विपुल चौधरी उस दिन को कोसते हैं, जब राजस्थान में प्रतिष्ठित सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करते समय उन्होंने OBC कैटेगरी के तहत आवेदन किया था. चार साल की कड़ी मेहनत और दिन-रात एक करने के बाद, उन्हें पता चला है कि राजस्थान में जाट युवाओं को मिलने वाले कोटे का लालच किए बिना ‘सामान्य’ श्रेणी में आवेदन करते तो कामयाबी की संभावनाएं कहीं बेहतर होतीं.
उनकी कहानी राजनेताओं और नौजवानों के लिए आंख खोलने वाली है, जो मानते हैं कि आरक्षण सरकारी नौकरी पाने का शॉर्टकट रास्ता है, खासकर एनडीए सरकार द्वारा हाल ही में ‘आर्थिक रूप से कमजोर’ वर्गों के लिए 10 फीसद आरक्षण की अनुमति के फैसले के बाद. सच्चाई यह है कि कई सरकारी नौकरियों में आरक्षित वर्ग के लिए प्रतिस्पर्धा कहीं ज्यादा कड़ी है, इसमें चयन के लिए कट-ऑफ सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी- जो किसी कोटे में नहीं आते हैं, के तौर पर आवेदन करने वाले अभ्यर्थियों से कहीं ज्यादा है.
साल 2016 में राजस्थान सरकार ने अपनी संभ्रांत राजस्थान एडमिनिस्ट्रेटिट एंड एलाइड सर्विसेज (RA&AS) के लिए 725 वैकेंसी की घोषणा की तो विपुल ने सोचा कि इसे हासिल करना कतई मुश्किल नहीं होगा. एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी के बेटे 25 वर्षीय विपुल दो साल से इसकी तैयारी कर रहे थे. और चूंकि 21 फीसद सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित थीं, इसलिए विपुल को कामयाबी का पक्का यकीन था.
जब राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) द्वारा प्रारंभिक परीक्षा के नतीजों, जो कि तीन चरणों की परीक्षा का पहला चरण था, की घोषणा की गई तो विपुल चौधरी हैरान रह गए. सामान्य उम्मीदवारों के लिए कटऑफ 200 में से 78.54 अंक था, जबकि उनके जैसे OBC उम्मीदवारों के लिए 94.98 था- पूरे 15 अंक ज्यादा. सीधे शब्दों में कहें, तो अगर विपुल ने ओपेन कैटेगरी में प्रतिस्पर्धा की होती, तो वह 78.54 अंक हासिल करके अगले चरण के लिए क्वालीफाई कर जाते. लेकिन, एक OBC उम्मीदवार के रूप में इसके लिए उन्हें ज्यादा अंक लाने की जरूरत थी.
इससे भी ज्यादा दिलचस्प स्पेशल बैकवर्ड क्लास के पांच फीसदी छात्रों की कट-ऑफ थी, जो कि राज्य सरकार द्वारा गुर्जर और कुछ अन्य जातियों के लिए बनाई गई एक कैटेगरी थी. हालांकि बाद में हाई कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इस कैटेगरी में कटऑफ 80.82 था, जो कि फिर भी सामान्य मेरिट से ज्यादा था.
2018 में भी यही कहानी दोहराई गई. जब RA&AS में 1014 वैकेंसी के लिए प्रारंभिक परीक्षा के नतीजे घोषित किए गए. ओबीसी के लिए कटऑफ 99.33 और सामान्य कैटेगरी के लिए 76.06 और पुरुषों के लिए 79.64 और महिलाओं के लिए 66.67 थी. आदिवासी क्षेत्रों में- जहां एक अलग मेरिट लिस्ट बनाई जाती है- अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए कटऑफ 75.17 रही, जो कि सामान्य उम्मीदवारों के 71.14 से अधिक है.
राजस्थान में OBC की ऊंची कट-ऑफ का लगभग सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में यह एक आम चलन है. यहां OBC तकरीबन 50 जातियों का एक समूह है जिसमें जाटों, मालियों और कुमावतों का प्रभुत्व है.
