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किसानों की विधवाएं: पति, परिवार और सरकार ने बना दिया लाचार

आत्महत्या कर चुके किसानों की विधवाओं को सरकारी योजनाओं का लाभ पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है

Updated On: Nov 23, 2018 05:21 PM IST

Varsha Torgalkar

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किसानों की विधवाएं: पति, परिवार और सरकार ने बना दिया लाचार

35 वर्षीय विधवा आशा दोईफोडे के पति ने 2015 में आत्महत्या कर ली थी. उनके पति ने बैंक और निजी ऋणदाता से छह लाख रुपए का लोन लिया था. वे उस लोन को नहीं चुका पाए थे और आत्महत्या कर ली थी. अब आशा ही वो लोन चुका रही हैं. मराठवाड़ा के उस्मानाबाद जिले के सरोला गांव की निवासी आशा दोईफोडे सूखा प्रभावित क्षेत्र से आती है. वह दूसरों के खेत में काम कर के अपना गुजारा करती हैं. उनका ससुर दो एकड़ जमीन उनके नाम पर देने के लिए तैयार नहीं है. उनके ससुराल वाले चाहते है कि उनके बेटे की मौत के बाद आशा उनके साथ न रह कर अपने मायके में रहे. वे लोग अपने बेटे की आत्महत्या के लिए आशा को ही दोषी ठहराते है और अक्सर उसे परेशान करते हैं.

आशा अब अपने पति के पुश्तैनी घर से अलग ही स्थित एक घर में रहती है. राज्य सरकार आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाओं को एक लाख रुपए का भुगतान करती है, लेकिन आशा को अब तक एक लाख रुपए की सहायता भी नहीं मिली है. वह पैसा क्या बैंक ने कर्ज के बदले काट लिया है, इसकी जानकारी भी आशा को नहीं है. वह प्रति माह 600 रुपए पेंशन की कदार है लेकिन वह भी आशा को नियमित रूप से नहीं दिया जाता है.

A farm worker looks for dried plants to remove in a paddy field on the outskirts of Ahmedabad, India

प्रतीकात्मक तस्वीर

हर आशा के जीवन में निराशा

इस तरह की कहानी अकेले आशा की नहीं है. 1995 से 2015 तक महाराष्ट्र में कृषि संकट के कारण 65,000 किसानों ने आत्महत्या की हैं. उनमें से 90% पुरुष हैं. यानी ज्यादातर अपने पीछे अपनी पत्नी और बच्चों का अंधकारमय भविष्य छोड़ कर गए हैं. आज उनकी पत्नियां और बच्चें अपनी जिंदगी की लड़ाई खुद लड़ने को मजबूर हैं. उनकी स्थिति बदतर है, क्योंकि जमीन और घर उनके नाम पर स्थानांतरित नहीं किया जाता है. उनके ससुराल वालों ने उनकी ज़िम्मेदारी उठाने से इनकार कर दिया और अक्सर ऐसी महिलाओं का उत्पीड़न भी किया जाता है.

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परिवार की तरफ से ऐसी महिलाओं और बच्चों को खुद अपनी देखभाल करने के लिए अकेला छोड़ दिया जाता है. अकेली महिलाएं अक्सर यौन हमले का शिकार भी बन जाती हैं. 2005 से सरकार ने किसानों के हित के लिए 24 जीआर जारी किए हैं, लेकिन फिर भी इन महिलाओं को उनके लाभ पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.

महिला किसानों के लिए काम करने वाले एक नेटवर्क, महिला किसान अधिकारी मंच ने सितंबर और अक्टूबर के दौरान, 2012 और 2018 के बीच आत्महत्या करने वाले किसानों की विधवाओं का एक सर्वे किया. सर्वे में मराठवाड़ा और विदर्भ के 11 जिलों की सभी जातियों और धर्मों की ऐसी महिलाओं को शामिल किया गया है. यह सर्वे महिला किसान अधिकारी मंच से जुड़े 19 संगठनों द्वारा किया गया था. न पेंशन, न जमीन.

सरकार विधवाओं को प्रति माह 600 रुपए की पेंशन प्रदान करती है. लेकिन सर्वे के अनुसार, केवल 34% महिलाओं को ही उनकी पेंशन अनुमोदित हुई और शेष महिलाएं पेंशन प्राप्त नहीं कर पाईं. या तो उन्हें पता नहीं था या उनके आवेदन अस्वीकार कर दिए गए थे. जैसे आशा दोइफोदे कहती हैं, ‘सरकार ने वे उस अवधि के लिए 2-3 महीने में एक बार पेंशन दिया और हर बार अधिकारी रिश्वत के रूप में 100 रुपए लेते थे.’

29% महिलाएं अपने नाम पर जमीन नहीं पा सकी थीं और 43% अपने नाम में घर नहीं ले पाई थी. उस्मानाबाद की 33 वर्षीय विधवा रानी मोरे ने कहा, ‘तीन साल पहले मेरे पति ने आत्महत्या कर ली थी. उनकी मौत के बाद मेरे ससुराल वाले मेरे नाम पर भूमि स्थानांतरित करने के लिए तैयार नहीं हैं. उनलोगों ने सूखा प्रभावित क्षेत्र को मिलने वाले सभी सरकारी अनुदान और सब्सिडी ले लिए. मुझे कुछ नहीं मिला. कम से कम, वे मुझे खेती के लिए जमीन ही दे देते ताकि मैं अपने दो बच्चों का ख्याल रख सकूं.’

