भारत और अमेरिका के बीच पहली बार 2+2 वार्ता का आयोजन हो रहा है ऐसे में ये जरूरी है कि इसके महत्व को ध्यान से समझने से कोशिश की जाए. इस वार्ता की घोषणा 14 महीने पहले की गयी थी लेकिन अब तक इसका आयोजन नहीं हो पाया था. दो बार पहले भी इसकी तारीखें तय हो गयी थीं लेकिन आखिरी समय में इसे स्थगित कर दिया गया था. अब आखिरकार गुरुवार से इस वार्ता की शुरुआत हो रही है. ये महत्वपूर्ण मौका शिकायतों की सूची पेश करने का नहीं है, न ही रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर करने या बड़ी रणनीतियों की घोषणा करने और किसी तीसरे देश के खिलाफ साजिश रचने का मौका है.
इस वार्ता का उद्देश्य द्विपक्षीय संबंधों की प्रगति को एक स्थायी संरचना के साथ विस्तार देने के अलावा दोनों देशों के बीच बढ़ती रणनीतिक साझेदारी को अगले स्तर तक पहुंचाना है. इस वार्ता के माध्यम से संभव है कि भारत यूएस की नजर में, एक बड़े रक्षा सहयोगी की तरह से बन कर उभरे. वैसे भारत और अमेरिका के बीच शीर्ष स्तर की बातचीत और विचारों के आदान प्रदान का एक और महत्वपूर्ण फायदा ये है कि इससे दोनों पक्षों को इस रिश्ते से चिढ़ने वाले लोगों की पहचान करने और उनके द्वारा उत्पन्न की, अथवा किए जाने वाले अवरोधकों को समाप्त करने का मौका मिलेगा.
वैसे दोनों देशों के बीच के संबंधों के उतार चढ़ाव को समतल करने के लिए एक स्थायी पार्टनरशिप की आवश्यता है और इसके लिए अगर जरूरी हो तो सहयोग और सामंजस्य के नए-नए रास्ते तलाशे जाने चाहिए. अगर सुरक्षा की सूचनाएं साझा करना दोनों देशों के बीच के संबंधों की नजदीकी को दर्शाता है तो दो प्लस दो वार्ता इसकी नींव को मजबूत करने वाला कार्यक्रम है.
यूएस स्टेट डिपार्टमेंट ने भी अपने बयान में कहा है कि उसे उम्मीद है कि इस बातचीत के माध्यम से दोनों देशों के बीच कूटनीतिक, आंतरिक सुरक्षा और रक्षा संबंधों की मजबूती जैसे विषयों पर खास ध्यान दिया जाएगा. इस उच्चस्तरीय दो प्लस दो वार्ता का प्राथमिक उद्देश्य ये है कि इस बातचीत का कोई ठोस परिणाम निकले जिससे कि दोनों देशों के बीच साझेदारी को और मजबूत बनाया जा सके.
हालांकि अभी दोनों देशों के संबंधों में गर्माहट है और द्विपक्षीय संबंध ऊंचाईयों की ओर बढ़ रहे है लेकिन ये याद रखना जरूरी है कि दोनों देशों के इस मामले में आगे बढ़ने की गति अलग-अलग होगी. ऐसे में धैर्य की आवश्यकता है. एशिया की सुरक्षा संरचना भारत के लिए हमेशा से अपरिहार्य चिंता का विषय बनी रही है. भारत की एक तरफ अस्थिर सीमा पाकिस्तान से जुड़ती है तो दूसरी तरफ अस्थायी सीमा हमारे पड़ोसी मुल्क चीन से लगी हुई है. हमारे दोनों पड़ोसी देश क्षेत्रीय स्तर पर भारत को रोकने के खेल में उलझे पड़े हुए हैं.
