मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए 'दलित' शब्द के इस्तेमाल पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं.
दरअसल, डॉ. मोहन लाल माहौर ने दलित शब्द पर आपत्ति जताते हुए हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी जिसमें कहा गया था कि संविधान में इस शब्द का कोई उल्लेख नहीं है.
इस वर्ग से जुड़े लोगों को अनुसूचित जाति अथवा जनजाति के रूप में ही संबोधित किया गया है. ऐसे में सरकारी दस्तावेजों और दूसरी जगहों पर दलित शब्द का इस्तेमाल संविधान के विपरीत किया जा रहा है.
संविधान में नहीं है दलित शब्द का जिक्र
हाई कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश जारी किए कि दलित शब्द का इस्तेमाल किसी भी सरकारी और गैर सरकारी विभागों में नहीं किया जाए.
उसके लिए संविधान में बताएं शब्द ही इस्तेमाल में लाए जाएं. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता अभिषेक पाराशर ने बताया कि यह आदेश पूरे मध्य प्रदेश में लागू होगा.
दलित शब्द का संविधान में कोई जिक्र नहीं है. 2008 में नेशनल एससी कमीशन ने सारे राज्यों को निर्देश दिया था कि राज्य अपने आधिकारिक दस्तावेजों में दलित शब्द का इस्तेमाल न करें.
हालांकि इस शब्द का इस्तेमाल डॉ भीमराव अंबेडकर, कांशीराम सहित देशभर के दलित चिंतकों से आम जन तक करते रहे हैं.
(न्यूज 18 के लिए महेश शिवहरे की रिपोर्ट)
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