डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को रेप केस में सजा सुनाए जाने के बाद हरियाणा और पंजाब में भारी हिंसा हुई है. भीड़ द्वारा हिंसा की इस आग की लपटें राजस्थान और दिल्ली तक भी पहुंच गई हैं. कई लोगों की मौत हो चुकी है और सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा है.
अब सवाल यह है कि इस हिंसा के लिए जिम्मेदार कौन है? पहली नजर में कोई भी यह कह सकता है कि इस हिंसा के लिए गुरमीत राम रहीम के समर्थक जिम्मेदार हैं. जिस तरह से यह भीड़ उग्र हुई है, उससे यह साफ है कि ये अंधभक्तों की भीड़ है.
पर सवाल यह है कि क्या इस भीड़ को नियंत्रित नहीं किया जा सकता था? हरियाणा और पंजाब के मुख्यमंत्रियों के साथ-साथ खुद गुरमीत राम रहीम सिंह ने भी अपने समर्थकों से शांति की अपील की है. पर क्या सिर्फ अपील से काम बन जाएगा? हिंसा की घटनाओं को देखें तो इन अपीलों का कोई खास असर होता नहीं दिख रहा है. इस तरह की अपील सांप के गुजर जाने के बाद लकीर पीटने जैसा है.
तीसरी बार फेल हुई है खट्टर सरकार
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर सब कुछ हो जाने के बाद यह कह रहे हैं कि हिंसा करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा. दरअसल इस घटना के लिए सबसे अधिक कोई अगर जिम्मेदार है तो वो खुद मनोहर लाल खट्टर हैं. मनोहर लाल खट्टर को इस घटना की पूरी जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
मनोहर लाल खट्टर के 2014 में मुख्यमंत्री बनने के बाद भीड़ द्वारा सार्वजनिक हिंसा की यह तीसरी घटना है. सबसे पहली घटना हिसार में बाबा रामपाल को गिरफ्तार करने के दौरान हुई थी. इसमें 5 महिलाओं समेत 6 लोगों की मौत हुई थी. बाबा रामपाल के आश्रम में उनके समर्थकों ने तरह-तरह के घातक हथियार जमा कर रखे थे.
सुरक्षा बलों ने रामपाल को गिरफ्तार करने के बाद 26 करोड़ रुपए के खर्च का बिल राज्य सरकार को दिया है.
इसी तरह जाट आरक्षण आंदोलन के वक्त सार्वजनिक संपत्ति के भारी नुकसान के साथ-साथ 30 लोगों की जान गई थी. मुरथल में सामूहिक बलात्कार की घटनाएं सामने आईं थीं.
कैसे जमा हो गई लाखों की भीड़?
लेकिन मनोहर लाल खट्टर ने इन दो घटनाओं से कोई सबक नहीं लिया. उनका पूरा सरकारी अमला पिछले दो दिनों से लगातार विरोधाभासी बयान दे रहा है. पुलिस प्रशासन के अफसर यह बयान दे रहे थे कि सुरक्षा के पुख्ता अंजाम किए गए हैं. सेना और अर्द्ध-सैनिक बलों को तैनात किया गया है और धारा 144 लगाई गई है.
दूसरी तरफ ये लोग यह भी कह रहे थे कि गुरमीत राम रहीम के समर्थक शांतिपूर्ण तरीके से पंचकुला में जमा हो रहे हैं इसलिए इन्हें रोका नहीं जा सकता. हरियाणा के मंत्री रामविलास शर्मा का कहना था कि धारा 144 राम रहीम के समर्थकों पर लागू नहीं होता है.
अब सवाल यह है कि जब राम रहीम के समर्थकों पर जब धारा 144 लागू ही नहीं होता तो फिर यह किसके लिए और क्यों लगाई गई? जब राम रहीम के समर्थक इतने ही शांतिपूर्ण थे तो सेना और पुलिस क्यों लगाई गई थी?
