यह एक अच्छी और काबिले तारीफ बात है कि, भारत अब दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों के साथ व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों के अलावा एक नए साझा उद्देश्य में भी शामिल हो गया है. वास्तव में, यह भारत की बढ़ती ताकत का ही नतीजा है, जिसने दक्षिण-पूर्व एशिया के नेताओं के शिखर सम्मेलन की आधारशिला रखी. यह शिखर सम्मेलन 25-26 जनवरी को भारत की मेजबानी में दिल्ली में संपन्न हुआ. जाहिर तौर पर यह सम्मेलन इंडो-आसियान संबंधों के 25 साल पूरे होने की याद में हुआ. लेकिन सम्मेलन का असल मकसद तो आसियान देशों के साथ भारत के रणनीतिक संबंधों को और मजबूत बनाना था.
दुनिया को धीरे-धीरे यह एहसास होने लगा है कि, चीन की आधिपत्यवादी नीति के खिलाफ भारत एक प्रभावशाली और मजबूत ढाल बन सकता है. दक्षिण चीन सागर पर नियंत्रण की चीन की चाल जगजाहिर हो चुकी है. जिसके चलते इस इलाके में नौपरिवहन (नेवीगेशन) की स्वतंत्रता संकट में पड़ गई है. हालांकि दक्षिण चीन सागर पर दावे का चीन के पास कोई वैध अधिकार नहीं है.
दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने के साथ ही भारत ने साफ कर दिया है कि, वह दक्षिण चीन सागर में चीन के दखल को बर्दाश्त नहीं करेगा. अपनी पेशबंदी के जरिए भारत ने चीन को संदेश दिया है कि वह नौपरिवहन के व्यापारिक मार्गों में किसी तरह का अवरोध और अपने आंतरिक क्षेत्रों में चीन की मुंहजोरी का पुरजोर विरोध करेगा. भारत का यह सख्त रुख अमेरिका के समर्थन के चलते है, यह तथ्य सवाल से परे है. भारत की नौपरिवहन और समुद्री व्यवस्था अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया को टक्कर दे रही है. इसके साथ ही भारत अब आसियान के 10 सदस्य देशों को भी अपने नजदीक ले आया है. ऐसे में भारत अपनी मजबूत रणनीति के साथ चीन की नीतियों के खिलाफ खड़ा हो गया है.
भारत ने उठाया सही समय पर सही कदम
वास्तव में, भारत की यह पहल स्वागत योग्य है. आसियान देशों को अपने करीब लाकर भारत ने चायना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (सीपीईसी) की काट ढूंढ निकाली है. दरअसल चायना-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के जरिए चीन व्यापार का नया समुद्री मार्ग तैयार करने में जुटा है. सीपीईसी के तहत चीन अपने माल को पाकिस्तान के रास्ते शॉर्ट कट से समुद्र तक पहुंचाना चाहता है. इससे चीन को समय और संसाधनों की बचत तो होगी ही, उसके साथ ही वह समुद्र पर नियंत्रण का अपना सपना भी पूरा करना चाहता है.
चीन की साम्राज्यवादी और आधिपत्यवादी नीतियों के खिलाफ भारत की जवाबी पहल एक दम सही समय पर सामने आई है क्योंकि, चीन दक्षिण चीन सागर में कई देशों को धमका रहा है. खासतौर पर, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और फिलीपींस जैसे देश चीन से खासे परेशान हैं. इलाके में चीन का वर्चस्व स्वीकार न करने की हालत में इन देशों को खतरनाक परिणाम भुगतने की धमकी मिल रही है. चीन की बुरी नीयत से हताश और परेशान दक्षिण-पूर्व एशिया के ज्यादातर देश भारत की छत्रछाया में राहत महसूस कर रहे हैं.
भारत-आसियान शिखर सम्मेलन के विस्तृत सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया कि, 'भारत दक्षिण-पूर्वी एशिया में महासागरों और समुद्र में नियम आधारित व्यवस्था के तहत आसियान के शांति और समृद्धि के विजन का साझीदार है.' आसियान के सदस्य देशों के साथ भारत की यह एकजुटता चीन की नीतियों के विरोध में एक मजबूत संकल्प बन सकती है.
आसियान शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री के कुछ शब्द चीन को समय-समय पर याद दिलाए जाने की जरूरत है. मोदी ने कहा कि, 'हम अपने साझा समुद्री क्षेत्र में व्यावहारिक सहयोग बढ़ाने के लिए आसियान के साथ काम करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.' मोदी ने आगे कहा कि, 'समुद्री क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा सहयोग के लिए भारत और आसियान एक तंत्र विकसित करने की तलाश में हैं.'
