देश के प्रतिष्ठित संस्थान इंडियन इंस्टीट्यूटऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) ने चिंता जाहिर की है कि इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए अगर वह हायर एजुकेशन फंडिंग एजेंसी (एचईएफए) से लोन लेती है तो उसे फीस बढ़ाने के लिए मजबूर होना होगा.
इस मामले में आईआईटी के प्रतिनिधियों ने मंगलवार को प्रेसिडेंट से मुलाकात की. इनका कहना है कि एचईएफए को लोन चुकाने का कोई दूसरा विकल्प नहीं है. आईआईटी बॉम्बे के एक सूत्र ने कहा, 'सबसे बड़ी फिक्र है कि अगर अंदरूनी रिसोर्सेज से लोन की किस्त चुकाई जाती है तो दूसरे खर्चों के लिए पैसे कम पड़ जाएंगे.'
दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएसन ने भी एचईएफए को लेकर अपनी चिंता जाहिर की है. दिल्ली यूनिवर्सिटी का कहना है कि सरकारी नीतियों से हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस का चरित्र खराब कर रही है. सरकार ने एजुकेशनल इस्टीट्यूशंस को बाजार के हवाले कर दिया है, जिनकी कमाई का जरिया एजुकेशनल सर्विस है. उन्होंने कहा, 'यह शिक्षा का निजीकरण है.'
क्या है एचईएफए?
अगस्त 2017 में मानव संसाधन मंत्रालय ने केंद्र के फंड से चलने वाली उन सभी संस्थानों को यह निर्देश दिया था कि वे अपने फंड प्रपोजल मिनिस्ट्री को भेजने के बजाय एचईएफए को भेजें.
सरकार ने 2018-19 के आम बजट में एचईएफए का ऐलान किया था. सरकार ने कहा था कि आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम, आईआईआईटी और सभी सेंट्रल यूनिवर्सिटीज को इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए एचईएफए से ही 10 साल का लोन मिलेगा. इससे पहले यूनिवर्सिटीज एचआरडी मिनिस्ट्री से मदद लेती थीं.
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