बिहार में बालू सोने की तरह बिकती है. 2008 के वैश्विक मंदी के बाद सोने के भाव तो कमोबेश स्थिर हैं. लेकिन, बिहार में बालू को सोने के भाव बेचा जा रहा है. आज की तारीख़ में बिहार में एक ट्रक बालू 15 हजार से 18 हजार रुपए का मिलता है. बालू के दाम में ये उछाल पिछले दो साल से आया है. खास तौर से तब से जब इसके अवैध खनन और कारोबार पर सरकार ने सख्ती करनी शुरू की. बालू माफियाओं के लिए इसका अवैध खनन और कारोबार काफी मुनाफे का धंधा है. वो ये काला धंधा राजनेताओं, पुलिस और अधिकारियों के अलावा भूविज्ञान विभाग की मिलीभगत से करते हैं.
बिहार के करीब एक दर्जन जिलों में बालू माफिया का बेहद शातिर जाल बिछा हुआ है. बालू की डकैती के शिकार जिलों में राजधानी पटना के साथ-साथ सारन, भोजपुर, औरंगाबाद, बांका, लखीसराय, गया, अरवल और पश्चिमी चंपारण के जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. एक मोटे सरकारी अनुमान के मुताबिक अवैध बालू खनन की वजह से बिहार सरकार को हर साल 600-700 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है.
बिहार का खान और भूविज्ञान विभाग जुलाई 2017 से अब तक अवैध खनन माफिया के साथ मिलीभगत के आरोप में 11 कर्मचारियों को बर्खास्त कर चुका है. जबकि 22 दूसरे कर्मचारियों को इन्हीं आरोपों चलते निलंबित कर दिए गए हैं. इसके अलावा 3 रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन भी बालू माफिया से मिलीभगत के आरोप में रोक दी गई है. बालू माफिया के खिलाफ गंभीरता से कार्रवाई करने वाले अधिकारियों के तबादले तो आम बात हैं.
कीमतें आसमान पर, फिर भी सरकार को घाटा
बिहार का खनन विभाग 100 वर्ग फुट बालू पर महज 400 रुपए का टैक्स लगाता है. इसके अलावा 100 रुपए प्रति वर्ग फुट का लोडिंग चार्ज लगता है, जो ठेकेदार को मिलता है. साथ ही बालू पर प्रति 100 वर्ग फुट पर 20 रुपए का वैट लगता है. लेकिन निजी डीलरों का दावा है कि इतना कम टैक्स होने के बावजूद बिहार में बालू को 6 हजार से लेकर 8 हजार वर्ग फुट की दर से बेचा जा रहा है. यही वजह है कि 200 वर्ग फुट बालू लादने वाली ट्रैक्टर की एक ट्रॉली से लेकर 400 वर्ग फुट बालू लेकर चलने वाले ट्रक 12 से 24 हजार रुपए तक में बेचे जा रहे हैं. अगर एक ट्रक में 400 फुट बालू लदा है, तो भी ठेकेदार को इसकी लागत 2080 रुपए ही पड़ती है. इसमें से 1600 रुपए सरकार को दिया जाने वाला टैक्स भी शामिल होता है. इसके अलावा 400 रुपए उसे लोडिंग चार्ज के तौर पर मिलते हैं और 80 रुपए का वैट देना पड़ता है. लेकिन, बालू का बाजार भाव इस बात पर निर्भर करता है कि उसे ढोकर कितनी दूर तक ले जाया जा रहा है. लोडिंग करने वाले ठेकेदार बालू को कभी भी नदी की तलछट के करीब नहीं बेचते. बल्कि वो इसे दूर बनाए गए गोदाम से ही बेचते हैं.
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बिहार में पिछले तीन साल से बालू पर टैक्स से होने वाली कमाई का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका है. 2015-2016 में बालू पर टैक्स से कमाई का लक्ष्य 1000 करोड़ था. मगर, सरकार केवल 971 करोड़ यानी 97.10 फीसद ही वसूली कर सकी. इसी तरह 2016-17 में बालू पर टैक्स से कमाई का टारगेट 1100 करोड़ था, लेकिन, सरकार की इस से कमाई हुई केवल 994 करोड़ यानी 90.37 फीसद. बिहार सरकार ने 2017-18 में बालू पर टैक्स से कमाई का 1350 करोड़ का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया था. लेकिन, सरकार इस लक्ष्य का महज़ 80.20 फीसद यानी 1082 करोड़ ही वसूल सकी.
