केंद्र ने देश के हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर चिंता जाहिर की है. जिन 126 नामों की सिफारिश की गई है, जांच में उनमें से लगभग आधे संदेह के घेरे में हैं. सरकार की तरफ से जो तयशुदा पैमाना है उसमें इनकी कम आय, ईमानदारी और योग्यता मुद्दा बन रही है.
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के अनुसार सरकार ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की सहायता से उन सभी वकीलों के बारे में पता किया जिनका नाम पिछले 3-4 महीनों के अंतराल में जज बनने की सिफारिश सूची में है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को इसकी जानकारी दी है.
Govt finds fault with 50% of names sent for HC judgeship https://t.co/95ZHMh46hz pic.twitter.com/aaEOlyW6lQ
— Times of India (@timesofindia) August 12, 2018
सूत्रों के अनुसार कानून मंत्रालय ने हाईकोर्ट कॉलेजियम की तरफ से भेजे गए प्रस्ताव में शामिल हर नाम की जांच कराने के लिए एक सिस्टम (मेकैनिज्म) बनाया है. सूची में जिनके नाम हैं उन्हें निर्णय लेने की क्षमता (जिसमें वो शामिल रहे हों), न्यूनतम सालाना आय, न्यायपालिका में उनकी छवि, व्यक्तिगत और पेशेवर कामों के हिसाब से परखा गया है.
सरकार ने कानून मंत्रालय में हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर अपनी एक प्रणाली बना रखी है जो अनुशंसित सभी नामों के बैकग्राउंड का पता लगाती है. इसके बाद ही मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिज़र (एमओपी) को अंतिम रूप दिया जाता है.
सूत्रों के मुताबिक कम से कम 30 से 40 उम्मीदवार हाईकोर्ट का जज बनने की योग्यता नहीं रखते. इसके लिए बीते 5 वर्षों में वकील के रूप में उनकी न्यूनतम सालाना आमदनी 7 लाख रुपए होनी चाहिए. उम्मीदवारों के प्रदर्शन को भी इस दौरान जांचा-परखा गया. मूल्यांकन के दौरान कानून विभाग के अधिकारियों ने उनके लिए कम से कम 1000-1200 फैसलों पर गौर किया.
खुफिया ब्यूरो ने कुछ मामलों में उम्मीदवारों के निजी और पेशेवर (प्रोफेशनल) जीवन के बारे में भी जानकारियां साझा की. इसमें परिवारवाद और पक्षपात की बात सामने आई. जबकि कुछ के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के वर्तमान और पूर्व जजों के सगे-संबंधी होने का पता चला. ऐसे नामों के प्रस्ताव पर कुछ हाईकोर्ट पर सवाल उठाए गए.
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