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गिर नेशनल पार्क: 23 शेरों की मौत की गुत्थी सुलझाने की बजाय भ्रम पैदा कर रहा है वन विभाग!

पिछले कुछ दिनों में की गई तमाम कोशिशों का निश्चित परिणाम अब तक यही निकल कर सामने आया है कि वन विभाग शेरों की मौत की असली वजह बताने में नाकाम रहा है

Updated On: Oct 07, 2018 09:05 PM IST

Ajay Suri, Asif Khan

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गुजरात के गिर नेशनल पार्क में 23 शेरों की मौत कैसे हुई? ऐसा लगता है कि वन विभाग इसको लेकर अभी तक हवा में ही बातें कर रहा है और उसके पास इसका ठोस जवाब नहीं है. हाल तक कैनाइन डिस्टेंपर वायरस (सीडीवी) को इन मौतों के लिए जिम्मेदार माना जा रहा था, लेकिन कुल 23 में से सिर्फ 4 शेरों की मौत इस वायरस के कारण होने की बात कही जा रही है. बाकी शेरों की मौत के बारे में क्या वजह हो सकती है? अब वन विभाग की तरफ से दावा किया जा रहा था कि 10 शेरों की मौत बेबिसियोसिस संबंधी बीमारी के कारण हुई.

भैंसे का मांस खाने से फैला संक्रमण?

बेबिसियोसिस संक्रमण से हुई मौत का दावा इस संबंध में वन विभाग की आधिकारिक स्थिति को और कमजोर करता है. फ़र्स्टपोस्ट के साथ बातचीत में अधिकारियों और विशेषज्ञों ने शरों की मौत की ठीक-ठीक वजहों के बारे में नहीं बता पाने को लेकर हैरानी जताई. 23 शेरों की मौत को लेकर एक और कहानी चल रही है, जिससे इस पूरे मामले में भ्रम और बढ़ गया है. हालांकि, वन विभाग के अधिकारी इस वजह की न तो पुष्टि कर रहे हैं और न ही उनके द्वारा इसे खारिज किया गया है. अगर यह वजह साबित हो जाती है, तो सभी 23 शेरों की मौत को लेकर ठीक-ठीक बात सामने आ सकती है.

इस दावे के मुताबिक, मुमकिन है कि खतरनाक बेबिसियोसिस संक्रमण के शिकार मृत भैंसे के जरिए यह बीमारी शेरों में आ गई हो. दरअसल, माना जा रहा है कि इस भैंसे का मांस खाने के बाद मौत का शिकार बने 23 शेर इस संक्रमण की चपेट में आए होंगे. दिलचस्प बात यह है कि वन विभाग (वाइल्ड लाइफ सर्किल, जूनागढ़) डी टी वास्वदा भी इस तरह की आशंका से इनकार नहीं कर रहे हैं.

Gir Asiatic Lion

(फोटो: रॉयटर्स)

गिर से जुड़े वन विभाग के कुछ कर्मचारी पहले से दबी जुबान में यह बात कह रहे हैं कि तकरीबन एक महीना पहले नेशनल पार्क के दलखनिया इलाके में आंशिक रूप से खाए जा चुके भैंस का शव पाया गया था. सभी मौतें पार्क के इसी क्षेत्र में हुई हैं. एक और महत्वपूर्ण बात यह कि भैंसे का शव पाए जाने के कुछ ही दिन के बाद ही शेर बीमार पड़ने लगे और उनकी मौत हो गई.

इस बारे में पूछे जाने पर वन विभाग के अधिकारी वास्वदा का कहना था कि दलखनिया क्षेत्र के शेरों द्वारा मृत भैंसे को खाए जाने को लेकर हो रही चर्चा से वह 'वाकिफ' हैं. इस सिलसिले में और पूछताछ करने पर उन्होंने कहा, 'फिलहाल मैं इन अटकलों के बारे में हां या ना, कुछ भी नहीं कहूंगा. लोग तमाम तरह की बातें कर रहे हैं. बहरहाल, हम इस पहलू की भी पड़ताल कर रहे हैं.'

मौत की वजहों को लेकर योजनाबद्ध तरीके से भ्रम फैलाने की भी अटकलें

ऐसा लगता है कि शेरों की मौत के मामले में बड़े पैमाने पर भ्रम का माहौल बनाया जा रहा है, ताकि कोई ठोस नतीजा नहीं निकाला जा सके. दरअसल, इस मामले में भी पुरानी और बार-बार दोहराई जाने वाली इस कहावत का इस्तेमाल किया जा रहा है, 'अगर आप उन्हें सहमत नहीं कर सकते, तो भ्रम पैदा कर दीजिए'. जरा इस तथ्य पर गौर कीजिए- 5 अलग-अलग संस्थानों द्वारा 23 शेरों के पोस्टमार्टम और अन्य जांच की गई हैं. इन संस्थानों में वेटनेरी कॉलेज (जूनागढ़), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (पुणे), फॉरेंसिक साइंस लैबोरटेरी (जूनागढ़), गुजरात बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर (गांधीनगर) और इंडियन वेटनेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (बरेली) शामिल हैं. इसके अलावा, गुजरात वन विभाग ने भी देश भर के विशेषज्ञ डॉक्टरों और चिड़ियाघरों से संपर्क किया है.

gir

गुजरात के एक और वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया कि विभाग इस मामले में किसी भी तरह का प्रयास छोड़ना नहीं चाह रहा है और इस वजह से भी भ्रम और बढ़ रहा है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि इस मामले में एक साथ कई पिटारे खोल दिए गए हैं.

वास्वदा से जब इस मामले में रॉयल वेटनेरी कॉलेज के विशेषज्ञों को बुलाने के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने भी एक साथ कई मोर्चों पर जांच की बात स्वीकार की. उनका साफ तौर पर कहना था, 'हम इस मामले में किसी तरह का प्रयास नहीं छोड़ना चाहते. बाद में कोई यह नहीं कहे कि संकट की घड़ी में हम सभी विकल्पों को आजमाने में असफल रहे.' उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में अचानक से शेरों की मौत के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं. कैनाइन डिस्टेंपर वायरस, बेबिसियोसिस संक्रमण और कुछ अन्य कारण भी मुमकिन हैं. उनके मुताबिक, इनमें से कोई एक या सभी बीमारियां शेरों की मौत का कारण हो सकती हैं. उन्होंने कहा, 'हम अपने पास मौजूद सभी प्रमाणों का अध्ययन कर रहे हैं.'

वन विभाग शेरों की मौत की असली वजह बताने में नाकाम रहा है

पिछले कुछ दिनों में की गई तमाम कोशिशों का निश्चित परिणाम अब तक यही निकल कर सामने आया है कि वन विभाग शेरों की मौत की असली वजह बताने में नाकाम रहा है. अब तक सरकारी हलकों या वन विभाग में इस बात को लेकर किसी तरह की चर्चा नहीं हो रही है कि हालात और खराब होने की स्थिति में उचित आपातकालीन योजना क्या हो सकती है. दरअसल, अफ्रीकी महाद्वीप के बाहर दुनिया में यहीं पर इस प्रजाति के शेर बचे हुए हैं.

शायद यह वक्त दो दशक पुराने उस प्लान पर से धूल हटाकर उस पर फिर से सक्रियता बढ़ाने का है, जिसके तहत गिर के कम से कम कुछ शेरों को मध्य प्रदेश स्थानांतरित (ट्रांसफर) करने की बात थी. इस कदम से एशियाई शेरों की जीन की काफी हद तक सुरक्षा मुमकिन हो सकेगी.

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