'
आनंद राय आगे कहते हैं, 'आक्सीजन की सप्लाई और पुष्पा सेल्स के भुगतान से डॉ कफील खान का कोई लेना-देना नहीं था. बकाया पैसे का भुगतान मेडिकल कॉलेज को करना था और यह धन शासन से आना था. शासन ने देर से पैसा भेजा और समय से भुगतान नहीं हुआ, इसलिए ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित हुई.'
बकौल आनंद राय, 'बीआरडी मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस के बारे में तो गोरखपुर का हर आदमी जानता है. यहां तक कि कैंपस में ही डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं. तब डॉ कफील पर ही कार्रवाई क्यों? अन्य डॉक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं?'
कुल मिला कर सच्चाई क्या है इसपर फिलहाल राय बंटी हुई है और पूरी सच्चाई तो तफ्तीश के बाद ही सामने आ सकेगी.
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