कानपुर रेल हादसे के पीछे रेलवे की बड़ी लापरवाही सामने आई है. झांसी-कानपुर सेक्शन में अकेले अक्टूबर महीने में ही 7 बार ट्रैक टूटा था. इनमें से अधिकतर ट्रैक की गड़बड़ी पुखराया-मलासा सेक्शन में दर्ज किए गए थे. इसी सेक्शन में 20 नवंबर की सुबह 3 बजकर 5 मिनट पर इंदौर पटना एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से 150 लोगों की मौत हो गई थी.
दुर्घटना के बाद रेलवे पुलिस की जांच में यह बात सामने आई है कि इस सेक्शन में पटरियां टूटने की रिपोर्ट पहले भी आ चुकी थी. इसके बाद सतर्कता आदेश (कॉशन) जारी किया गया था. इस आदेश के मुताबिक इस सेक्शन में ट्रेनों को 30 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से अधिक में नहीं चलाई जा सकती.
रिपोर्ट की अनदेखी
रिपोर्ट के बावजूद रेलवे अधिकारियों की लापरवाही के चलते यहां 110 किलोमीटर की स्पीड पर गाड़ियां चलीं. इस सेक्शन में हर रोज सैकड़ों रेल गाड़ियां गुजरती हैं. इनमें सवार यात्रियों की जान की परवाह किए बगैर रेलवे ने नियमों की अनदेखी की.
दुर्घटना की सुबह ईस्ट जोन सेफ्टी कमीश्नर पीके आचार्य ने भी इस सेक्शन का दौरा किया. इस दौरे के बाद उन्होंने कॉशन बढ़ाते हुए रफ्तार 30 किलोमीटर प्रतिघंटा के बजाय 10 और 20 तक रखने की हिदायत जारी की. इस तरह हादसे से एक दिन पहले जारी दो कॉशन को बढ़ाकर 6 कर दिया गया.
रेलवे पुलिस ने इस मामले में अपने कर्मचारियों के खिलाफ गैरइरादतन हत्या और लापरवाही का केस दर्ज कर जांच शुरु कर दी है.
झांसी के एसपी जीआरपी ने फर्स्टपोस्ट को बताया कि घटनास्थल पर 27 घंटे की जांच और सैकड़ों घायल यात्रियों के बयान के आधार पर यह एफआईआर दर्ज की गई है.
रेलवे के खिलाफ एफआईआर
एफआईआर में अज्ञात रेलवे अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है. इस जांच में यह बात सामने आई है कि ट्रेन में गड़बड़ी इंदौर से ही थी. झांसी में भी ट्रेन में गड़बड़ी की शिकायत आई थी. इस बात की जानकारी ड्राईवर ने अधिकारियों को भी दी लेकिन अधिकारियों ने उसे किसी तरह कानपुर पहुंचने की सलाह दी.
झांसी डिवीजन के अधिकारियों का रवैया टाल-मटोल वाला था. उन्होंने शिकायत को कानपुर डिवीजन पर टाल दी. अगर ड्राईवर की शिकायत पर फुर्ती से काम किया जाता तो इस हादसे को टाला जा सकता था. 150 जानें बचाई जा सकती थी.
रेलवे की यह बीमारी पुरानी है. यात्रियों की शिकायत को टालना उनकी आदत में शुमार है. यहां तक कि ट्रेन लेट होने के कारणों में भी रेलवे की ही लापरवाही देखी गई है. अधिकारी-कर्मचारी सिर्फ अपने डिवीजन के बारे में सोचते हैं.
दोहरीकरण का दबाव
जांच का तीसरा पहलू झांसी और कानपुर के बीच चल रहा दोहरीकरण का काम है. रेलवे ने इसे 2018 से पहले पूरा करने का लक्ष्य रखा है.
इस काम का टेंडर जीएमआर कंस्ट्रक्शन, केईसी बेंगलुरू और दक्षिण भारत की कंपनी एसईडब्लू को सौंपा गया है. नई सरकार इसे जल्द से जल्द डबल लाइन करना चाहती है. काम को जल्दी खत्म करने का दबाव इन कंपनियों पर भी है. दोहरीकरण के काम में न केवल नई पटरियां बिछाई जा रही हैं बल्कि पुरानी पटरियों में भी मरम्मत कर दुरुस्त करने का काम युद्ध स्तर पर चल रहा है.
ट्रैक में फ्रैक्टर के अलावा जब काम अधूरा हो तब भी रेलवे ट्रेनों को धीमी रफ्तार से गुजरने की चेतावनी जारी करता है. जाहिर है इस मामले में ऐसे किसी कॉशन को लगाने या फिर उसका पालन करने में लापरवाही बरती गई. गड़बड़ी ट्रेन में थी या पटरियों में यह रेलवे के जांच के दायरे में है.
जीआरपी जांच के दायरे में ट्रेन के ड्राईवर समेत तमाम तैनात कर्मचारी, झांसी डिवीजन और इस सेक्शन में पड़ने वाले रेलवे के अधिकारी कर्मचारी शामिल हैं.
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