2014 में नई सरकार आने के बाद से ही नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने की लगातार कोशिश हो रही है. सरकार के तीन साल के कार्यकाल के बाद जो तस्वीर सामने आ रही है उससे लग रहा है कि नक्सलवाद के खिलाफ अभियान कारगर साबित हो रहा है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह लगातार नक्सलियों को सबक सिखाने की बात करते हैं. उनकी सख्ती का असर अब रंग ला रहा है.
गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, 2013 में पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान 1136 नक्सली घटनाएं हुई थीं, जिसमें 100 नक्सली मारे गए थे. जबकि, 115 सुरक्षाबल के जवान भी शहीद हो गए थे. इस साल 282 आम नागरिक भी नक्सली हिंसा के शिकार हो गए थे.
लेकिन, अगले साल मई 2014 में नई सरकार आने के बाद नक्सली वारदातों में कमी देखने को मिली. 2014 में 1091 नक्सली घटनाएं हुईं जिसमें 63 नक्सली मारे गए और 88 सुरक्षा बल के जवान इस साल शहीद भी हुए. जबकि इस साल नक्सली हमले में मारे गए आम नागरिकों की तादाद भी कम होकर 222 तक आ गई.
लगभग 6 महीने की अपनी कारवाई के बाद गृह मंत्रालय की तरफ से इस अभियान को और तेज किया गया. गृहमंत्री राजनाथ सिंह की तरफ से लगातार नक्सली हमले को लेकर रणनीति बनाई जा रही थी जिसमें इस बात पर जोर दिया जा रहा था कि नक्सल के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान में नक्सलियों को नुकसान ज्यादा हो. लेकिन, सुरक्षाबलों के साथ-साथ आम नागरिकों की होने वाले नुकसान को कैसे कम किया जाए.
गृह मंत्रालय की ये रणनीति अब सफल होती दिख रही है. 2015 में 1089 घटनाएं हुईं. इस साल 89 नक्सली मारे गए जो कि पिछले साल की तुलना में 26 ज्यादा थी. जबकि इस साल सुरक्षाबल के 59 जवान शहीद हो गए जिनकी संख्या पिछले साल की तुलना में 29 कम थीं. वहीं इस साल नक्सली हमले में 171 नागरिकों को भी अपनी जान गंवानी पड़ी जो कि पिछले साल मारे गए नागरिकों की तुलना में 51 कम थीं.
2016 में भी यही ट्रेंड जारी रहा. इस साल 1048 नक्सली घटनाएं हुईं जिनमें 222 नक्सली मारे गए. 2015 की तुलना में इस साल नक्सलियों के मारे जाने का आंकड़ा दोगुने से भी ज्यादा हो गया. इसे गृह मंत्रालय के नक्सल विरोधी अभियान की बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है. हालांकि इस साल 2016 में 65 जवान शहीद हो गए और 213 नागरिकों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी.
गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, जून 2017 तक के नक्सल विरोधी अभियान का आकलन करने के बाद ऐसा लग रहा है कि इस साल भी नक्सल विरोधी अभियान काफी सफल रहा है.
जून 2017 तक 478 नक्सली घटनाएं हुई हैं जबकि, 2016 में जून तक 617 घटनाएं हुई थीं, इस दौरान हुई नक्सली वारदातों में 70 नक्सली मारे गए हैं. जबकि 67 सुरक्षा बल के जवान भी शहीद हो गए हैं. इस छह महीने के दौरान 94 आम नागरिक नक्सली हमलों में मारे गए हैं.
आत्मसमर्पण करने को मजबूर हुए नक्सली
नक्सल विरोधी अभियान के तहत कारवाई में नक्सलियों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर भी किया जा रहा है. इनमें वो नक्सली भी शामिल रहते हैं जो हिंसा का रास्ता छोड़ समाज की मुख्यधारा में शामिल होना चाहते हैं. तो दूसरी तरफ, कई नक्सलियों को गिरफ्तार कर उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाया भी जा रहा है.
साल 2015 में 1668 के मुकाबले साल 2016 में 1840 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया. जबकि 2015 में 570 नक्सलियों ने हथियार डाल दिए थे, जिसके मुकाबले साल 2016 में 1442 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया.
जून 2017 तक 911 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 424 नक्सलियों ने इस दौरान आत्मसमर्पण किया है.
