सभी लिहाज से भारतीय सुरक्षा बलों के लिए बीता रविवार असाधारण दिन रहा. दक्षिणी कश्मीर के तीन अलग-अलग ठिकानों पर रविवार सुबह को हुई सुनियोजित कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने 13 आतंकवादियों को मार गिराया. सेना एक आतंकवादी को जिंदा पकड़ने में भी सफल रही. मारे गए आतंकवादियों में से 2 पिछले साल कश्मीरी सेना के अधिकारी और कश्मीर के रहने वाले लेफ्टिनेंट उमर फैयाज को अगवा कर उनकी हत्या को अंजाम देने में शामिल थे. जाहिर तौर पर यह सेना, जम्मू-कश्मीर पुलिस और केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों का संयुक्त रूप से बड़ा आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन था.
Encounter concluded. One more terrorist body recovered from Shopian encounter site. In all 12 terrorists neutralised (one more being ascertained), 3 soldiers martyred and 1 terrorist caught alive. It’s unfortunate that stone pelting around encounter site cost 4 civilian deaths. https://t.co/1hD4qPid45
— Shesh Paul Vaid (@spvaid) April 1, 2018
आंतकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच चली मुठभेड़ रविवार को ही खत्म हो गई. शोपियां मुठभेड़ स्थल से एक और आंतकवादी का शव बरामद किया गया है. इस अभियान में कुल 12 आतंकवादी मारे गए (एक और आतंकी के मारे जाने की पुष्टि की जा रही है, 3 जवान शहीद हुए और 1 आतंकवादी को जिंदा पकड़ लिया गया. दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही है कि मुठभेड़ स्थल के आसपास पत्थरबाजी से 4 आम नागरिकों की भी मौत हो गई.
So far 11 militants & 2 civilians believed to be dead in South Kasnmir encounters. Around 8,000 residents of Kachhdora and adjoining villages have engaged troops in clashes with stone pelting. One civilian Zubair of Gopalpora killed, around 100 injured in clashes. Net shut down.
— Ahmed Ali Fayyaz (@ahmedalifayyaz) April 1, 2018
आतंकवाद के खिलाफ इस तरह के व्यापक अभियान को अतिरिक्त नुकसान की कीमत चुकाए बिना अंजाम नहीं दिया जा सकता है. आतंकवादियों और उनके नुमाइंदों के तौर पर काम कर रहे कार्यकर्ताओं/जनता और उनसे सहानुभूति रखने वालों के बीच तालमेल के कारण कश्मीर में परेशानी और ज्यादा है. एनकाउंटर स्थल पर भीड़ के जत्थे का रवाना होने, सुरक्षा बलों को तितर-बितर करने के लिए पत्थर बरसाने और फंसे हुए हुए आतंकवादी को सुरक्षित रास्ता देने की कोशिश और इन सबके दरम्यान गोली और पेलेट गन का शिकार होने की घटनाएं दुर्भाग्य से आम हो चुकी हैं.
बीते रविवार को भी मुठभेड़ के दौरान आतंकवादियों को बचाने में दो नागरिकों की मौत हो गई. बाद में भारत विरोधी प्रदर्शन के दौरान दो नागरिकों की मौत हो गई. दरअसल, इस प्रदर्शन ने हिंसक और उग्र रूप धारण कर लिया था. अंग्रेजी अखबार 'इंडियन एक्सप्रेस' के मुताबिक, दक्षिणी कश्मीर के कुछ हिस्सों में आम नागरिकों और सुरक्षा बलों के 'तीखी झड़प' में 70 से भी ज्यादा के जख्मी होने की खबर है.
Massive funeral procession of the slain militant Eisa Ruhullah attended by over 20,000 people in Soura Srinagar despite government's restrictions on assembly of more than 4 people. Some black flags. Some green flags. Gaining ground in Kashmir. pic.twitter.com/OIlh9oEbuU
— Ahmed Ali Fayyaz (@ahmedalifayyaz) March 12, 2018
दक्षिणी कश्मीर में हुई मठुभेड़ में अब तक 11 आतंकवादी और अन्य; 2 आतंकवादियों के मारे जाने की खबर है. कछोदरा और आसपास के गांवों के करीब 8,000 लोग झड़प और पत्थरबाजी में शामिल रहे हैं. इन झड़पों में गोपालपुरा के रहने वाले नागरिक, जुबैर के मारे जाने और 100 अन्य के जख्मी होने की खबर है.
First Kashmiri terrorist to be draped in black flag of ISIS...!!!!!
(Sajjad Gilkar who lynched DSP Ayub Pandith)Via @asifsuhaf pic.twitter.com/f0ZiASQ0xO
— Manak Gupta (@manakgupta) July 13, 2017
इस पूरे अभियान में 3 जवानों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी. हालांकि, तीन अलग-अलग ठिकानों (शोपियां के दरागढ़ और कछोदरा गांव और अनंतनाग में ब्रेंती दयालगाम) में सर्च और घेराबंदी अभियान के लिए रणनीति बनाने से लेकर इसे एक साथ अंजाम देने तक, इस पूरे अभियान को बड़ी सफलता माना जा सकता है.