इस दोहरे रवैये की वजह से ही सिर्फ पंचकुला में एक लाख से अधिक लोग इकट्ठा हो गई थी. अब कितनी भी सेना हो या पुलिस हो इतनी भीड़ को हिंसक होने पर रोकना मुश्किल काम ही होगा. सबसे बेहतर यही होता कि इस भीड़ को जमा ही नहीं होने दिया जाता. एक या दो अविवेकी और हिंसक इंसान पर काबू पाना आसान होता है लेकिन जब यह भीड़ वह भी लाखों की भीड़ में तब्दील हो जाए हो यह असंभव जैसा काम होता है.
वोट बैंक के नाम पर भीड़ तंत्र को बढ़ावा
खट्टर सरकार का ठीक इसी तरह का रवैया जाट आरक्षण आंदोलन के समय भी था. एक तरफ झूठ-मूठ और दिखावे के लिए सुरक्षा के इंतजाम किए जाते हैं और हिंसा करने के लिए भीड़ को इकट्ठा भी होने दिया जाता है. वोटबैंक के नाम पर ‘लोकतंत्र’ में ‘भीड़तंत्र’ को बढ़ावा देने का खट्टर सरकार ने पिछले तीन साल में नायाब नमूना पेश किया है. हिंसा करने वाली भीड़ को यह डर ही नहीं है कि कानून नाम की कोई चीज उनके ऊपर है.
जो काम सरकार को करना चाहिए वो हरियाणा में पिछले 3 सालों से कोर्ट कर रही है. इस मामले में भी कोर्ट ने पुलिस-प्रशासन को पहले से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने को कहा था. यानी जो काम मुख्यमंत्री के जरिए होनी चाहिए थी वो अदालत कर रही थी. यहां तक कि हिंसा से हुए नुकसान की भरपाई का आदेश भी पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के जरिए आई.
अदालत ने कहा कि राम रहीम की संपत्ति जब्त करके नुकसान की भरपाई की जाए. यहां पर केंद्र सरकार खासकर गृह मंत्रालय का रवैया भी काफी निराशाजनक रहा है. सरकारें हर बार सिर्फ ‘कड़ी निंदा’ करके अपनी जिम्मेवारी से पल्ला नहीं झाड़ सकतीं. खासकर तब जब हाई कोर्ट सुरक्षा संबंधी चिंता जता रही हो.
सवाल यह है कि कब तक ‘वोट बैंक’ या ‘राजनीतिक पहुंच’ के नाम पर इस तरह के बाबाओं और हिंसा करने वालों को शह मिलता रहेगा. इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार हरियाणा में चुनाव जीतने के बाद बीजेपी के एक बड़े नेता और सभी विधायकों ने राम रहीम के आश्रम जाकर समर्थन देने के लिए उनका आभार जताया था.
क्या सिर्फ शासक दल से नजदीकी के नाम पर किसी को भी इस तरह की हिंसा करने की अनुमति दी जा सकती है? अगर सब कुछ भीड़ को ही चलाना है तो लोग सरकार क्यों चुनते हैं? क्या सरकार कोई फैसला सिर्फ इस आधार पर लेगी कि कौन व्यक्ति उसका समर्थक और कौन विरोधी?
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के लिए अभी भी समय है कि वो इस पूरी हिंसा की जिम्मेदारी अपने ऊपर लें. उन्हें जो काम करना चाहिए था वो अदालत कर रही है. ऐसे में हरियाणा को उनकी कोई जरुरत नहीं है.
हंदवाड़ा में भी आतंकियों के साथ एक एनकाउंटर चल रहा है. बताया जा रहा है कि यहां के यारू इलाके में जवानों ने दो आतंकियों को घेर रखा है
कांग्रेस में शामिल हो कर अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत करने जा रहीं फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर का कहना है कि वह ग्लैमर के कारण नहीं बल्कि विचारधारा के कारण कांग्रेस में आई हैं
पीएम के संबोधन पर राहुल गांधी ने उनपर कुछ इसतरह तंज कसा.
मलाइका अरोड़ा दूसरी बार शादी करने जा रही हैं
संयुक्त निदेशक स्तर के एक अधिकारी को जरूरी दस्तावेजों के साथ बुधवार लंदन रवाना होने का काम सौंपा गया है.