नई दिल्ली को डोकलाम के बाद शायद ये समझ में आ गया है कि चीन के साथ खुले रूप से विरोधात्मक रवैया अपनाना बहुत बुद्धिमानी नहीं है. इसी तरह से भारत के ईरान के साथ साथ संबंध बहुत पुराने हैं और सभ्यताओँ से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. भारत ईरान से अपनी ऊर्जा जरूरतों और कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को लेकर जुड़ा हुआ है. रूस के साथ भारत का संबंध अब लभगभ लेन देन वाला ही रह गया है लेकिन वास्तविकता ये है कि नई दिल्ली और मॉस्को के बीच मिलिट्री टेक्निकल कोऑपरेशन इतना गहरा है कि इस रिश्ते को समाप्त करना या कम करना व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है.
ब्रुकिंग्स इंजिया के फेलो ध्रुव जयशंकर पर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं. उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक लेख में कहा है कि भारत की अभी भी मिलिट्री पार्ट्स के लिए रूस पर निर्भरता है ठीक उसी तरह से रूस की भी निर्भरता भारत से इसके एवज में प्राप्त होने वाले मोटी रकम पर है. इसके अलावा भी कुछ ऐसी तकनीक है जो कि रूस भारत को सौंपने को तैयार है जैसे न्यूक्लियर पावर से सुसज्जित सबमरीन. लेकिन अमेरिका शायद ऐसा कभी नहीं करेगा. जयशंकर कहते हैं कि डिफेंस संबंध भारत की जरूरतों को देखते हुए भविष्य के लिए अहम स्थान रखते हैं.
अभी ये यूएस के लिए उम्मीद करना अविवेकपूर्ण होगा कि वो अपनी घरेलू और विदेश नीति के उद्देश्यों को तेजी से पूरा करने के लिए पूरी तरह से भारत से जुड़ जाएगा. हाल ही में ईरान से आयात होने वाले तेल और रूस से मिलने वाली रक्षा सामग्रियों को लेकर भारत का नजरिया अलग रहा है. हालांकि यूएस भारत को इन चिंताओं को उबारने का आश्वासन दे रहा है लेकिन इसके बाद भी नई दिल्ली शायद इन मुद्दों पर और खास करके आपसी रणनीति और सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर उतनी तेज गति से फैसला लेने के लिए इच्छुक नहीं है जितनी की उनसे अमेरिका उम्मीद लगाए बैठा है.
भारत की राजनीतिक व्यवस्था और उसका उपनिवेशीय इतिहास भारत को अमेरिका के साथ फाउंडेशनल मिलिट्री कोऑपरेशन एग्रीमेंट्स जैसे विवादित मुद्दों पर तेज गति से आगे बढ़ने में बाधा उत्पन्न करते हैं. COMCASA (कम्यूनिकेशन कांपेटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्रीमेंट) पर भी प्रगति धीमी है जिसमें अंजान भय जनता के संवाद पर भारी पड़ता दिखता है और उससे राजनीतिक अड़चनों के भी सामने आने की संभावना बनी रहती है. जल्दी ही शुरू होने वाली वार्ता सहयोग के क्षेत्रों की स्थिति को समझने का एक अच्छा अवसर है. इसको लेकर सहमति और असहमति दोनों पर विचार करने की गुंजाइश है.
परिणाम:
COMCASA को लेकर कुछ प्रगति के आसार हैं हालांकि हाल की मीडिया रिपोर्टों में इस बात के संकेत दिए गए गए हैं कि एक तय लाइन को लेकर इस वार्ता के दौरान समझौता नहीं होगा. हां हम ये उम्मीद जरूर कर सकते हैं कि इस मामले पर सैद्धांतिक रूप से सहमति बन जाए जो आगे चलकर इसके औपचारिक रूप में तब्दील करने की राह आसान कर दे. भारत ने LEMOA पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. ये तीन फाउंडेशन मिलिट्री कोऑपरेशन एग्रीमेंट्स में पहला है.
COMCASA को लेकर अमेरिका ने भारतीय हितों को ध्यान में रखते हुए कुछ बदलाव किया है. ऐसे में COMCASA पर हस्ताक्षर हो जाने से संभव है कि बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (BECA) का भी रास्ता खुल जाए. ये तीसरा फाउंडेशनल समझौता है जो कि कि दोनों देशों के बीच जटिल सेटेलाइट डेटा के आदान-प्रदान की सहमति प्रदान करता है जिससे की नेविगेशन और मिसाइल टारगेटिंग में मदद मिलती है.
