पिछले 6 दिन से दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग को जाम कर रहे और कई हाईवे पर धरना दे रहे गुर्जरों के आरक्षण आंदोलन को खत्म करने की दिशा में सरकार ने कदम उठा दिया है. राजस्थान सरकार ने बुधवार को गुर्जर समेत 5 जातियों को 5 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव विधानसभा में पारित कर दिया है. इसमें सरकारी नौकरियों और शिक्षा में अलग से आरक्षण देने की बात है.
गुर्जर, गाड़िया लुहार, बंजारा, राइका-रैबारी और देवासी जातियों को अति पिछड़ा वर्ग (MBC) में रखकर 5% आरक्षण दिया गया है. राजस्थान में पिछड़े वर्ग (OBC) को 21% आरक्षण पहले से मिला हुआ है. इस तरह पिछड़े वर्गों का कुल आरक्षण अब 26% हो गया है. एससी, एसटी और सवर्णों को मिलाकर कुल आरक्षण 50% की सीमा पार कर 64% हो गया है. आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण के लिए संविधान में संशोधन किया जा चुका है. इस 5 फीसदी के लिए गुर्जर भी संविधान में संशोधन की मांग कर रहे हैं.
विधानसभा से पारित हुआ प्रस्ताव
विधानसभा में गुर्जर समेत 5 जातियों को 5 फीसदी आरक्षण के इस विधेयक को पक्ष और विपक्ष ने एकसुर में ध्वनिमत से पारित किया. रात में ही इसे राज्यपाल से मंजूरी भी मिल गई. सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में एडमिशन को लेकर अब नियमों में संशोधन किए जाएंगे. बिल पास करने के बाद मुख्यमंत्री के अलावा विधानसभाध्यक्ष सी.पी. जोशी ने भी गुर्जर समाज से आंदोलन खत्म करने की अपील की.
बीजेपी ने इस विधेयक को समर्थन दिया है. लेकिन विधानसभा के अंदर नेता प्रतिपक्ष गुलाब चंद कटारिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र सिंह राठौड़ ने कई सवाल भी उठाए. राजेंद्र राठौड़ ने कहा कि पिछले महीने खुद उन्होने इस तरह का प्रस्ताव रखा था. पर तब सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. अब जब गुर्जरों ने रेल और सड़कें जाम कर दीं तो सरकार तुरत-फुरत एक्शन में आ गई.
दूसरी ओर, कटारिया ने इस विधेयक के बावजूद रास्ता साफ नहीं होने की बात कही. कटारिया ने ध्यान दिलाया कि 5% आरक्षण वाले प्रस्ताव विधानसभा से पहले भी पारित हुए हैं. लेकिन हर बार अदालती कार्यवाही के सामने ये टिक नहीं पाए. इसलिए सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए.
13 साल में क्यों नहीं मिल पाया आरक्षण?
ये आरक्षण आंदोलन 2006 से ही जारी है. गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण देने के लिए पहले भी विधानसभा से 2 बार प्रस्ताव पारित किए गए हैं. ऐसा आखिरी प्रयास 2017 में वसुंधरा राजे सरकार ने किया था. इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी गई थी. नई नौकरियों के विज्ञापनों में भी इसे लागू कर दिया गया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी. ये मामला ऐसा उलझा कि कई भर्तियां अभी तक अपनी प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाई हैं.
कोर्ट हर बार गुर्जर आरक्षण पर इसलिए रोक लगा देता है क्योंकि इससे कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ऊपर चली जाती है. गुर्जर हमेशा से अदालती कार्यवाही से बचने के लिए इसे नौंवी अनुसूची में शामिल करने की मांग करते रहे हैं. इसबार गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला ने संविधान संशोधन की मांग कर दी है. बैंसला ने कहा कि जिस तरह से सवर्णों को संशोधन के जरिए फायदा दिया गया, उसी तरह उनके लिए भी संविधान संशोधन किया जाए.
विधानसभा ने इस बार नौंवी अनुसूची से जुड़ा संकल्प तो पारित कर दिया है. लेकिन संविधान संशोधन की राह आसान नहीं है. वर्तमान लोकसभा का आखिरी सत्र पूरा हो चुका है. कुछ दिन में चुनावी तारीखो के ऐलान के साथ ही आचार संहिता भी लागू हो जाएगी. ऐसे में संशोधन की प्रक्रिया का शुरू होना नामुमकिन सा ही है.
दूसरी तरफ, नौंवी अनुसूची का कवच भी अब उतना कारगर साबित होना मुश्किल है. केशवानंद भारती Vs केरल सरकार वाद में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट आदेश है कि 24 अप्रैल, 1973 के बाद से नौंवी अनुसूची में शामिल मामले भी न्यायिक समीक्षा के योग्य हैं. दरअसल, संविधान की नौंवी अनुसूची में वे विषय शामिल किए जाते थे, जिन्हें सरकार न्यायिक समीक्षा से परे रखना चाहती थी. न्यायिक पुनरवलोकन को सुप्रीम कोर्ट पहले ही संविधान के आधारभूत ढांचे की संज्ञा दे चुका है.
अब आगे की राह क्या?
पिछले 12-13 साल से ये आंदोलन चल रहा है. इस दौरान राज्य में बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ही दलों की सरकारें रही हैं. लेकिन अब तक का इतिहास यही बताता है कि इस आंदोलन को राजनीति की पेचीदगियों में उलझाने की पूरी कोशिशें की गई. अब जो प्रस्ताव पास किया गया है, उसमें भी राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है. राज्य की कांग्रेस सरकार ने एक तरह से केंद्र की मोदी सरकार पर ठीकरा फोड़ने की व्यवस्था कर दी है.
विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की आपत्तियों के बावजूद केंद्र द्वारा संविधान संशोधन करने और 5 फीसदी आरक्षण को लागू करने में सहयोग करने का संकल्प भी पारित किया गया है. कैबिनेट मंत्री बी डी कल्ला ने कहा कि संशोधन का प्रस्ताव पारित करेंगे तभी केंद्र सरकार पर दबाव बनेगा. उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने कहा कि सभी सदस्य एकसाथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से वार्ता करें. इन घटनाक्रमों को देखकर तो लगता है कि आगे की राह आसान तो कतई नहीं है.
दूसरी ओर, खुद गुर्जर भी अभी आश्वस्त नहीं हैं. आंदोलन के छठे दिन आरक्षण का प्रस्ताव पास किया गया. लेकिन रेलवे ट्रैक और सड़कों पर जमे गुर्जर अभी आंदोलन को पूरी तरह खत्म करने के मूड में नहीं है. बुधवार की देर शाम तक गुर्जर नेता किरोड़ी सिंह बैंसला बिल की हार्ड कॉपी का इंतजार करते रहे. बैंसला ने कहा कि ऐसे प्रस्ताव तो पहले भी कई बार पारित किए जा चुके हैं. उन्होने साफ कह दिया है कि बिल की भाषा का अध्ययन करने और सरकार के गजट नोटिफिकेशन जारी करने के बाद ही वे आंदोलन खत्म करने का फैसला करेंगे.
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