नरेंद्र मोदी सरकार के लिए नोटबंदी के तूफान से सही-सलामत निकल पाना आसान नहीं होगा. भले ही सरकार ने पहले कालेधन, भ्रष्टाचार और नकली करेंसी से मुक्त अर्थव्यवस्था का वादा किया हो, जिसका मकसद बाद में बदलकर कैशलेस इकॉनमी हो गया हो. लेकिन, 8 नवंबर की रात देश की 86 फीसदी करेंसी को अचानक बंद करने के फैसले ने अर्थव्यवस्था में संकट के हालात पैदा कर दिए हैं.
नौकरियां खत्म, हर सेक्टर को झटका
कंपनियों के मुनाफे को तगड़ा झटका लगा है. असंगठित सेक्टर में लाखों नौकरियां खत्म होने की खबरें आ रही हैं. किसानों को औने-पौने भाव में अपने उत्पाद बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है.
सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टरों पर चोट पहुंची है.पूरी दुनिया इस बात को लेकर अचंभित है कि आखिर मोदी के करेंसी बैन करने के पीछे क्या तर्क था.
ग्रोथ के टारगेट में कटौती
सरकारी और निजी एजेंसियां दोनों ही फिस्कल ईयर 2016-17 के लिए जीडीपी ग्रोथ के अनुमानों में कटौती कर रही हैं. रिजर्व बैंक ने 7.1 फीसदी ग्रोथ रहने का अनुमान लगाया है. जबकि, एक प्राइवेट ब्रोकरेज हाउस एंबिट कैपिटल ने ग्रोथ के लिए 3.5 फीसदी का बेहद निराशाजनक अनुमान दिया है.
कंपनियों के एडवांस टैक्स पेमेंट्स, पीएमआई आंकड़े, ऑटो सेल्स और सर्विस आधारित सेक्टर्स में सुस्ती के आंकड़े अर्थव्यवस्था को पहुंची गहरी चोट की ओर इशारा कर रहे हैं.
चौथी तिमाही पर संकट का साया
ज्यादातर अर्थशास्त्री तीसरी तिमाही को बेकार मानकर चल रहे हैं. लेकिन, असली खतरा इस बात का है कि कहीं कैश की कमी के चलते बुरे हालात चौथी तिमाही को भी अपनी गिरफ्त में न ले लें.
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक, 27 नवंबर के हफ्ते में बेरोजगारी की दर गिरकर 5 फीसदी से नीचे आ गई थी. लेकिन, इसके बाद से इसमें इजाफा हो रहा है.
4 दिसंबर के हफ्ते में यह बढ़कर 6.1 फीसदी हो गई. 11 दिसंबर के हफ्ते में बेरोजगारी दर बढ़कर 6.6 फीसदी और 18 दिसंबर के हफ्ते में 7 फीसदी पर पहुंच गई. चूंकि, असर धीरे-धीरे दिखाई देता है, ऐसे में हमें नए आंकड़ों का इंतजार करना होगा.
वक्त की जरूरत
मोदी सरकार को कुछ अहम काम तत्काल करने होंगे-
पहला, लोकलुभावन, गैर-उत्पादक खर्चों से बचना होगा. इनमें ऐसे वादे शामिल हैं जिनमें कहा जाता है कि कालेधन का पैसा उनके बीच बांटा जाएगा. और खेती के कर्जे माफ कर दिए जाएंगे.
सरकार को तत्काल बैंकों के पूंजी आधार को मजबूत करना होगा ताकि उत्पादन वाले सेक्टरों को बैंक कर्ज बांट सकें. साथ ही सरकार को घाटे में चल रहे बैंकों को या तो बेच देना चाहिए या फिर इनमें से कुछ को विलय और अधिग्रहण के जरिए कंसॉलिडेट करना चाहिए.
बैंकिंग सेक्टर को मजबूत करें
1 फरवरी को पेश किए जाने वाले आम बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली के पास एक बड़ा मौका होगा. इसमें वह सरकारी बैंकिंग सेक्टर में सुधार की बड़ी प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं.
