गोरखपुर के बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत का सिलसिला पिछले एक महीने से थमने का नाम नहीं ले रहा है. पिछले 48 घंटे में बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 24 बच्चों की मौत हो गई है. वहीं फर्रूखाबाद में भी 49 बच्चों की मौत पर सरकार और अफरशाही के बीच टकराव पैदा हो गए हैं.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पीके सिंह ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘पिछले 3 सितंबर को 9 बच्चों की और 4 सितंबर को 15 बच्चों की मौत हुई है. अस्पताल प्रशासन बच्चों की मौत को रोकने के लिए प्रयासरत है. मेडिकल कॉलेज में सुविधाओं को सुधारने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं. सरकार ने 24 नए 'वार्मर' मुहैया कराए हैं जो नवजात शिशुओं के लिए उपयोग में आते हैं. ये नए वॉर्मर लगा दिए गए हैं. उम्मीद है जल्द हमलोग इस पर कंट्रोल कर लेंगे.’
सिंह आगे कहते हैं, ‘बेहतर चिकित्सा सुविधाएं मुहैया कराने के मकसद से मेडिकल कॉलेज में 18 नए डॉक्टर भी आए हैं. उन्होंने बताया कि इनमें दस जूनियर रेजीडेंट डॉक्टर, सात मेडिकल अफसर और एक प्रोफेसर शामिल हैं.’
इस साल बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इंसेफेलाइटिस और नवजात बच्चों के वार्ड में 1 जनवरी से 4 सितंबर तक 1341 बच्चों की मौत हो चुकी है.
इस साल इंसेफेलाइटिस से बीआरडी मेडिकल कॉलेज में लगभग 210 बच्चों की मौत हो चुकी है. एक जनवरी से 4 सितंबर तक यहां पर इंसेफलाइटिस वार्ड में लगभग 1000 बच्चे भर्ती हुए जिसमें 210 बच्चों की जान चली गई. इसी अवधि में नियोनेटल आईसीयू में लगभग 1130 शिशुओं की मौत हुई है.
7 अगस्त से लेकर 16 अगस्त तक 112 बच्चों की मौत
गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 7 अगस्त से लेकर 16 अगस्त तक 112 बच्चों की मौत हुई थी. अस्पताल में हो रही लगातार मौतों को लेकर गोरखपुर के आसपास रहने वाले लोगों में दहशत लगातार बनी हुई है.
हम आपको बता दें कि मेडिकल कॉलेज में जो मौत हो रही हैं वह ज्यादातर 100 नंबर वार्ड के इंटेसिव केयर यूनिट में हो रही हैं. इस वार्ड में ही इंसेफलाइटिस बुखार से पीड़ित बच्चों का इलाज किया जा रहा है.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती होने वाले मरीज गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, बस्ती सहित एक दर्जन जिलों के अलावा बिहार और नेपाल के भी होते हैं.
बीआरडी कॉलेज में बच्चों की मौत कोई नई बात नहीं
फर्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए हिंदुस्तान अखबार से जुड़े एक स्थानीय पत्रकार अरविंद राय कहते हैं, 'देखिए गोरखपुर में बच्चों की मौत तो हर साल होती है. लेकिन, इस साल नई सरकार और खासकर योगी जी के मुख्यमंत्री बनने के बाद यह मामला काफी तूल पकड़ लिया है. योगी जी का यह क्षेत्र है. ऐसे में यह मामला ज्यादा सुर्खियां बटोर रहा है. बीआरडी कॉलेज में बच्चों की मौत कोई नई बात नहीं है. हर साल इस मौसम में बच्चों की मौत होती है. सरकार के पास न तो विकल्प है और न ही इच्छाशक्ति.'
हम आपको बता दें कि बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कई माता-पिता ऐसे हैं जो पहले भी इंसेफलाइटिस बुखार से अपने बच्चों को खो चुके हैं. उन लोगों को एक बार फिर से अपने बच्चों को खोने का डर सताता रहता है. अस्पताल में सैंकड़ों की संख्या में इंसेफेलाइटिस बुखार से पीड़ित बच्चों को आना अभी भी जारी है.
इसी अगस्त महीने में 10 और 11 अगस्त को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में 36 बच्चों की मौत हो गई थी. इन बच्चों के मौत की वजह ऑक्सीजन की कमी को बताई गई थी.
