एक तरफ हाल ही में देश ने गणतंत्र दिवस के पर्व पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में थीम ही उनके नाम पर कर दी थी. गांधी के जन्मजयंती वर्ष पर न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में उनको और अहिंसा के लिए दिखाए उनके रास्ते को सब याद कर रहे हैं. ऐसे में 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर भी दुनिया में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी.
भारत में तो इस दिन को बलिदान दिवस के तौर पर मनाया जाता है. हालंकि राष्ट्रपिता के बलिदान दिवस पर हिंदू महासभा कुछ और ही करने वाली है. हिंदू महासभा की इस दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाने की योजना है. महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे के मंदिर बनवाने के मंसूबे रखने वाली अखिल भारतीय हिंदू महासभा 30 जनवरी यानी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बलिदान दिवस को शौर्य दिवस के रूप में मनाएगी.
गोडसे ने की थी महात्मा गांधी की हत्या
याद हो कि नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी थी. उन्हीं की याद में 30 जनवरी को भारत में बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक महासभा के मेरठ जिले के अध्यक्ष अभिषेक अग्रवाल ने मंगलवार को बताया कि बुधवार को हिंदू महासभा द्वारा बलिदान दिवस को ‘शौर्य दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा.
गौरतलब है कि महात्मा गांधी का हत्यारा गोडसे हिंदू महासभा का सदस्य रह चुका था. उसे 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई थी. हत्यारे गोडसे को सम्मान देने वाले हिंदू महासभा कथित तौर पर हिंदू हित की बात करती है, लेकिन असल में वह हिंदू धर्म के नैतिक ज्ञान से ही अनभिज्ञ प्रतीत होती है. महासभा शायद यह भूल गई कि दुनिया को शांति का पाठ सिखाने वाले बापू भी हिंदू थे और इस धर्म के नैतिक मूल्यों का न सिर्फ आदर करते थे बल्कि उन्होंने इसे आत्मसात कर लिया था.
गांधी की छवि राष्ट्रपिता की है तो गोडसे को लोग हत्यारा मानते हैं
महासभा ने अपने नाम के आगे भले ही हिंदू शब्द लगा लिया हो लेकिन वह इस शब्द की गहराई से कोसों दूर है. शायद इसी लिए वह ऐसी दिव्य आत्मा के हत्यारे के महिमामंडन में शौर्य दिवस मनाने का ऐलान कर रही है. अगर गांधी की हत्या करना शौर्य का उदाहरण होता तो स्वतंत्र भारत में उसके योगदान की गाथा गाई जाती, लेकिन ऐसा नहीं है.
उसके विपरीत गांधी को संविधान में भले ही राष्ट्रपिता की कोई लिखित उपाधी नहीं दी गई हो लेकिन लोगों ने उनको उसी रूप में बड़े प्यार से अपनाया है. जिसे महासभा जैसी कई संस्थाएं मिटाने के हजारों प्रयास कर चुकी हैं लेकिन वह विफल रही हैं. जबकि गांधी के विचार आज भी फिजाओं में घूम रहे हैं.
किसी बड़े आंदोलन में झंडा उठाए सरकार के खिलाफ दहाड़ मारते बुजुर्ग से लेकर अपने कॉलेज में अपने हकों के लिए आवाज उठाते युवक में आपको गांधी दिख जाएगा लेकिन गोडसे का उदाहरण उसी दिन खत्म हो गया जिस दिन उसने महात्मा को गोली मारी थी.
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