मौजूदा वक्त में, सरकारी बैंकों के पास पूंजी की भारी कमी है. इन बैंकों के डूबे हुए कर्ज (नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स) सितंबर 2016 को बढ़कर करीब 6 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गए हैं.
यह टोटल बैंक क्रेडिट का करीब 8 फीसदी बैठता है. अगर बैड लोन और रीस्ट्रक्चर्ड लोन्स को मिला दिया जाए तो यह आंकड़ा बैंकों के कुल क्रेडिट के 12-13 फीसदी तक पहुंच जाता है.
बैंकों को बासल-III के तहत 1.8 लाख करोड़ रुपए की पूंजी चाहिए. सरकार ने इंद्रधनुष योजना के तहत 2018-19 तक 4 साल में इन बैंकों में 70,000 करोड़ रुपए की पूंजी डालने का वादा किया है.
साथ ही सरकार चाहती है कि बैंक बकाया 1.1 लाख करोड़ रुपए की रकम मार्केट से जुटाएं. यह पर्याप्त नहीं है. साथ ही बैंकों को अपने लिए मार्केट से रकम जुटाना भी मुश्किल होगा.
इससे मुश्किल और बढ़ रही है. अब तक रिफॉर्म के मोर्चे पर कोई बढ़त नहीं दिख रही है. इसी वजह से इन बैंकों में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाली सरकार को इनमें ज्यादा पूंजी डालने के बारे में सोचना होगा. बैंकिंग सेक्टर में बड़े रिफॉर्म भी आगे बढ़ाने होंगे.
अर्थव्यवस्था को देनी होगी प्रोत्साहन की डोज
दूसरा, इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को धक्का लगाना पड़ेगा. अर्थशास्त्रियों का एक तबका मानता है कि अर्थव्यवस्था को ट्रैक पर लाने के लिए बड़ा प्रोत्साहन देना होगा. यह जरूरी है क्योंकि नोटबंदी के बाद अर्थव्यवस्था की कई परतों पर चोट पहुंची है.
नोटबंदी से एक उम्मीद यह थी कि इससे 4-5 लाख करोड़ रुपए का एकमुश्त फायदा इकॉनमी को होगा. यह माना जा रहा था कि तकरीबन इतनी रकम सिस्टम में वापस नहीं लौट पाएगी.
सरकार को लग रहा था कि 8 नवंबर को 15.44 लाख करोड़ रुपए के 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने के बाद इसमें से 10 लाख करोड़ रुपए ही सिस्टम में वापस लौटेंगे. लेकिन, यह उम्मीद बेमानी साबित हुई.
दूसरी ओर, रिजर्व बैंक ने यह स्पष्टीकरण दिया कि घटी हुई करेंसी लाइबिलिटी के चलते सरप्लस पूंजी को केंद्र सरकार को ट्रांसफर किए जाने की कोई संभावना नहीं है. इससे सरकार को कोई तत्काल फायदा मिलने की आस भी खत्म हो गई. इसके उलट नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था को चोटिल कर दिया.
टैक्स में राहत मिले
तीसरा, जेटली को इंडीविजुअल और कॉरपोरेट्स दोनों को बजट 2017 में राहत देने का एलान करना चाहिए. बजट में डायरेक्ट टैक्स में बड़ी कटौती होनी चाहिए ताकि लोग मुश्किल हालात से निकल सकें.
यह तीन तरीके से काम करेगा. पहला डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका में सत्ता संभाल रहे हैं. ट्रंप के बड़े पैमाने पर टैक्स कटौती करने पर भारत को आकर्षक निवेश ठिकाना बनने में मदद मिलेगी.
टैक्स घटने से नोटबंदी के चलते बने नेगेटिव मूड को बदलने में मदद मिलेगी. लोगों की जेब में ज्यादा पैसे बचेंगे. लोग पैसा खर्च करेंगे और देश की कंजम्पशन स्टोरी आगे बढ़ेगी.