हालांकि, राज्य सरकार ऑक्सीजन की कमी से बच्चों की मौत से लगातार इनकार करती आ रही है. इस मामले में एसआईटी ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रिंसिपल राजीव मिश्रा और उनकी पत्नी डॉ पूर्णिमा शुक्ला और इंसेफलाइटिस वार्ड के इंचार्ज डॉ कफील अहमद खान को गिरफ्तार किया है.
डॉ. कफील पर नौकरी से अलग प्राइवेट अस्पताल चलाने सहित कई गंभीर आरोप लगे थे. गौरतलब है कि डॉ. कफील उस समय सुर्खियों में आए थे जब ऑक्सीजन की कमी के समय वह अपनी गाड़ी से दोस्तों के साथ निजी अस्पतालों से ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर बीआरडी मेडिकल कॉलेज आए थे.
पिछले काफी दिनों से राजनीतिक गहमागहमी के बावजूद बीआरडी मेडिकल कॉलेज की स्थिति बेहतर होती नहीं दिख रही है. बच्चों की लगातार हो रही मौत ने एक बार फिर से राज्य सरकार के रवैये पर सवाल खड़ा कर दिया है.
योगी सरकार पर विपक्षी पार्टियां तो हमला बोल ही रही हैं, पर अब एनडीए की सहयोगी दलों ने भी हमला बोलना शुरू कर दिया है.
बीजेपी की सहयोगी दल शिवसेना ने योगी सरकार की आलोचना की है. शिवसेना के मुखपत्र 'सामना' में छपे संपादकीय में गोरखपुर के बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज और फर्रुखाबाद के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हुई बच्चों की मौतों को 'सामूहिक बालहत्या' करार दिया है.
संपादकीय में लिखा गया है कि जिन बच्चों की मौत गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज और फर्रुखाबाद के जिला अस्पताल में हुई है, वो गरीब परिवारों से आते हैं. शिवसेना ने कहा है कि योगी सरकार के अस्पताल 'गरीबों के भगवान' बनने के बजाय 'गॉड ऑफ डेथ' बन गए हैं.
फर्रुखाबाद में पिछले एक महीने में 49 बच्चों की मौत
उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिला अस्पताल में भी पिछले एक महीने में 49 बच्चों की मौत को लेकर भी काफी बवाल मचा है. प्रदेश की योगी सरकार एक बार फिर से मीडिया के निशाने पर आ गई है.
फर्रुखाबाद में बच्चों की मौत के बाद राज्य सरकार ने दो दिन पहले ही फर्रुखाबाद के डीएम रविंद्र कुमार सहित तीन अधिकारियों का तबादला कर दिया था. पिछले कुछ दिनों से जिले के पूर्व डीएम रविंद्र कुमार और राज्य सरकार के बीच टकराव को लेकर खूब चर्चा सुनने को मिल रही थी.
डीएम बच्चों की मौत पर न्यायिक जांच कर कहा था कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई है. डीएम ने जिले के सीएमओ और सीएमएस के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी.
डीएम ने सीएमओ डॉ. उमाकांत, सीएमएस डॉ. अखिलेश अग्रवाल और नवजात शिशु देखभाल यूनिट के इंचार्ज डॉ. कैलाश के खिलाफ धारा 304 (गैर इरादतन हत्या), 176 (जानकारी छिपाने) और (188) आदेश की अवहेलना के तहत मामला दर्ज कराया था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक डीएम रविंद्र कुमार ने चूंकि खुद मान लिया था कि बच्चों की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है तो इस पर सरकार में हंगामा होना लाजमी था.
इस घटना के बाद राज्य सरकार के दो वरिष्ठ अधिकारी प्रमुख सचिव सूचना अवनीश अवस्थी और प्रमुख सचिव स्वास्थ्य प्रशांत त्रिवेदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऑक्सीजन की कमी से बच्चों के मौत मामले को सिरे से खारिज कर दिया.
राज्य सरकार ने फिलहाल डीएम और सीएमओ की आपसी लड़ाई बता कर पल्ला झाड़ लिया है. डीएम की बदनीयती बताकर एफआईआर पर कार्रवाई करने पर भी रोक लगा दी. सरकार का कहना है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है.
पिछले दिनों फर्रुखाबाद के जिला अस्पताल में 20 जुलाई से 21 अगस्त के बीच एक महीने में 49 बच्चों की मौत हो गई. नाराज डीएम रवींद्र कुमार ने इस पर मजिस्ट्रियल जांच बिठा दी थी.
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