गणतंत्र दिवस परेड के जरिए आसियान नेताओं के सामने सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करके भारत ने दिखा दिया है कि, वह एक शक्ति संपन्न देश है. भारत ने यह भी जता दिया है कि, वह आसियान देशों को चीन के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हैं, लिहाजा उस पर भरोसा किया जा सकता है.
आसियान देशों के साथ बढ़ाना होगा व्यापार
भारत के लिए अगला तार्किक कदम इंडो-आसियान ट्रेड कोऑपरेशन को और ज्यादा बढ़ावा देने पर होगा. आसियान देशों के साथ व्यापार में चीन फिलहाल भारत से बहुत आगे है. लिहाजा आसियान देशों के साथ व्यापार में चीन से आगे निकलने के लिए भारत को कड़ी मेहनत करनी होगी. इसके लिए भारत को चीन की बदनीयत से डरे बैठे आसियान के सदस्य देशों के संदेह का फायदा उठाना होगा.
2016-17 में आसियान देशों के साथ चीन का व्यापार भारत के 470 मिलियन डॉलर के मुकाबले छह गुना ज्यादा था.
भारत और पाकिस्तान के बीच परस्पर विरोधी और कटु संबंधों की वजह से साउथ एशियन फोरम फॉर रीजनल कोऑपरेशन (एसएएआरसी) की उम्मीदें वास्तव में झूठी साबित हुई हैं. इसलिए वक्त का तकाजा है कि, अब भारत-आसियान सहयोग को बढ़ावा दिया जाए. भारत और आसियान देशों की अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर करीब 5 खरब डॉलर की है. जोकि अमेरिका और चीन के बाद तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का मकाम रखती है.
लेकिन इसमें जरा भी संदेह नहीं है कि, भारत को चीन की शक्तिशाली क्षेत्रीय आर्थिक गुटबाजी से निकलने के लिए कठिन परिश्रम करना होगा. क्योंकि, भारत में बुनियादी ढांचे का अभाव एक बड़ी रुकावट है. वहीं नौकरशाहों के रवैए के चलते निवेशकों की संख्या भी नहीं बढ़ पा रही है.
भारत में कानून-व्यवस्था की समस्या को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है. संयोग की बात है कि, दिल्ली में जिस वक्त आसियान शिखर सम्मेलन चल रहा था, उसी दौरान फिल्म पद्मावत के मुद्दे पर दिल्ली समेत चार राज्यों में कानून-व्यवस्था का मखौल उड़ाया जा रहा था. आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान हुई इन घटनाओं ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की छवि पर काफी बुरा असर डाला.
खोलने होंगे दोस्ती के और नए दरवाजे
सबसे ज्यादा सकारात्मक योजना आसियान देशों को सड़क मार्ग से जोड़ने की है. भारत अपने नॉर्थ-ईस्ट इलाके से सड़क के जरिए आसियान देशों के साथ व्यापार की सुविधा चाहता है. भारत की तरफ से इस योजना के क्रियान्वयन का काम भी शुरू हो चुका है. भारत की यह परियोजना इंडो-आसियान गठजोड़ के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खोलेगी.
आसियान शिखर सम्मेलन के संयुक्त घोषणा में आतंकवाद की जोरदार तरीके से आलोचना की गई. जो कि भारत के लिए खासी हितकर बात कही जाएगी. आसियान के संयुक्त बयान में किसी देश की समीक्षा या आलोचना का दस्तूर नहीं है. लेकिन दिल्ली में हुए आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान ऐसा पहली बार देखने को मिला, जहां आतंकवाद के मुद्दे पर अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की आलोचना की गई.
आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए भारत और आसियान देशों के बीच सहयोग पर सहमति बनी है. इस मुहिम के तहत आतंकियों से लड़ने, आतंकवादी समूहों और नेटवर्क को उखाड़ फेंकने के लिए व्यापक दृष्टिकोण पर बल दिया जाएगा. आसियान के संयुक्त बयान में सीमा पर आतंकवादियों की घुसपैठ और विदेशी आतंकवादी लड़ाकों के अलावा इंटरनेट के दुरुपयोग का भी जिक्र किया गया है. जिसमें आतंकवादी समूहों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर गंभीर चिंता जताई गई है. इन सभी संदर्भों से स्पष्ट हो जाता है कि, इशारा भारत के खिलाफ पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की ओर था.
कुल मिलाकर, प्रधानमंत्री मोदी का यह बढ़िया विचार था कि, उन्होंने आसियान देशों के नेताओं को न सिर्फ शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया बल्कि उन्हें भारत की सैन्य शक्ति भी दिखाई. जिससे यकीनन आसियान देशों का भारत पर भरोसा बढ़ेगा. लेकिन अब सारा दारोमदार इस प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखने पर होगा. क्योंकि अगर जरा भी ढील दी गई या कोई चूक हुई तो भारत के सभी विचार-विमर्श निरर्थक और सारी रणनीति अर्थहीन हो सकती है.
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