सुप्रीम कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे के उस कथित बयान को गुरुवार को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि शीर्ष अदालत के कई जज ‘सरकार समर्थक’ हैं. कोर्ट ने साथ ही ये भी कहा कि शीर्ष अदालत सरकार को भी फटकार लगाती है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए एम खानविल्कर और जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच दवे की एक न्यूज चैनल को दिए गए बयान को लेकर नाराज थी. इसके अलावा बेंच ने न्यायाधीशों और न्यायिक कार्यवाहियों समेत लगभग हरेक मुद्दे पर सोशल मीडिया पर कठोर टिप्पणी, ट्रोल और आक्रामक प्रतिक्रिया की बढ़ती प्रवृत्ति को लेकर चिंता जताई.
पीठ ने कहा, ‘उन्हें इस बात को देखने के लिए हाईकोर्ट में बैठना चाहिए कि कैसे सरकार की खिंचाई की जाती है.’ बेंच ने दवे का नाम लिए बिना कहा, ‘बार के कुछ सदस्यों ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट में सरकार समर्थक जजों का वर्चस्व है. उन्हें हाईकोर्ट में बैठकर देखना चाहिए कि नागरिकों के अधिकार के पक्ष में कैसे सरकार की खिंचाई की जाती है.’
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ वकील फली एस नरीमन और हरीश साल्वे के उन सुझावों पर भी सहमति जताई कि सोशल मीडिया पर इस तरह की घटनाओं का रेगुलेशन किए जाने की जरूरत है. ये दोनों उत्तर प्रदेश में एक हाईवे पर सामूहिक बलात्कार के मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री आजम खान के बयान से संबंधित मामले में शीर्ष अदालत की मदद कर रहे हैं.
सोशल मीडिया को लेकर जताई नाराजगी
साल्वे ने कहा, 'मैंने अपना टि्वटर एकाउन्ट बंद कर दिया है. उस पर काफी गाली-गलौच की गई थी.’ उन्होंने कहा कि जब वह क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज से संबंधित मामले में पेश हो रहे थे और उसके बाद जो कुछ भी उनके टि्वटर हैंडल पर हुआ उसने उन्हें इसे बंद करने को मजबूर किया.
नरीमन ने कहा, 'इसीलिए मैं इससे दूर ही रहता हूं. मेरे पास ट्विटर अकाउंट नहीं है. इसलिए मैं काफी खुश रहता हूं.' नरीमन ने कहा कि इन मंचों पर तकरीबन सभी विषयों पर गैर जरूरी टिप्पणियां पाई जा सकती हैं.
पीठ ने तब कहा कि रोहिंग्या मामले पर सुनवाई के दौरान एक टिप्पणी को ऐसे पेश किया गया जैसे आदेश दे दिया गया हो और यह चर्चा का विषय बन गया.
साल्वे ने कहा कि ऐसा कुछ भी जो न्यायाधीशों और दलील रख रहे वकीलों के बीच विचारों के मुक्त आदान-प्रदान को बाधित करता है उसपर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है.
पीठ ने भी कहा कि सोशल मीडिया मंचों का दुरुपयोग हो रहा है और लोग अदालत की कार्यवाही के बारे में भी गलत सूचना फैला रहे हैं.
पीठ ने कहा, 'पहले, सिर्फ राज्य निजता के अधिकार का उल्लंघन कर सकता था. अब इस तरह की बातें निजी पक्षों से भी हो रही हैं.' साल्वे ने कहा कि कोई समाचार पत्र या मीडिया संगठन कोई ऑडियो क्लिप पाता है और इसकी प्रामाणिकता की कोई जिम्मेदारी लिये बिना इसका प्रकाशन करता है.
उन्होंने कहा, 'क्या यह निजता का उल्लंघन नहीं है.' पीठ ने कहा, 'निजी भागीदारों की घुसपैठ की वजह से ‘माई हाउस इज माई कैसल’ की अवधारणा तेजी से धुंधली पड़ रही है.'
निपटने के लिए चाहिए मजबूत कानून
नरीमन ने कहा कि भारतीय दीवानी कानून ‘त्रुटिपूर्ण’ हैं और इस तरह की घटनाओं से निपटने में सक्षम नहीं हैं.
साल्वे ने कहा, 'किसी तरह के नियमन की अविलंब आवश्यकता है.' पीठ ने सुझावों पर सहमति जताई.
इस बीच, शीर्ष अदालत ने उन सवालों को संविधान पीठ के पास भेजा कि क्या कोई सार्वजनिक पदाधिकारी या मंत्री जांच के अधीन किसी संवेदनशील मामले पर अपनी राय जाहिर करने के दौरान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दावा कर सकता है.
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