भीमा-कोरेगांव हिंसा में हुई पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद केंद्र सरकार की आलोचना अभिव्यक्ति की आजादी के मसले पर की जा रही है. लेकिन केंद्र सरकार के सूत्रों के मुताबिक आईबी और गृह मंत्रालय को इन गिरफ्तारियों की जानकारी ही नहीं थी. सूत्रों के मुताबिक जब आईबी और गृहमंत्रालय के अधिकारियों तक इसकी खबर पहुंची तो उनके बीच अफरा-तफरी का माहौल था. राज्य पुलिस ने ये गिरफ्तारियां बिना केंद्रीय एजेंसी को भनक लगे की हैं.
इस बीच इन गिरफ्तारियों के बाद सोशल मीडिया पर #METOOURBANNAXAL ट्रेंड कर रहा है. लेकिन सोशल मीडिया पर चल रहे इन ट्रेंड्स के बीच वास्तविकता यह है कि नक्सल गतिविधियों से जुड़े कई लोगों पर निगाह रखने की ताकीद यूपीए सरकार के समय भी हुई थी. सूत्रों के मुताबिक दिसंबर 2012 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने देशभर में 128 संदेहास्पद संगठनों की लिस्ट बनाई थी और राज्यों को इन संगठनों से जुड़े लोगों पर कार्रवाई करने के लिए चिट्ठी भी लिखी थी. भीमा-कोरेगांव हिंसा में गिरफ्तार हुए सात लोगों ( वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, अरुण फेरेरा, वरनान गोंजाल्वेज और महेश रावत) उन संगठनों से जुड़े रहे हैं जिनकी लिस्ट यूपीए सरकार में गृह मंत्री पी. चिदंबरम के समय में बनाई गई थी. गिरफ्तार किए लोगों में वरवरा राव पर तो आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 20 से अधिक मामले दर्ज हैं.
क्या है पूरा मामला
31 दिसंबर 2017 को हुई भीमा-कोरेगांव में 8 जनवरी 2018 पुणे के विश्रामबाग पुलिस स्टेशन में केस दर्ज किया गया था. जांच के दौरान जून 2018 में पुलिस ने 5 लोगों को गिरफ्तार किया था. इनमें सुरेंद्र गाडलिंग ( जेनेरल सेक्रेटरी एसोसिशऩ ऑफ पीपुल्स लॉयर्स), रोना विल्सन ( पब्लिक रिलेशन सेक्रेटरी, कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पुलिटिकल प्रिजनर्स), सुधीर (रिपब्लिकन पैंथर्स), शोमा सेन ( एक्जक्यूटिव मेंबर कमेटी फॉर प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स) और महेश रावत ( स्टेट कन्वेनर महाराष्ट्र विस्थापन विद्रोही जन विकास आंदोलन) शामिल थे.
इसके बाद 28 अगस्त 2018 को वरवरा राव ( प्रेसिडेंट, रिवोल्यूशनरी डेमोक्रेटिक फ्रंट), सुधा भारद्वाज ( वाइस प्रेसिडेंट इंडियन एसोसिशन ऑफ पीपुल्स लॉयर्स ), गौतम नवलखा ( पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स ), वरनान गोंजाल्वेज ( पूर्व सेक्रेटरी, महाराष्ट्र स्टेट कमेटी सीपीआई माओवादी ) और अरुण फेरेरा ( पूर्व सदस्य, महाराष्ट्र स्टेट कमेटी सीपीआई माओवादी ) की भी गिरफ्तारी हुई.
काल्पनिक नहीं है अर्बन नक्सल ( शहरी नक्सल ) टर्म
गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक अर्बन नक्सल या शहरी नक्सल टर्म काल्पनिक नहीं हैं. ये वास्तविकता हैं. सीपीआई (माओवादी) ने राजनीतिक सत्ता पर कब्जे के अपने आखिरी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अर्बन नक्सल मूवमेंट को बेहद महत्वपूर्ण रूप से लागू किया है. इसके जरिए एक ऐसा यूनाइटेड फ्रंट बनाने के लिए काम किया जाता है जिससे माओवाद को मदद दी जा सके. सीपीआई ( माओवादी ) के लिए केंद्रीय नेतृत्व तैयार करने का मुख्य स्रोत अर्बन नक्सल मूवमेंट ही है. माओवादी मूवमेंट को आगे बढ़ाने का मुख्य जिम्मा इन्हीं शहरी नक्सलवादियों के कंधों पर होता है.
सीपीआई ( माओवादी ) ने 2017 में हुए 9वें सम्मेलन में एक रिजोल्यूशन पास किया था जिसके तहत इस विचारधारा के लोग अलग-अलग संगठनों में प्रवेश कर वैचारिक प्रचार-प्रसार का काम करें लेकिन अपनी असली पहचान गोपनीय रखें. ध्यान रहे इसी नक्सली आतंक की चपेट में देश को भारी जान-माल की क्षति झेलनी पड़ी है. गृहमंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2001 से अभी तक कुल 6956 नागरिक और 2517 सुरक्षाकर्मियों की हत्या हो चुकी है और नक्सली आतंक की वजह से आधारभूत संरचना और दूसरे विकास कार्यों पर पुरजोर असर पड़ा है.
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