दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत की सबसे बड़ी न्यायपालिका सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि दो व्यस्क समलैंगिकों के बीच सहमति के द्वारा किया गया सेक्स या किसी भी तरह का यौन संबंध अपराध नहीं है.
अब, उच्चतम न्यायालय के ताज़ा फ़ैसले के मुताबिक किसी भी इंसान की सेक्सुअल ओरियेंटेशन यानी पसंद के आधार पर उसके साथ भेदभाव करना, उसके मौलिक अधिकारों का हनन है.
ऊपरी अदालत के इस फैसले के आने के साथ ही, कोर्ट के बाहर खड़े हज़ारों एलजीबीटी राइट्स् कार्यकर्ता खुशी से रो पड़े. हालांकि, शहरी भारत में रहने वाली आबादी का एक बड़ा वर्ग धारा-377 को खत्म करने के पक्ष था, लेकिन इसके बावजूद कई पारंपरिक, धार्मिक और सामाजिक संगठन इसके खिलाफ़ खड़े हैं. उनके विरोध की एकमात्र वजह इस तरह के संबंधों का अनैतिक, अधार्मिक और गैरसामाजिक होना बताया जाता है.
दुनिया भर के इतिहास में सेम-सेक्स रिलेशनशिप की चर्चा बार-बार हुई है
इतिहास की तरफ अगर हम रुख करें तो पाएंगे कि सेम-सेक्स रिलेशनशिप के बारे में समय-समय पर चर्चा होती रही है, देश ही नहीं पूरी दुनिया में. इसे अक्सर दो पुरुषों के बीच सामान्य गहरी दोस्ती को समाज में स्वीकृति मिलने से लेकर, इसे पाप-पुण्य और वर्जित क्रिया के तौर पर देखा जाता रहा है. 1976 में किए गए एक शोध में ग्वेन ब्रोदे और सराह ग्रीन नाम के दो स्कॉलर्स ने अपने शोध के ज़रिए ये जानकारी दी कि एक स्टैडर्ड क्रॉस कल्चरल सैंपल से ये पता चलता है कि एथनोग्राफिक शोध में ये सामने आया है कि दुनिया में 42 समुदायों में समलैंगिक संबंधों को या तो अपनाया गया या उसे नजरअंदाज किया गया. इनमें से 9.5 समुदाय समलैंगिकता से पूरी तरह से अंजान थे, 11 इसके वर्जित मानते थे, 17 इसे पूरी तरह से गलत मानते थे. कुल 70 समुदायों में से 41 में इसकी उपस्थिती नहीं के बराबर थी जबकि 29 समुदायों में समलैंगिक रिश्ते मौजूद थे और उसे असामान्य नहीं माना जाता था.
प्राचीन ग्रीस में इसके होने की बात कही जाती है. हालांकि, बाद में अब्राहिमिक धर्म के असर के बाद इसे अप्राकृतिक या प्रकृति के विरुद्ध अपराध के तौर पर जाना जाने लगा था. लेकिन, इतिहास के कई बड़े नामों जैसे सुकरात, लॉर्ड बैरॉन, एडवर्ड 2 और हैद्रियान के बारे में जब भी बात होती है तो उनके नामों के साथ बायसेक्सुअल या गे शब्द का प्रयोग किया जाता है.
बाद में यूरोप की सभ्यता से पहले, वहां के कई देशों ने ऐसे लोगों को अपने यहां मान्यता दे रखी थी जिन्हें- ‘टू-स्पिरीटेड पीपल’ कहा जाता था. जो आमतौर पर समलैंगिक हुआ करते थे. दुनिया भर के अलग-अलग संस्कृतियों में ऐसे लोगों के लिए अलग-अलग संबोधन का इस्तेमाल होता था. आधुनिक भारत में भी जिसे काफी हद तक स्वीकार कर लिया गया. जिसका शाब्दिक अर्थ – एक देह में दो जेंडर की भावनाओं का होना माना जाता था. ये भावनाएं स्त्री और पुरुष दोनों की हो सकती थीं.
सभ्यता के साथ-साथ फला-फूला
कई किताबों, शोध पत्रों और ऐतिहासिक पुस्तकों के जरिए ये पता चलता है कि समलैंगिकता की मौजूदगी और उसका फैलाव सभ्यता के फलने-फूलने के साथ ही दुनिया के हर कोने में पहुंचा. जिसमें यूरोप, मिडिल ईस्ट, मेसोपोटैमिया, अफ्रिका और एशिया शामिल हैं.