2016 में पटवारी (राजस्व अधिकारी) के चयन के लिए सामान्य उम्मीदवारों की तुलना में तीनों आरक्षित श्रेणियों SC/ST/OBC का कटऑफ प्वाइंट ज्यादा था. (लिस्ट देखें) इसी तरह 2017 राजस्थान ज्यूडिशियरी सर्विस परीक्षा के लिए, OBC और सामान्य दोनों के लिए कटऑफ 63 था, जबकि SC और ST का क्रमशः 55 और 51 का आंकड़ा भी बहुत कम नहीं था.
विपुल चौधरी ने ओबीसी के लिए कटऑफ अधिक होने के बावजूद 2018 में प्रारंभिक RA&AS परीक्षा पास कर ली. वो कहते हैं, “अगर आपको ओपन कैटेगरी के छात्रों से ज्यादा अंक लाने पड़ें तो आरक्षण का क्या मतलब है? यह सिर्फ एक छलावा है.”
ओबीसी छात्रों का एक समूह, जिन्होंने सामान्य छात्रों के कटऑफ 76.04 से ज्यादा अंक हासिल किए थे, अदालत गए और अंतरिम राहत की मांग करते हुए कहा कि ओबीसी के लिए कट-ऑफ सामान्य कैटेगरी से कम ना हो तो, कम से कम इसके बराबर हो. आरक्षण की तर्कशीलता पर सवाल उठाते हुए इसे ‘आरक्षित वर्ग के लिए नुकसानदेह’ बताने के कई मुकदमे राजस्थान हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं.
राजस्थान में आरक्षित श्रेणी के छात्रों के लिए ऊंची कट-ऑफ के पीछे दो कारण हैं. पहला, संघ लोक सेवा आयोग के उलट राज्य सरकार एक नियम लागू करती है, जिसे ‘15 का नियम’ कहा जाता है. इस नियम के अनुसार यह प्रत्येक श्रेणी में वैकेंसी की संख्या के 15 गुना उम्मीदवारों की मंजूरी देती है. उदाहरण के लिए, अगर ओबीसी उम्मीदवारों के लिए 200 वैकेंसी हैं, तो यह अगले स्तर के लिए कैटेगरी से 3000 उम्मीदवारों को पास करती है. इस फॉर्मूले के तहत, सामान्य श्रेणी के छात्रों को एक अलग समूह माना जाता है और जिन्होंने आरक्षित श्रेणी के तहत आवेदन किया है, वह इससे बाहर माने जाते हैं. यह फॉर्मूला सुप्रीम कोर्ट के फैसले (दीपा ईवी बनाम भारत सरकार) को लेकर RPSC की व्याख्या पर आधारित है, जिसके बारे में इसका कहना है कि ऐसे उम्मीदवार जिन्होंने कोटा के लाभ का दावा किया है, उन्हें सामान्य श्रेणी के तहत सीटों का दावा करने से रोका जाएगा.
दूसरा कारण, निश्चय ही, कड़ी प्रतिस्पर्धा है. ओबीसी श्रेणी की सीटों पर राज्य की लगभग 50 फीसद आबादी के उम्मीदवारों द्वारा दावा किया जाता है, जिनमें से कई समूह आर्थिक और शैक्षणिक रूप से बहुत मजबूत हैं. इसके अलावा, एक बार OBC, SC, ST श्रेणियों को उनके लिए आरक्षित 50 फीसद सीटें आवंटित कर दी जाती हैं, तो बाकी बची आधी सीटें सामान्य उम्मीदवारों के लिए छोड़ दी जाती हैं, जिनकी संख्या ब्राह्मण, बनिया और राजपूत जैसी कुछ उच्च जातियों के वर्चस्व के साथ बहुत कम है.
दिलचस्प बात यह है कि अगर राजस्थान सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 फीसद आरक्षण में यही फॉर्मूला लागू करती है, तो यह कोटा के लाभ से वंचित लोगों के लिए एक तरह का रिवर्स (प्रतिगामी) आरक्षण होगा, जो कि कथित रूप से आर्थिक रूप से मजबूत अगड़ी जातियों के लिए होगा. अगर इसे लागू किया जाता है, तो OBC, SC, ST और EWS उम्मीदवार राज्य की तकरीबन 96 फीसद आबादी को कवर करेंगे. 15 के नियम के तहत RPSC इस 96 फीसद आबादी को 60 फीसद सीटें आवंटित कर शेष ‘अल्पसंख्यकों’ के लिए 40 फीसद सीटें छोड़ देगा. और इस तरह कोटा उच्च जातियों के विशेषाधिकार में बदल जाएगा.
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