केवल 52% महिलाओं के पास स्वतंत्र रूप से राशन कार्ड हैं. हालांकि, नियम ये है कि आत्महत्या प्रभावित परिवार की महिलाओं को बिना किसी प्रकार के आवेदन के उन्हें उनके नाम से स्वतंत्र राशन कार्ड मिलना चाहिए और उन्हें इस काम के लिए प्राथमिकता समूह में शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन कई महिलाएं शिकायत करती हैं कि अधिकारियों ने दस्तावेजों की कमी जैसे विभिन्न कारण बता कर राशन कार्ड देने से मना कर दिया.

MSP for paddy hiked by Rs 200 Jammu: A worker carries a bundle of paddy saplings to plant them on a field at Suchetgarh of Ranbir Singh Pura sector near the India-Pakistan international border, about 25 km from Jammu on Wednesday, July 04, 2018. The government today hiked the minimum support price for paddy by a steep Rs 200 per quintal as it looked to fulfil its poll promise to give farmers 50 per cent more rate than their cost of production. (PTI Photo) (PTI7_4_2018_000126B)

सरकारी योजनाओं का झुनझुना

कक्षा 1 से 12वीं के 355 बच्चों में से केवल 12% को शुल्क रियायत मिली और केवल 24% को वर्दी और किताब के रूप में सहायता मिली. एक और विधवा संगिता कोकर ने कहा, ‘मुझे अपनी चार बेटियों के किशोरावस्था में आते ही शादी करनी पड़ी क्योंकि वह उनकी शिक्षा का खर्च वहन नहीं कर सकती थीं.’ हालांकि सरकारी अस्पताल और क्लीनिक द्वारा आत्महत्या प्रभावित परिवारों के सदस्यों को मुफ्त स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराई जानी चाहिए, वास्तविकता इसके ठीक उलट है. अक्टूबर 2016 से, 69 परिवारों की सर्जरी हुई थी और 49% को तो योजना के बारे में कुछ पता ही नहीं था. 19% विधवा महिलाएं इस योजना का लाभ प्राप्त नहीं कर पाई और 22% को इस सुविधा का लाभ उठाने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देना पड़ा.

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सरकार मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रेरणा योजना चलाती है. इस योजना के तहत ऐसे परिवारों को मानसिक स्वास्थ्य के लिए मुफ्त उपचार मिलता है. 2015 से, 137 परिवारों में मानसिक बीमारी का पता चला लेकिन 61% मानसिक रोगियों को इलाज ही नहीं मिला. 28% मानसिक रोगी सरकारी अस्पतालों में गए और उनमें से अधिकांश को अभी भी निजी डॉक्टरों से इलाज करवाना पडा और दवाइयों और उपचार पर पैसे खर्च करने पड़ते थे.

महिलाओं की समस्या इतनी अधिक है, जिसकी कोई कल्पना तक नहीं कर सकता है. उस्मानाबाद के कलांब तालुका की सविता शेलार ने कहा, ‘चूंकि मेरे पति की मृत्यु हो गई है, इसलिए मेरे सास-ससुर मुझे हमेशा परेशान करते रहते हैं. वे कहते है कि मेरे पति की की मृत्यु मेरी वजह से हुई और इसलिए मुझसे हर समय दुर्व्यवहार करते रहते हैं. अगर मैं पड़ोसियों से बात करती हूं तो वे उनसे बात न करने के लिए कहते हैं. मेरा मायका इतना गरीब है कि वे लोग भी मुझे समर्थन नहीं दे सकते है. मेरे परिवारवालों ने मेरा बिजली कनेक्शन काट दिया और यदि मैं पड़ोसी से सब-कनेक्शन लेती हूं, तो पुलिस से शिकायत करने की धमकी देते हैं.’

भारत की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी खेती-बाड़ी के काम से जुड़ी है

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चाहिए एक अलग नीति

इसलिए, महिला किसान अधिकार मंच चाहता हैं कि सरकार किसानों की विधवाओं के मुद्दों को हल करने के लिए अलग नीति तैयार करे. इसकी मांग करते हुए, महिला किसान अधिकार मंच ने 21 नवंबर को मुंबई के आजाद मैदान में एक शोक बैठक की.

महिला किसान अधिकार मंच की सीमा कुलकर्णी ने कहा, ‘वर्तमान में एक लाख रुपए की जो सहायता किसानों की विधवाओं को दी जाती है, उसे बढ़ाकर पांच लाख रुपए किया जाना चाहिए. विधवाओं की पेंशन दोगुनी होनी चाहिए और उन्हें यह पेंशन समय पर दी जानी चाहिए. आत्महत्या प्रभावित परिवारों के बच्चों को मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए. महिलाओं को बिना किसी बाधा और कागजी प्रक्रिया के स्वतंत्र राशन कार्ड मिलना चाहिए. सरकारी अस्पतालों और क्लीनिकों को उन्हें मुफ्त स्वास्थ्य सेवा प्रदान करनी चाहिए. वर्सा पंजीकरण के लिए एक विशेष अभियान चलाया जाना चाहिए.’

उन्होंने कहा, ‘किसानों की विधवाओं को रोजगार गारंटी योजना के तहत रोजगार मिलना चाहिए. उन्हें टिकाऊ खेती के लिए सिंचाई योजनाओं के लाभ दिए जाने चाहिए. ऐसी महिलाओं के खिलाफ हिंसा और यौन हिंसा की सुनवाई करने के लिए विशेष अभियान चलाया जाना चाहिए और शिकायत समितियों और सतर्क समितियों जैसे तंत्र व्यवस्था होनी चाहिए. किसानों की विधवाओं के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए.’

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