बालू से कमाई के टारगेट और असली वसूली के बीच बढ़ते इस फासले के लिए बालू खनन पर लगी पाबंदी को जिम्मेदार ठहराया जाता है. बालू खनन पर ये रोक राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी एनजीटी के निर्देश पर लगाई गई है. एनजीटी ने निर्देश दिया है कि बालू खनन के पट्टे पर्यावरण और वन मंत्रालय की हरी झंडी के बाद ही बांटे जाएं. इसके अलावा अवैध बालू खनन पर कार्रवाई की वजह से राज्य में बालू की भारी कमी हो गई है. इसका असर राज्य में चल रहे निर्माण कार्यों पर पड़ा है, जो धीमे पड़ गए हैं. इस सख्ती की वजह से सैकड़ों दिहाड़ी मजदूर बेरोजगार हो गए हैं.
निजी बालू विक्रेता कहते हैं कि जुलाई 2017 से पहले बिहार में बालू 2500 से 3000 रुपए प्रति 100 वर्ग फुट के हिसाब से बिक रही थी.
बिहार के खनन मंत्री विनोद कुमार सिंह कहते हैं कि, 'जब से राज्य सरकार ने अवैध बालू खनन करने वाले और इस धंधे में शामिल लोगों पर सख्ती करनी शुरू की है, तब से बालू के दाम गिरने लगे हैं. विभाग के अधिकारी बालू के दाम पर नजर रख रहे हैं.' शायद मंत्री जी को ये पता ही नहीं है कि बालू, बाजार में असल कीमत से तीन गुना ज्यादा भाव पर बेचा जा रहा है.
अधिकारियों पर कार्रवाई
अच्छे प्रशासक के तौर पर मशहूर आईएएस अधिकारी के के पाठक को 2016 में अवैध खनन रोकने के लिए ही खनन विभाग का प्रधान सचिव बनाया गया था. लेकिन, उन्हें जल्द ही हटा दिया गया. आरोप है कि उन्हें खनन माफिया के दबाव में सचिव पद से रुखसत कर दिया गया. फिर भी खनन मंत्री विनोद कुमार सिंह मानते हैं कि नीतीश कुमार की सरकार बिहार में अवैध खनन रोकने के लिए प्रतिबद्ध है. जल्द ही इसे रोकने और बालू की तस्करी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए और भी सख्त नियम लागू किए जाने वाले हैं.
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बालू माफिया के खिलाफ कार्रवाई करने वाले अधिकारियों को पद से हटाने की एक और मिसाल हैं दीपक आनंद. सारण के डीएम रहते हुए दीपक आनंद ने बिहार सरकार को भेजी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह बड़े नेता और अधिकारियों की मिलीभगत से बालू के अवैध खनन का कारोबार चल रहा है. दीपक आनंद ने अपनी रिपोर्ट में उस वक्त सारण के एसपी रहे पंकज कुमार की बालू माफिया से साठ-गांठ का जिक्र किया था.
कुछ ही महीनों के भीतर बिहार पुलिस की भ्रष्टाचार निरोधक इकाई ने दीपक आनंद के पटना स्थित सरकारी आास और उनके गृह जिले सीतामढ़ी में छापे मारे थे. इस युवा आईएएस अधिकारी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का केस दर्ज कर लिया गया था. जबकि बालू माफिया से संबंध के आरोप के घेरे में आए पुलिस अधिकारी पंकज कुमार राय के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई. वजह ये कि पंकज कुमार राय को उस वक्त नीतीश सरकार में खनन मंत्री रहे मुनेश्वर चौधरी का करीबी माना जाता था.
खनन विभाग के एक अधिकारी नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि, 'जब एक आईएएस अफसर को ऐसे निपटाया जाता है, तो आप ही बताइए कि इतने ताकतवर बालू माफिया और तस्करों के खिलाफ कार्रवाई का साहस कौन करेगा?'
2007 बैच के आईएएस अफसर दीपक आनंद ने 2017 में बालू की तस्करी करने वाले एक गिरोह का भंडाफोड़ किया था. उन्होंने सारण जिले के मुफस्सिल थाना क्षेत्र में पड़ने वाली डोरीगंज-छपरा रोड पर बालू से लदे करीब 200 ट्रक पकड़े थे. ट्रकों के जरिए बालू को चिंराद के गोदाम में पहुंचाया जा रहा था. सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में दीपक आनंद ने दावा किया था कि ज्यादातर ट्रक ड्राइवरों का दावा था कि ये ट्रक मालिक जिले के एसपी पंकज कुमार राय को पैसा देते थे. हालांकि, पंकज राय ने इस आरोप को गलत बताया था. दीपक आनंद ने अपनी रिपोर्ट में बालू माफिया और पुलिस के बीच गठजोड़ की उच्च स्तरीय जांच की भी सिफारिश की थी.