बीते साल रिकॉर्ड संख्या में मारे गए आतंकवादी
सुरक्षा बल सेंट्रल कमांड के तहत काम करने वाली अखंड इकाई नहीं हैं. इस ऑपरेशन की सफलता कई मामलों पर निर्भर थी. इनमें सेना और स्थानीय पुलिस के बीच खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान, भारतीय सेना, अर्द्धसैनिक बलों और जम्मू-कश्मीर पुलिस स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप (एसओजी) के फील्ड कमांडरों के बीच तालमेल और सभी तीन एजेंसियों के बीच टीम भावना से कम करने जैसे पहलू शामिल हैं. सुरक्षा बलों को बेहतर मौके का भी फायदा मिला.
पुलिस के मुताबिक, 7 आतंकवादी द्रागढ़ में और पांच शोपियां में मारे गए, जबकि एक और अनंतनाग में ढेर हो गया. आतंकवादी संगठन दुर्लभ मौकों पर ही बड़ी संख्या में एक ठिकाने पर इतनी बड़ी संख्या में अपने लड़ाकों को तैनात करते हैं. वे आमतौर पर कम संख्या में एक जगह पर अपने लड़ाकों को तैनात रखते हैं, ताकि मुठभेड़ की सूरत में कम से कम नुकसान हो. ताजा मामले में 7 आतंकवादी एक स्थान पर मौजूद थे, जबकि 5 एक और ठिकाने पर थे. इसका मतलब यह भी है कि वे अपने ठिकानों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे.
इस ऑपरेशन की सफलता का श्रेय हाल में सेना की रणनीति में बदलाव को भी जाता है. मोबाइल व्हीकल चेक पोस्ट (एमवीसीपी) की बड़े पैमाने पर तैनाती से खुफिया सूचनाओं को इकट्ठा करना आसान हुआ है. कमांड के स्ट्रक्चर में हाल में हुए विकेंद्रीकरण के बाद गैर-कमीशन अधिकारी ऐसी तमाम गतिविधियों की अगुवाई कर रहे हैं. इससे सक्रियता बढ़ी है और अधिकारियों को प्लान तैयार करने और ज्यादा से ज्यादा ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए गुंजाइश बढ़ी है. इस रणनीतिक बदलाव से राज्य में इस साल अब तक 45 आतंकवादी मारे जा चुके हैं.
बीते साल यानी 2017 में आतंकवाद विरोधी अभियानों में 200 से भी ज्यादा आतंकवादी मारे गए. यह आंकड़ा 2010 के बाद सबसे ज्यादा है. 2016 में मारे गए आतंकवादियों की संख्या 165 थी. बहरहाल, आतंकवादियों का सफाया करने में सैन्य बलों की हालिया सफलता के बावजूद हिंसा का चक्र जारी है. इसकी कई वजहें हैं. प्रमुख वजह यह है कि कश्मीर में अधिकांश आतंकवाद अब घरेलू जमीन पर पनपा हुआ है. सुरक्षा बल आतंकवादियों को अलग-थलग करने और उनका सफाया करने में ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं, लेकिन वे राज्य में ज्यादा से ज्यादा युवा कश्मीरियों को हथियार उठाने से रोकने में सक्षम नहीं रहे हैं.
पाकिस्तान के दुष्प्रचार का असरदार तरीके से मुकाबला करने की जरूरत लेफ्टिनेंट जनरल ऑफिसर कमांडिंग, 15 कोर के लेफ्टिनेंट जनरल ए के भट्ट के मुताबिक, कश्मीर घाटी में फिलहाल सक्रिय 250 आतंकवादियों में से तकरीबन आधे 'स्थानीय' हैं. माना जाता है कि इनमें से 120 दक्षिणी कश्मीर में सक्रिय हैं. आतंकवादियों के सफाये से जुड़े अभियान में भट्ट की भूमिका काफी अहम रही है.
भट्ट ने कश्मीर में माता-पिता से अपील जारी की है. उन्होंने माता-पिता से कहा है कि वे बच्चों से आतंकवाद में शामिल नहीं होने का अनुरोध नहीं करें, हालांकि कश्मीर युवाओं के चरमपंथी होने के लिए सेना को दोष देना ठीक नहीं है. सेना दरवाजों और सेवाओं की सुरक्षा कर सकती है, जमीन को संभाल सकती है, जिहादियों का सफाया कर सकती है और यहां तक कि 'सद्भावना कैंपेन' भी चला सकती है, लेकिन उसे राज्य की नीतिगत नाकामी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
कश्मीर में राजनीति और नागरिक प्रशासन पाकिस्तान की तरफ से कश्मीर में चलाए जा रहे दुष्प्रचार अभियान और कश्मीर के भीतर उसकी (पाकिस्तान की) गतिविधियों के मुकाबले में जोरदार तरीके से अपना पक्ष प्रचारित करने और युवाओं को जोड़ने में नाकाम रहा है. वैसे, सुरक्षा बलों ने अपनी तरफ से युवाओं के लिए गुंजाइश बनाने की कोशिश की है.
