पिछले एक दशक में हिमाचल प्रदेश विधानसभा का शायद ही कोई चुनाव ऐसा होगा जिसमे जिसमें निर्दलियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज ना की हो. प्रजातंत्र के इस राष्ट्रीय उत्सव में राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को नकार कर मतदाताओं द्वारा निर्दलीय उम्मीदवारों के पक्ष में मतदान करने का अर्थ स्पष्ट है कि दोनों ही दलों के स्थानीय नेतृत्व से मतदाता संतुष्ट नहीं है.
पिछले चुनाव में जीते थे पांच निर्दलीय
पिछले चुनावों में 105 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था और पांच निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत कर विधान सभा पहुंचे थे. इसके इलावा हिमाचल लोकहित पार्टी के कुल्लू से उम्मीदवार महेश्वरसिंह ने भी चुनाव जीता था. वर्ष 1998 में तो एक निर्दलीय उम्मीदवार ने हिमाचल की राजनीति की दिशा ही बदल दी थी.
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हिमाचल विकास कांग्रेस के समर्थन और एक निर्दलीय के सहारे भारतीय जनता पार्टी के प्रेमकुमार धूमल ने यहां बीजेपी की सरकार बनाई थी. इस बार भारतीय जनता पार्टी ने प्रदेश में चुनावी राजनीति में नए प्रयोग कर टिकट के प्रबल दावेदारों का विरोध तो मोल लिया ही खुद के लिए भी काफी हद तक भारी बहुमत से जितने की सहज राह को जटिल बना दिया.
इसकी तुलना में कांग्रेस ने अपने पुराने प्रत्याशियों को कुछ स्थानों पर थोड़ा फेर-बदल कर चुनाव मैदान में उतारा. कांग्रेस के इन प्रत्याशियों का संबंधित विधानसभा क्षेत्रों में अपना वोट-बैंक है. इसलिए दोनों ही राष्ट्रीय दलों में कांटे की टक्कर मानी जा रही है.
कांगड़ा में जीत है बेहद जरूरी
भारतीय जनता पार्टी को वर्ष 2012 के चुनावों से इस बात का एहसास हो गया था कि सत्ता तक पहुंचने के लिए प्रदेश के सबसे बड़े जिले कांगड़ा से बहुमत प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है लेकिन यहां भी निर्दलियों ने चुनाव मैदान में अपनी उपस्थिति इस तरह से दर्ज की है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों राष्ट्रीय दलों के लिए ये निर्दलीय उम्मीदवार खतरा बने हुए हैं.
किसी विधानसभा क्षेत्र में ये निर्दलीय उम्मीदवार राष्ट्रीय दलों के प्रत्याशियों की जीत का अंतर कम करेंगे तो कुछ स्थानों पर जीत भी हासिल कर सकते हैं. इन उम्मीदवारों में चम्बा के डॉ. डी.के.सोनी, भरमौर के ललित ठाकुर, इंदौरा के तिलक राज, शाहपुर के विजय मनकोटिया, फतेहपुर के राजन सुशांत और पालमपुर के प्रवीण शर्मा प्रमुख हैं.
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इनमें दोनों राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस के बागी उम्मीदवार शामिल हैं. यदि राज्य स्तर पर नामों की गिनती की जाए तो इस श्रृंखला में और बहुत से नाम जुड़ सकते हैं.
आज घर-घर प्रचार करने का दिन है. कल प्रदेश के 50 लाख मतदाता अपने बहुमूल्य मत का प्रयोग करेंगे. सभी प्रत्याशियों का भविष्य मत पेटियों में सील हो जाएगा लेकिन यह तय है इस बार के अप्रत्याशित चुनाव परिणाम हिमाचल की राजनीति को नई दिशा देंगे.
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