COMCASA को लेकर भारत की चिंता एक तरह से अत्यधिक प्रतिक्रिया से जुड़ी हुई है जो कि इसके कोल्डवार के खुमार से उत्पन्न हुई है.अमेरिका अगर चाहता है कि वो भारतीय कम्यूनिकेशन नेटवर्क पर नजर रखे तो वो ऐसा करने में सक्षम है, और वो एग्रीमेंट साइन किए हुए अथवा बिना किए हुए भी ऐसा आसानी से कर सकता है. ओआरएफ फेलो अभिजीत सिंह ने लाइव मिंट में लिखा है कि भारत के लिए ये एक निराशाजनक पहलू है कि समझौते के बिना वो अपनी सेना के लिए यूएस से उच्च तकनीक वाले सैन्य साजो सामान प्राप्त नहीं कर पा रहा है.
काउंटर टेरेरिज्म पर जबरदस्त प्रगति हुई है. मीडिया रिपोर्टों में इस बात के संकेत मिले हैं कि दोनों पक्षों के अधिकारी इस संबंध में एक ड्राफ्ट तैयार कर रहे हैं जिसमें टेरर फाइनेंसिंग और साइबर सिक्योरिटी को लेकर एंटी टेरर कोऑपरेशन के लिए इंटेलीजेंस सूचनाएं साझा की जा सके.
हम ये भी उम्मीद कर सकते हैं कि मिलिट्री इनोवेशन से जुड़े संयुक्त प्रोजेक्टस पर अधिकारियों की क्रास पोस्टिंग्स से संबंधित किसी तरह की कोई घोषणा हो. हिंदू अखबार ने हाल ही में रिपोर्ट किया है कि यूएस डिफेंस इनोवेशन यूनिट एक्सपेरिमेंटल (DIUx)और भारत में हाल ही में शुरू की गयी इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस (iDEX) के अधिकारी ज्वाइंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स के लिए एक दूसरे के यहां जाकर काम कर सकेंगे.
इस समझौतों के अलावा दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन की शुरुआत हो सकती है. भारत की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और अमेरिका के डिफेंस सेक्रेटरी जेम्स मैटिस के बीच सीधी बातचीत करने के लिए हॉटलाइन शुरू किए जाने की संभावना है. उसी तरह से भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और अमेरिका में उनके समकक्ष माइक पॉम्पियो के बीच भी हॉटलाइन शुरू होने के आसार हैं. इसके अलावा यूएस नेवल फोर्सेज सेंट्रल कमांड (NAVCENT), जो कि बहरीन में स्थित है वहां पर भरतीय नेवी लायसन ऑफिसर को नियुक्त किया जा सकता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक दोनों पक्षों में इस बात पर समझौता हो सकता है कि हिंद महासागर के क्षेत्र में जहाजों के आने जाने को लेकर दोनों पक्षों के बीच सूचनाओं का आदान प्रदान किया जा सके.
इन सबके अलावा हमें कुछ विषयों पर औपचारिक बयान भी सुनने को मिल सकता है जैसे कि अमेरिका के भारत के साथ सुरक्षा संबंधों की अहम कड़ी, इंडो-पेसिफिक मुद्दे और इंफ्रास्ट्रक्चर इनीशिएटिव पर भी कुछ घोषणा होने की संभावना है.
2+2 वार्ता के फॉरमेट का अंतिम परिणाम दोनों तरफ की सरकारों के अलग अलग स्तरों पर होने वाले सहयोग को बढ़ाने की कोशिश करेगा जिससे कि उच्चस्तर पर किया गया सहयोग और सामंजस्य बातचीत के द्वारा शासन के निचले स्तर तक भी पहुंच सके. इससे वार्ता के लिए तैयार की गयी रूपरेखा को उच्चस्तर पर केवल शेड्यूल की समस्या से रोका नहीं जा सकेगा. हां, मंत्रीस्तर की बातचीत को एक सालाना कार्यक्रम के तहत नियंत्रित किया जा सकता है.
