रक्षा मंत्रालय ने दिल्ली हाई कोर्ट में कहा है कि भारत सरकार को एयरक्राफ्ट एडमिरल गोर्शकोव की कीमतों को लेकर रूस के साथ हुए समझोतों और उसके पीछे वजह का खुलास नहीं करना चाहिए.
दरअसल केंद्रीय सूचना आयोग( सीआईसी) ने सरकार को इस बात का खुलासा करने के लिए कहा था कि एयरक्राफ्ट की बढ़ी कीमत को लेकर भारत सरकार ने रूस के सामने हामी क्यों भरी.
रक्षा मंत्रालय ने सीआईसी के इस आदेश को चुनौती देते हुए कहा है कि इस बात का खुलासा राष्ट्रहित में नहीं किया जाना चाहिए.
केंद्रीय सूचना आयोग( सीआईसी) के आदेश को चुनौती देते हुए रक्षा मंत्रालय ने एक रिट याचिका के माध्यम से दावा किया है कि भारत और रूस के बीच अंतर- सरकारी समझौता इस तरह की विस्तृत जानकारियां देने पर रोक लगाता है और यह आरटीआई अधिनियम की धारा8(1) (a) के छूट सेक्शन के तहत आयेगा.
रिट याचिका में कहा गया है,‘ सेक्शन 9 में आईजीए विशेष रूप से यह बताता है कि वर्तमान समझौते की सामग्री का खुलासा न करने के साथ- साथ आपसी सहमति के बिना इसके इंप्लीमेंटेशन से संबंधित सभी पत्राचार और सूचनाओं के बारे में भी जानकारी का खुलासा नहीं किया जाए.’
एनडीए की सरकार ने की थी डील
इस विमान वाहक की खरीद के लिए समझौते पर हस्ताक्षर वर्ष 2004 में तत्कालीन एनडीए की सरकार द्वारा किए गए थे. उस समय इसकी कीमत 97.4 करोड़ डॉलर थी. वर्ष 2010 में इसकी कीमत को बढ़ाकर 2.35 अरब डॉलर कर दिया गया. भारत ने इस एयरक्राफ्ट का नाम आईएनएस विक्रमादित्य दिया था.
कीमत बढ़ाए जाने और अन्य मुद्दों के बारे में सुभाष अग्रवाल ने एक याचिका दायर की थी. सूचना आयुक्त अमिताभ भट्टाचार्य ने इस याचिका पर विस्तृत सुनवाई की थी और कीमत बढाए जाने के कारणों का खुलासा करने का आदेश देने से पहले सभी पक्षों को सुना था.
अदालत ने अब अग्रवाल को इस मामले पर पांच अप्रैल को पेश होने के लिए कहा है.
मंत्रालय ने कहा कि यदि विवरण का खुलासा हुआ, तो समझौते के उल्लंघन की वजह से 'भारत और रूस के बीच संबंध’ प्रभावित होंगे और यह एक विदेशी राष्ट्र के साथ संबंधों के लिए नुकसानदायक होगा.
इससे पहले रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने राफेल डील पर कांग्रेस की ओर से उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि डील से जुड़ी बातें सार्वजनिक करने का मतलब दुश्मनों की मदद करने जैसा होगा इसलिए हम ऐसा नहीं कर सकते.
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