नक्सली धीरे-धीरे अपने प्रभाव वाले इलाके के विस्तार की रणनीति पर काम करते हैं. लेकिन, पिछले तीन सालों में हुई सरकार की कारवाई ने नक्सलियों के इन नापाक मंसूबों पर भी पानी फेर दिया है. साल 2015 में 75 जिलों के 332 थानों में नक्सली हिंसा की वारदातें हुई थीं. लेकिन, 2016 में 68 जिलों तक ही ये घटनाएं सिमट कर रह गईं. इस साल 68 जिलों के 322 थानों तक ही नक्सली घटनाएं हुईं.
आज की तारीख में 10 राज्यों के 106 जिले नक्सल प्रभावित हैं. 2016 में ऐसे 68 जिले ही थे जिनमें नक्सली हिंसा के मामले सामने आए थे. इनमें भी सात राज्यों के 35 जिले ही नक्सल प्रभावित रहे हैं. नक्सली हिंसा की 90 फीसदी घटनाएं आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ, झारखण्ड, महाराष्ट्र, उड़ीसा और तेलंगाना के इन सात राज्यों से ही आती हैं.
विकास के सहारे नक्सलियों को पटखनी देने की तैयारी
नक्सली समस्या से निपटने के लिए केन्द्र सरकार ने एक बहुआयामी नीति बनाई है जिसके तहत नक्सल प्रभावित इलाके में सबको सुरक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ विकास पर भी जोर दिया जा रहा है. इन इलाकों में आदिवासी समाज के कल्याण और उनके विकास को लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. सड़क बनाने से लेकर कई और सारी योजनाओं के दम पर सरकार की कोशिश रहती है कि इस पूरे इलाके को समाज की मुख्यधारा में जोड़ा जाए. लेकिन, नक्सलियों को सरकार की तरफ से किया गया विकास का काम नागवार गुजरता है. इसीलिए वो बार-बार विकास के कामों में रोड़ा पैदा करते रहते हैं.
लेकिन, गृह मंत्रालय की कोशिश होती है कि इन इलाकों में सुरक्षा मुहैया कराई जाए. इसके लिए बड़ी तादाद में सीआरपीएफ के जवानों की तैनाती भी की गई है.
नक्सलियों का मुकाबला करने के लिए सीआरपीएफ की तैनाती के साथ-साथ नक्सलियों की निगरानी की भी पूरी व्यवस्था की गई है. यूएवी के माध्यम से नक्सल क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखी जा रही है.
लेकिन, राज्य के पुलिस थानों के भी हालात में सुधार को लेकर सरकार की तरफ से लगातार कदम उठाए जा रहे हैं. इन इलाकों में नए पुलिस स्टेशन को बनाकर सरकार आम नागरिकों की हिफाजत की तैयारी कर रही है.
सरकार की कोशिश नक्सल प्रभावित राज्यों में दूर-दराज तक सड़क बनवाया जाए जिससे लोगों की आवाजाही ठीक हो सके. इससे सुरक्षाबलों को भी काफी मदद मिलेगी. मोदी सरकार के कार्यकाल के शुरू होने से लेकर जून 2017 तक 2540 करोड़ रुपए की लागत से 1504 किलोमीटर सड़क बनाई जा चुकी है.
नक्सली नहीं चाहते कि किसी भी सूरत में आम लोग मुख्यधारा से जुड़े. लिहाजा उनकी तरफ से कई बार मोबाइल टावर को उड़ाने की घटना भी सामने आती है. लेकिन, सरकार इन नक्सल प्रभावित इलाके में मोबाईल टावर को लगाने पर भी काफी तेजी से काम कर रही है.
सरकार ने साल 2014 में नक्सल प्रभावित 10 राज्यों में यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के अंतर्गत 3567 करोड़ रूपए की लागत से 2199 मोबाइल टावर स्थापित करने की योजना को मंजूरी दी थी. जिनमें अब तक 2187 मोबाइल टावर काम करने भी लगे हैं.
केंद्र सरकार की तरफ से शुरू की गई विकास की इन योजनाओं का फायदा भी हो रहा है. एक तरफ नक्सलियों के खिलाफ सख्ती तो दूसरी तरफ, विकास के नाम पर हो रहे काम का असर अब दिख भी रहा है.
आलोक कुमार ने कहा, ‘फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार है. यदि निर्णय आशानुरूप नहीं आता है तो संसद द्वारा कानून बनाकर समस्या का समाधान निकाला जाएगा.'
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