तुफैल अहमद
यह एक मिलिट्री ऑपरेशन होना चाहिए था और इसकी योजना कंप्यूटर पर बनाई जाती. यह काम कंप्यूटर के महारथियों की जमात से कराया जाता. इसे धीरे-धीरे बढ़ाया जाता और एक निश्चित समय में पूरा कर लिया जाता.
वित्तीय चेहरा-मोहरा बदलने की इस कवायद को उसी स्तर पर रखा जाना चाहिए था, जिस पर महामारी को रखा जाता है और अर्धसैनिक बलों और पुलिस को इस काम में लगाया जाता ताकि देश के कोने-कोने में नोट पहुंचाए जा सकते.
नए नोटों के चेचक को रोकने के लिए टीके या फिर मोर्चे पर लड़ रही सेना के लिए गोली की तरह देखा जाना चाहिए था.
हर एटीएम और हर बैंक की शाखा पर सैनिकों को तैनात किया जाना चाहिए था ताकि पैसे सुरक्षित तरीके से ट्रांसफर हो सकते और एटीएम मशीनों को नुकसान न होता. सरकार को प्राइवेट अकाउंटेंट और उनके कर्मचारियों को बैंकों की मदद के लिए लगाना चाहिए था ताकि लोगों को पैसा देने का काम तुरंत शुरू हो सकता. अकेले सीआरपीएफ के पास 235 बटालियनें हैं. हमारे पास बीएसएफ (2,50,000), आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी, असम राइफल्स और रेलवे पुलिस जैसे कितने ही सुरक्षा बल हैं.
तीन दिन के लिए देशव्यापी इमरजेंसी होनी चाहिए थी.
आप कुछ मत बोलो..
यह तकलीफ हमें खुशी खुशी उठा लेनी चाहिए क्योंकि ये भले के लिए हो रहा है. ठीक है. बात मान ली.
दर्जनों ट्रोल्स कॉलमनिस्टों को सलाह दे रहे हैं. इन सलाहों में हमारे खानदान की जड़ें खोदी जा रही हैं और हमारे परिवारों को धमकियां भी दी जा रही हैं.
चूंकि मैं भारत में नहीं रहता हूं और कुछ ट्रोल्स जो यह बात जानते हैं, वो इतनी तेज चिल्ला रहे हैं कि मुझे तो डर लग रहा है.
उन्होंने मुझसे कहा कि आपको इस बारे में टिप्पणी करने का कोई हक नहीं है, और आप इससे दूर ही रहो क्योंकि भारत में स्लाइस ब्रेड के बाद ये सबसे अच्छी चीज हो रही है.
हां, मुझे कोई टिप्पणी करने का हक नहीं है. आज चौथा दिन है और दिल्ली में मेरे घर में पैसे नहीं हैं और वहां मेरी बीमार बहन है, जो बेड तक सीमित है. वो तो किस्मत अच्छी थी कि घर की सफाई करने के लिए आने वाले युवक से चार सौ रुपए मिल गए. उसने मुझसे कहा है कि उसके पास दस रुपए के बहुत सारे नोट हैं और अगर कैथेटर (शरीर में डाली जाने वाली नली) बदलवाने जरूरत पड़ी तो मैं चिंता न करूं. वो धोबी जिसके बेटे की मैंने कई बार मदद की, उसने मुझे एसएमएस भेजा है कि वो हर दिन पैसे का इंतजाम कर रहा है.
मेरा परिवार
यह है मेरा भारत, ये लोग मेरा परिवार हैं इसलिए आप लोग मुझे मत बताओ कि मेरा क्या हक है और क्या नहीं. जो आदमी मेरी बहन की देखभाल करता है वो बिहार से है. वो शुक्रवार को छह घंटे तक बैंक में खड़ा रहा, लेकिन खाली हाथ आ गया. वो पढ़ लिख नहीं सकता लेकिन समझदार है और वो मेरा भाई है क्योंकि अपनी झुग्गी में अचार के जार में उसने जो पांच पांच के सिक्के जमा कर रखे थे उसने वो निकाले और काम चलाया, इसलिए आप मुझसे यह मत कहिए इस पर टिप्पणी करने का मुझे अधिकार नहीं है.
ऐसे लोगों की वजह से ये दुनिया चल रही है और इनमें से हर एक ने मुझे फोन करके कहा कि हम काम चला लेंगे.
अगर उन्हें 140 रुपए में भी 100 रुपए खरीदने पड़े तो ऊपर के 40 रुपए 10 के नोट या 5 रुपए के सिक्के में होंगे.
घर कैसे जाऊं
बात ये है कि मेरे पास दो हजार रुपए के नोट हैं लेकिन मैं फ्लाइट लेकर दिल्ली नहीं जा सकता हूं क्योंकि मेरे पास एयरपोर्ट से घर पहुंचने के पैसे नहीं हैं. मेरे एक दोस्त ने बताया कि वो फ्लाइट से दिल्ली पहुंचा तो उसे गाड़ी नहीं मिली. फिर ड्राइवर आपस में झगड़ने लगे. वहीं अपने मालिक की गाड़ी का “गलत इस्तेमाल” करने वाले ड्राइवरों ने विदेशी मुद्रा में कमाई करनी शुरू कर दी.
अगर आपके पास डॉलर हैं तो मुझे लगता है कि आपका काम चल सकता है, वरना व्यापार के पुराने तौर तरीकों का सहारा लेना होगा. एक आदमी ड्राइवर को सिगरेट का आधा कार्टन देकर अपने घर पहुंचा है. ब्लैक लेबल की एक पूरी भरी बोतल आपको शायद नोएडा तक ले जाएगी.
कहां हैं नए नोट
हां, दवाई वाले. मुझे कोई ऐसा मेडिकल स्टोर बता दो जो पुराने नोट ले रहा हो.
सरकार और नागरिकों के बीच इस बात पर कोई सहमति नहीं थी कि हर दिन पैसे निकालने की सीमा दो हजार या चार हजार होनी चाहिए. क्या आता है इनमें, खासकर जब दवाई लेनी हो? 25 हजार रुपए सामान्य सीमा माने जाते थे.
हमें बताया गया कि 48 घंटों के भीतर दो हजार रुपए के नोट चलने शुरू हो जाएंगे और 500 रुपए के नोट की कोई कमी नहीं रहेगी.
कहां हैं वो, और ये दो या चार हजार की सीमा कब खत्म होगी. कोई कुछ नहीं बोल रहा है.
लोग कहते हैं कि चीजों को सामान्य होने में समय लगेगा. क्यों समय लगेगा? या तो ऑपरेशन सफल होता है या फिर उसमें जटिलताएं होती हैं.
मुझे तो बस घंटियां सुनाई दे रही हैं. और वो ट्रोल्स की घंटियां हैं.
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