कॉरपोरेट टैक्स में इनसेंटिव्स कॉरपोरेट टैक्स रेट को एक अवधि में 25 फीसदी से नीचे लाने के अलावा होने चाहिए. लेकिन इंडस्ट्री के लिए यह बहुत उत्साहजनक नहीं है क्योंकि छूट के बाद ये टैक्स करीब 23 फीसदी बैठते हैं.
यही वजह है कि पिछले बजट में मार्जिनल टैक्स कटौती को कोई रेस्पॉन्स नहीं मिला. सरकार को इंडस्ट्री को अस्थाई प्रोत्साहन पैकेज मुहैया कराना होगा ताकि इनकी गतिविधियों में रफ्तार आ सके.
रातोंरात डिजिटल नहीं हो सकता देश
चौथा, कैश की कमी का संकट दूर करने और चीजों को सामान्य बनाने में यह काफी अहम है. सरकार को चंद महीनों में पूरे देश में डिजिटल पेमेंट्स की ओर सौ फीसदी शिफ्ट की उम्मीद नहीं करनी चाहिए.
अनुमानों के मुताबिक, 70 फीसदी इकॉनमी अभी भी कैश पर ही चल रही है. भारत जैसे देश में एक बार में 86 फीसदी कैश को सिस्टम से बाहर कर देना और फिर नकदी की कमी झेलना ठीक वैसे ही है जैसे किसी स्वस्थ मनुष्य में ज्यादा अच्छा खून डालने के लिए उसके शरीर से खून निकाल लिया जाए और तब आपको पता चले कि नए खून का आपके पास पर्याप्त स्टॉक नहीं है.
500 रुपए के नोटों की सप्लाई बढ़ाए सरकार
19 दिसंबर तक, आरबीआई केवल 5.92 लाख करोड़ रुपए बैंकिंग सिस्टम में डाल पाया. दूसरी ओर, पुराने 500 और 1,000 रुपए के 12.44 लाख करोड़ रुपए बैंकों में जमा किए जा चुके थे.
कुल 22.6 अरब नोट बैंकों को दिए गए, इसमें से केवल 2.2 अरब नोट 2,000 रुपए और 500 के हैं. यह साफ नहीं है कि 2.2 अरब नोटों में से कितने 2,000 और 500 के हैं.
दिक्कत यहीं है. बैंकरों के मुताबिक, मौजूदा कैश की कमी मुख्य तौर पर 500 के नोटों की कमी की वजह से है. अगर सरकारी छापाखानों से पर्याप्त मात्रा में 500 के नोट छपकर आएं तो शायद नकदी की उतनी किल्लत न रहे.
सरकार के लिए असली चुनौती अपने फिस्कल लक्ष्यों को पूरा करने की है. 2016-17 के लिए सरकार को 3.5 फीसदी का फिस्कल डेफिसिट टारगेट पाना है. चूंकि, नोटबंदी से सरकार को कोई फिस्कल फायदा होने नहीं जा रहा है, ऐसे में आखिरी उम्मीद कर अधिकारियों पर ही टिकी है. उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे ज्यादा से ज्यादा अवैध नकदी को ढूंढकर बाहर निकालें.
एक बड़े बजट को संभालना एक और चुनौती है, जिसमें रेल बजट भी शामिल है. इंडिया रेटिंग्स के चीफ इकनॉमिस्ट देवेंद्र पंत के मुताबिक, ‘इस साल एक भीमकाय रेलवे बजट भी आम बजट का हिस्सा बनने जा रहा है. यह खर्च के मोर्चे पर आंकड़ों में बड़ा उछाल दिखाएगा. सरकार कैसे इसको मैनेज करती है, यह देखने वाली बात होगी.’
डिजिटल ट्रांजैक्शंस से सरकारी खजाने में टैक्स के रूप में ज्यादा पैसे आएंगे. लेकिन इसकी शुरुआत अगले साल से ही होगी.
फिलहाल सरकार के लिए 2017 के आम बजट में बैलेंस बनाना ही एक बड़ी चीज होगी. सरकार को अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने और फिस्कल डेफिसिट के रोडमैप पर टिके रहने के दोनों काम एकसाथ करने होंगे. मोदी सरकार के लिए इस चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा.
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