हालांकि जब हम ने दीपक आनंद से इस बारे में बात करनी चाहिए, तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि, 'सारी बात राज्य सरकार की जानकारी में है.'
पर्यावरण पर प्रभाव
सारण जिले का चिरांद गांव गंगा और सरयू नदियों के संगम तट पर स्थित है. ये बालू तस्करों का पसंदीदा ठिकाना है. वजह ये कि ये नेशनल हाइवे 19 के करीब है. पटना और भोजपुर नदियों में सोन नदी से निकाला जाने वाला बालू नावों में भरकर चिरांद लाया जाता है. यहां से ये ट्रकों में लादकर उत्तरी बिहार और उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों तक ले जाया जाता है. स्थानीय लोगों का कहना है कि चिरांद की 90 फीसद आबादी बालू के अवैध कारोबार से जुड़ी हुई है.
जाने-माने पर्यावरणविद् अशोक घोष कहते हैं कि बालू के अवैध खनन से नदियों को भारी नुकसान पहुंच रहा है. घोष कहते हैं कि, 'इस बात की कई मिसाले हैं कि अवैध बालू खनन की वजह से नदियों ने रास्ता तक बदल दिया. सरकार को ये सुनिश्चित करना चाहिए कि एनजीटी के दिशा-निर्देश फौरन लागू हों.'
अवैध खनन से से पर्यावरण को नुकसान की एक झलक पश्चिमी चंपारण जिले में देखने को मिली थी. जहां अचानक आई बाढ़ की वजह से कई गांव बह गए थे. नेपाल की सीमा से लगे इस इलाके में ऐसा होना बिल्कुल भी असामान्य घटना थी. ऐसा कटैया नदी में से अवैध रूप से बालू निकाले जाने के कारण हुआ था. अवैध रूप से बालू निकाले जाने की वजह से सोन नदी पूरी तरह से तबाह हो चुकी है. भारी मशीनें नदी की तलहटी से बालू निकालती हैं. सोन नदी से बालू निकालने का काम दक्षिणी-पश्चिमी बिहार भोजपुर के कोएलवार से लेकर अरवल, औरंगाबाद और रोहतास जिलों तक हो रहा है.
30 दिसंबर, 2018 को पटना जिले के अधिकारियों ने ब्रॉडसन कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी के खिलाफ पालीगंज सबडिवीज़न में सोन नहर को नुकसान पहुंचाने के आरोप में नोटिस जारी किया था. कंपनी ने घाट से बालू निकालकर ले जाने का रास्ता बनाने के लिए सोन नहर को क्षति पहुंचाई थी. रोहता, औरंगाबाद और भोजपुर से निकाली गई बालू को यूपी ले जाया जाता है. कैमूर जिले की मोहनिया चेकपोस्ट के असिस्टेंट मैनेजर निशांत सिंह बताते हैं कि रोजाना करीब 1475 ओवरलोडेड ट्रक यहां से गुजरते हैं. इनमें से 15-20 को ही जब्त किया जाता है.
निशांत सिंह कहते हैं कि, 'सरकार ने परिवहन और खनन विभाग के केवल पांच अधिकारी इस चेक पोस्ट में ट्रकों की पड़ताल के लिए तैनात कर रखे हैं. जबकि नेशनल हाइवे नंबर 2 का ये इलाका करीब 70 किलोमीटर लंबा है. इन अधिकारियों की लापरवाही की वजह से राज्य सरकार के खजाने को रोज भारी नुकसान हो रहा है.'
कई बार तो ट्रकों को फर्जी चालान काट कर जाने दिया जाता है. इसे रोकने के लिए ई-चालान काटने की व्यवस्था शुरू करने की योजना बनाई गई है. 30 सितंबर को एनजीटी के दिशा-निर्देशों की अवधि समाप्त होने के बाद बिहार सरकार ने नई बिहार छोटे खनिज नियम लागू किए हैं. इसके जरिए राज्य सरकार 10 जिलों में खनन को मंजूरी देना चाहती है. लेकिन, नवंबर 2018 में पटना हाई कोर्ट ने खनन के कानून में बदलाव पर रोक लगा दी थी.
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