उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का दूसरा कार्यकाल गुरुवार को पूरा हो रहा है. इससे एक दिन पहले उन्होंने देश में 'स्वीकार्यता के माहौल' पर खतरा बताते हुए कहा, 'देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है.' उन्होंने बताया, 'असहनशीलता का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके कैबिनेट के सहयोगियों के सामने भी उठाया है.'
हामिद अंसारी ने इसे परेशान करने वाला विचार करार दिया. उन्होंने कहा, नागरिकों की भारतीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं.
एक टीवी इंटरव्यू में जब अंसारी से पूछा गया कि क्या उन्होंने अपनी चिंताओं से प्रधानमंत्री को अगवत कराया है, इस पर उपराष्ट्रपति ने 'हां' कहकर जवाब दिया. हालांकि उन्होंने कहा, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच क्या बातें हो रही हैं, यह विशेषाधिकार वाली बातचीत के दायरे में ही रहना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि अन्य केंद्रीय मंत्रियों के सामने भी उन्होंने इस मुद्दे को उठाया है.
सरकार की क्या प्रतिक्रिया रही यह पूछे जाने पर अंसारी ने कहा, यूं तो हमेशा एक स्पष्टीकरण और एक तर्क होता है. अब यह तय करने का मामला है कि आप क्या स्वीकार करते हैं.
इस इंटरव्यू में अंसारी ने भीड़ की ओर से लोगों को पीट-पीटकर मार डालने की घटनाओं, 'घर वापसी' और तर्कवादियों की हत्याओं का हवाला देते हुए कहा, 'यह भारतीय मूल्यों का बेहद कमजोर हो जाना, सामान्य तौर पर कानून लागू करा पाने में विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की योग्यता का चरमरा जाना और इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात किसी नागरिक की भारतीयता पर सवाल उठाया जाना है.'
यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस बात से सहमत हैं कि मुस्लिम समुदाय में एक तरह की शंका है और जिस तरह के बयान उन लोगों के खिलाफ दिए जा रहे हैं, उससे वे असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इस पर अंसारी ने कहा, 'हां, यह आकलन सही है, जो मैं देश के अलग-अलग हलकों से सुनता हूं. मैं इस बारे में उत्तर भारत में ज्यादा सुनता हूं. लोगों में बेचैनी का अहसास है और असुरक्षा की भावना घर कर रही है.'
यह पूछे जाने पर कि क्या मुस्लिमों को ऐसा लगने लगा है कि वे 'अवांछित' हैं, इस पर अंसारी ने कहा, 'मैं इतनी दूर नहीं जाऊंगा, असुरक्षा की भावना है.' तीन तलाक के मुद्दे पर अंसारी ने कहा, यह एक 'सामाजिक विचलन' है, कोई धार्मिक जरूरत नहीं.
उन्होंने कहा, 'पहली बात तो यह कि यह एक सामाजिक विचलन है, यह कोई धार्मिक जरूरत नहीं है. धार्मिक जरूरत बिल्कुल स्पष्ट है, इस बारे में कोई दो राय नहीं है. लेकिन पितृसत्ता, सामाजिक रीति-रिवाज इसमें घुसकर हालात को ऐसा बना चुके हैं जो अत्यंत अवांछित है.' उन्होंने कहा कि अदालतों को इस मामले में दखल नहीं देना चाहिए, क्योंकि सुधार समुदाय के भीतर से ही होंगे. कश्मीर मुद्दे पर अंसारी ने कहा कि यह राजनीतिक समस्या है और इसका राजनीतिक समाधान ही होना चाहिए.
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