विरोध की वजह
रूस पर अमेरिकी प्रतिबंधों के बारे में काफी कुछ पहले ही लिखा जा चुका है. इन प्रतिबंधों की वजह से अत्याधुनिक तकनीक वाले एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम की रूस से खरीद सीधे CAATSA की श्रेणी में फंस जा रही है. कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अपनी रक्षा जरूरतों के लिए खरीदे जाने वाले S400 ट्रायम, जो कि सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल सिस्टम है, उसको खरीदने के लिए नीतियों में बदलाव की जरुरत है.
पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश के शासन मे काम कर चुके शीर्ष राजनयिक एशले टेलीस का कहना है कि भारत को इस मत्वपूर्ण सैन्य सामाग्री को खरीदने के दृष्टिकोण में बदलाव लाने की जरुरत है. वर्तमान में कार्नी एंडाउमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस में सीनियर फेलो के रुप में काम कर रहे टेलीस ने कार्नी के लिए लिखा है कि-भारत के पास मुख्य रुप से तीन विकल्प है 1. भारत रूस के साथ इस डील को रद्द कर दे. 2. इस डील के लिए दी जाने वाली राशि को कुछ समय के लिए रोक दे और परिस्थितयों के बदलने का इंतजार करे. 3. ट्रंप के साथ डील करके एक बड़ा डिफेंस डील अपने नाम कर ले, जिससे की अमेरिकी राष्ट्रपति भी भारत को इस डील के एवज में कुछ छूट देने के लिए राजी हो जाएं.
प्रतिबंधों की धमकी के बाद भी भारत ने ये दोहराया है कि रूस के साथ 6 बिलियन डॉलर की कीमत से खरीदे जाने वाले पांच SAM वाली डील रद्द नहीं की जाएगी. इससे नाराज यूएस ने भारत को आगाह करते हुए कहा है कि उन्हें सहज छूट की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए.
ये कूटनीति के लिए बहुत सोच विचार कर कदम उठाने वाली स्थिति है. जरूरी है कि भारत ईरान के साथ अपने एनर्जी पार्टनरशिप को जारी रखने के लिए तर्कसंगत तरीके से अपनी बात को रखे. जैसे नई दिल्ली वाशिंगटन को ये समझा सकता है कि ईरान से तेल का व्यापार स्थगित करने से अफगानिस्तान में भारत के प्रयासों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है.
अफगानिस्तान ऐसा देश है जहां अमेरिका चाहता है कि भारत वहां कुछ ज्यादा काम करे. ऐसे में अगर भारत अगर अपने व्यापारिक संबंध ईरान के साथ समाप्त कर लेता है और ईरान इसके बदले चारों तरफ जमीन से ही घिरे अफगानिस्तान तक पहुंचने का रास्ता भारत को देने से इंकार कर देता है तो भारत के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है क्योंकि भारत के लिए दूसरा रास्ता पाकिस्तान होकर जाता है और वहां से जाना भारत के लिए संभव है नहीं.
हालांकि दो देशों के बीच इस लेन देन के खेल के बीच एक बड़े परिदृश्य को नजरंदाज करने का जोखिम नहीं लिया जा सकता है. इसे पूर्व भारतीय डिप्लोमैट ललित मान सिंह ने न्यूयार्क टाइम्स को बड़े अच्छे से बताया है.'सरकार के अंदर और बाहर दोनों की सोच बदली है, चीन हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा है और अगर आप चारों तरफ देखेंगे की हमें चीन से रक्षा कराने में कौन सक्षम है तो आप पाएंगे की वो अमेरिका ही है.'
ये भौगोलिक वास्तविकता, दूसरी अन्य चिंताओं से ऊपर है ऐसे में भारत और अमेरिका के संबंध रणनीतिक और कूटनीतिक रुप से मजबूत ही होंगे और बातचीत इसमें अहम भूमिका निभा सकती है.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.