समाधान मुहैया कराने की तो बात दूर, ऐसा लगता है कि केंद्र और राज्य की सरकारों को समस्या की प्रकृति के बारे में बिल्कुल अंदाजा नहीं है. विभिन्न प्रशासनिक इकाइयों (केंद्र, राज्य और स्थानीय) के बीच इस बात को लेकर कोई साझा आधार नहीं है कि कश्मीर में समस्या सामाजिक है, राजनीतिक या धार्मिक. कश्मीर बीजेपी और पीडीपी की अलग-अलग राजनीतिक मजबूरियों से जुड़े पक्षों के बीच फंसा है और ऐसे में वह चरमपंथ की ढलान पर तेजी से फिसल रहा है.
क्या है खतरा?
यह खतरा काफी वास्तविक है कि वैश्विक स्तर पर रक्षात्मक मुद्रा में पहुंच रहा इस्लामिक स्टेट (आईएसआईएस) अपनी रिकवरी के लिए कश्मीर को ठिकाना बना सकता है. यहां इस तरह की आशंका के लिए माहौल तैयार है. एनडीटीवी के नाजिर मसूदी कश्मीर में हिंसा और आईएसआईएस की बढ़ती मौजूदगी से संबंधित लेख में लिखते हैं, 'दो हालिया एनकाउंटर का संदेश काफी डराने वाला है. भारत और पाकिस्तान में जिहादी सिंडिकेट से प्रभावित चरमपंथी युवा अपना ध्यान और कोशिशें कश्मीर पर लगा रहे हैं.
दो हफ्ते पहले बल्हामा में मारे गए तीन जिहादियों में एक- अबू हमास पाकिस्तानी नागरिक था, जिसने एक साल पहले लश्कर के आतंकी के तौर पर एलओसी (नियंत्रण रेखा) पार किया था, लेकिन बाद में वह कश्मीर में अल-कायदा से जुड़ी इकाई में शामिल हो गया.' अनंतनाग में एक भयंकर एनकाउंटर के दौरान तेलंगाना के मोहम्मद तौफीक यहां आईएसआईएस के एक स्थानीय 'पोस्टर बॉय' आयशा (Eisa) फजीली के साथ मारा गया था...तौफीक को ऑनलाइन चैटरूम के जरिये आईएसआईएस की गतिविधियों से जोड़ा गया और उसके बाद उसे आईएसआईएस हमलों में शिरकत करने के लिए कश्मीर ले जाया गया.
राजनीतिक स्वार्थों के कारण बिगड़ रहे हालात
कश्मीर में आईएसआईएस की तेजी से बढ़ती मौजूदगी के मद्देनजर प्रशासन को इससे निपटने के उपायों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए. हालांकि, कश्मीर के इस मनहूस और डरावने माहौल में प्रशासनिक कर्तव्यों के बजाय प्रशासन की ज्यादा दिलचस्पी राजनीतिक अस्तित्व को बचाए रखने में है. जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अब तक इस समस्या को लेकर इनकार की मुद्रा में रही हैं. उनकी अपनी कैबिनेट के दिग्गज मंत्री और पीडीपी नेता हसीब द्राबू ने हाल में जब यह कहा कि कश्मीर की समस्या राजनीतिक नहीं बल्कि सामाजिक है, तो उन्होंने तुरंत हसीब को राज्य के वित्त मंत्री के पद से हटा दिया.
द्राबू की गलती यह थी कि उन्होंने दिल्ली में हाल में हुई कॉन्फ्रेंस में कहा था कि 'कश्मीर को एक विवादित राज्य या राजनीतिक समस्या के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे सामाजिक मुद्दों या समस्याओं के साथ एक समाज के तौर पर देखने की जरूरत है.' दिलचस्प बात यह रही कि जम्मू-कश्मीर की विपक्षी पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस और अलगवादी नेता और जेकेएलएफ के चेयरमैन यासिन मलिक ने भी द्राबू के इस बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई. इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती भी इससे नाराज गईं. मुफ्ती की कैबिनेट के एक मंत्री ने फर्स्टपोस्ट के समीर यासिर से बातचीत में कहा, 'उन्होंने (द्राबू ने) कभी खुद को बीजेपी के सामने हमारे आदमी के तौर पर पेश नहीं किया, बल्कि वह हमेशा पीडीपी में बीजेपी के आदमी की तरह नजर आए.'
कश्मीर में राजनीतिक हितों के इस स्वप्निल जोड़तोड़ वाले दौर में किसी की भी दिलचस्पी घाटी में जिहादी गतिविधियों को रोकने में नहीं है. यह बात बिल्कुल साफ नजर आ रही है. जब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी, सेना और आतंकवादी हिंसा के दुश्चक्र में फंसे रहेंगे, चाहे गर्मी आए या सर्दी.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
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पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.