15 अगस्त 1947 को देश ने पहली बार आजादी को अपने गले लगाया था. ये जश्न मनाने का मौका था और उन शहीदों को याद करने का भी मौका था,जिन्होंने हंसते-हंसते देश को आजाद कराने के लिए अपनी जान दे दी.
14 अगस्त को आधी रात में वायसराय लॉज(मौजूदा राष्ट्रपति भवन) से पंडित नेहरू ने ऐतिहासिक भाषण 'ट्रिस्ट विद डेस्टनी' दिया था. इस भाषण में उन्होंने आजाद भारत के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें कही थीं.
लेकिन हैरानी की बात यह थी कि नेहरू के इस भाषण को देश को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी ने नहीं सुना था. अब सवाल उठता है कि नेहरू को एक नेता के रूप में पसंद करने वाले गांधी ने आजाद भारत का पहला ऐतिहासिक भाषण क्यों नहीं सुना था.
क्या हुआ था उस रात को?
14 अगस्त को रात 9 बजे ही गांधी सोने चले गए थे इसलिए वह नेहरू के भाषण को नहीं सुन सके थे. उस समय नेहरू देश के प्रधानमंत्री नहीं बने थे. नेहरू के इस भाषण को पूरी दुनिया ने सुना था क्योंकि यह आजाद भारत का पहला ऐतिहासिक भाषण था. लेकिन खुद नेहरू को भी इस बात का मलाल रहा होगा कि महात्मा गांधी उनके भाषण के गवाह न बन सके.
अपने भाषण की शुरुआत करते हुए नेहरू ने कहा था, 'कई साल पहले हमने भाग्य को बदलने का प्रयास किया था और अब वो समय आ गया है जब हम अपनी प्रतिज्ञा से मुक्त हो जाएंगे. पूरी तरह से नहीं लेकिन ये महत्वपूर्ण है. आज रात 12 बजे जब पूरी दुनिया सो रही होगी तब भारत स्वतंत्र जीवन के साथ नई शुरूआत करेगा'
उन्होंने कहा था, 'ये ऐसा समय होगा जो इतिहास में बहुत कम देखने को मिलता है. पुराने से नए की ओर जाना, एक युग का अंत हो जाना,अब सालों से शोषित देश की आत्मा अपनी बात कह सकती है. यह संयोग है कि हम पूरे समर्पण के साथ भारत और उसकी जनता की सेवा के लिए प्रतिज्ञा ले रहे हैं. इतिहास की शुरुआत के साथ ही भारत ने अपनी खोज शुरू की और न जाने कितनी सदियां इसकी भव्य सफलताओं और असफलताओं से भरी हुई हैं.'
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