पौराणिक हिंदू कथाओं में भी ऐसे देवी-देवताओं का जिक्र किया गया जो स्त्री और पुरुष दोनों के भेष धरने में पारंगत थे. ऐसे देवी देवताओं और यहां तक कि राक्षसों के बारे में रामायण, महाभारत, पुराण और वेद में भी कहा गया है. लेकिन, इसका ज़िक्र करते हुए अक्सर पुनर्जन्म, अवतार, श्राप और वरदान जैसे शब्दों का सहारा लिया गया.
भगवान शिव के लिए इस्तेमाल किए गए संबोधन ‘अर्धनारीश्वर’ का मतलब ही ये होता है- ‘ऐसा पुरुष जिसका आधा शरीर स्त्री का हो.’ इसके अलावा लक्ष्मी-नारायण, भगवान अयप्पा भी इससे मिलते-जुलते उदाहरण हैं. महाराभारत के जिस चरित्र को भारत के पौराणिक इतिहास में सबसे ज़्यादा महत्व दिया गया वो शिखंडी था, जो न पूर्ण स्त्री थे न पुरुष.
प्राचीन भारत के इतिहास में भी लिखा गया है
इतिहास की तरफ देखें तो पाएंगे कि प्राचीन भारत के इतिहास में अर्थशास्त्र में विविध तरह के यौनिक क्रियाओं के बारे में लिखा गया है. मसलन, किसी अविवाहित कुंवारी लड़की का कौमार्य भंग करने की सजा जहां मामूली होती थी, लेकिन समलैंगिक क्रियाओं चाहे दो स्त्री के बीच हो या दो पुरुष के बीच उसके लिए कड़ी से कड़ी सजा के बारे में बताया गया है. जिसमें गाय के शरीर से उत्पन्न होने वाले पांच चीजों को खाने का दंड मौजूद बताया गया है. यानी, समलैंगिक क्रिया इंसान को उसके धर्म, जाति और समाज से बहिष्कृत कर देता था.
मुगल शासन के दौरान भी दिल्ली सल्तनत में फतवा-ए-आलमगिरी जैसे कानून का जिक्र है, जो ‘ज़ीना’ यानी गैरकानूनी संभोग के लिए दिया जाता था. इसमें सजा के तौर पर कोड़े बरसाने से लेकर, फांसी पर लटकाने तक शामिल था. फ्रेंच यात्री जोहान स्टैवोरिनस ने भी लिखा है कि समलैंगिकता न सिर्फ पूरी दुनिया में मौजूद है बल्कि कई बार ये पाश्विक भी हो जाया करता था. ख़ासकर, बकरी और भेड़ जैसे पालतू जानवरों के साथ क्रूरता की जाती थी. जिसके बाद ब्रिटिश शासन आया और उसने साल 1861 में धारा-377 लागू कर इस तरह के रिश्ते को अपराध की श्रेणी में डाल दिया.
लेकिन आधुनिक भारत के बुद्धिजीवी वर्ग ने लगातार इस दिशा में लोगों को जानकारी मुहैया कराने और इस तरह के संबंधों को लेकर जागरूक करने की दिशा में काम करते रहे. मशहूर गणितज्ञ शकुंतला देवी ने साल 1977 में पहली बार इस विषय पर किताब लिखी- जिसका नाम था, ‘स्टडी ऑफ होमोसेक्सुअलिटी’ इन इंडिया. उसके बाद सलीम किदवई और रूथ-वनीता ने ‘सेम-सेक्स लव इन इंडिया,’ नाम से किताब लिखकर इस सामाजिक टैबू को तोड़ने की कोशिश की. बाद के वर्षों में देवदत्त पटनायक ने, ‘डिड होमोसेक्सुअलिटी एक्ज़िस्ट इन इंडिया,’ पर काफी कुछ लिखा है.
दुनिया के इतिहास में अगर देखें तो ऐसे कई सनसनीखेज़ रिश्तों के बारे में वहां लिखा गया है- जिसमें क्वीन एन्न और सराह चर्चिल, जेम्स और जॉर्ज विलियर्स, मार्शेला ग्रैसिया और एलीज़ा सांचेज़ शामिल हैं. भारत के इतिहास में भी ऐसे किरदार मौजूद हैं जिन्होंने सामाजिक दायरों से आगे बढ़कर अपने रिश्ते निभाए. जैसा कि देवदत्त पटनायक कहते हैं- भारत का पौराणिक और आधुनिक इतिहास इस बात के दर्जनों उदाहरण देता है कि समलैंगिक रिश्ते समाज का एक हिस्सा थे, लोग उनसे अंजान तो बिल्कुल नहीं थे, बस मान्यता या स्वीकृति नहीं दे रहे थे. कोर्ट के ताजा फैसले ने स्वीकार्यता की उसी जरूरत को पूरा किया है.
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