सासन गिर, 7 अक्टूबर: गुजरात के वन विभाग ने गिर के जंगलों में 23 शेरों की मौत के बाद उनका टीकाकरण शुरू कर दिया है. वन विभाग को अभी इन शेरों की मौत की असल वजह नहीं मालूम हो सकी है. गुजरात के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वाइल्ड लाइफ) अक्षय कुमार सक्सेना ने इस बात का खंडन किया है कि संक्रमण से बचाने के लिए गिर के सभी शेरों को टीके लगाए जाएंगे.
सक्सेना ने फ़र्स्टपोस्ट से कहा, 'पहली बात तो यह कि किसी भी इंसान के लिए मुमकिन नहीं है कि वो 500 से ज्यादा खूंखार शेरों को इकट्ठा कर उन्हें टीका लगाए. दूसरी बात यह कि इसकी जरूरत ही नहीं है. शेरों को टीका लगाने का अभियान जो कल शुरू हुआ है, वो उन के लिए है, जिन्हें घेर कर रखा गया है. जो बचाव केंद्रों में हैं.'
वन संरक्षक उन 36 शेरों की बात कर रहे हैं, जो मारे गए 23 शेरों के आस-पास के इलाकों में रह रहे थे. उन्हें बेहोश कर के बचाव केंद्र लाया गया है. इस बात की आशंका है कि जिस घातक वायरस की वजह से शेर मर रहे हैं, वो उन इलाकों में रह रहे शेरों पर असर डालेगा, जो प्रभावित इलाकों में रह रहे हैं. इसी वजह से उन्हें बाकी शेरों से अलग कर के बचाव केंद्र लाया गया है.
इन 36 शेरों गिर के नेशनल पार्क के भीतर स्थित जंबवाला, जसाढ़ा और बाबरकोट के बचाव केंद्रों में रखा गया है. शेरों की लगातार निगरानी की जा रही है. 9 डॉक्टरों की टीम इन शेरों पर कड़ी निगाह रखे हुए है. इन शेरों के खून के नमूने नियमित अंतराल पर और कई बार दिन में तीन बार तक लिए जा रहे हैं. ताकि इनकी बारीकी से पड़ताल हो सके. यह काम सिर्फ गिर के जंगलों में नहीं हो रहा है. वन्य जीवों पर काम करने वाले भारत के बड़े संस्थानों जैसे देहरादून के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, बरेली के इंडियन वेटेरिनरी इंस्टीट्यूट और गांधी नगर के गुजरात बायोटेक्नोलॉजी की भी इस चुनौती से निपटने में मदद ली जा रही है.
'कितने शेरों को टीके लगाने हैं, यह डॉक्टर तय करेंगे'
शनिवार को डॉक्टरों ने पकड़े गए कुछ शेरों को टीके लगाए थे. लेकिन, अभी वन विभाग यह नहीं बता पा रहा है कि कितने शेरों को टीके लगाए जाएंगे. पीसीसीएफ अक्षय सक्सेना कहते हैं, 'कितने शेरों को टीके लगाने हैं, यह डॉक्टर तय करेंगे. डॉक्टर, शेरों के खून के सैंपल देखकर तय करेंगे कि कितने शेरों को खतरा है, जिनको टीके लगाने की जरूरत है. मेरा बस यही कहना है कि टीका लगाने का काम शुरू हो गया है और हम इस मिशन को अंजाम तक पहुंचाएंगे.'
Vaccination of segregated #Lions under intensive veterinary care as per standard protocol started. Top national & International lion experts have been consulted. Government undertaking utmost care for lion safety#AsiaticLion #Gir@PMOIndia @CMOGuj pic.twitter.com/XeaIQplkaC
— CCF Wildlife Junagadh (@CCF_Wildlife) October 7, 2018
23 शेरों की मौत को लेकर तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. शेरों के विशेषज्ञों के कयास अलग हैं और वन विभाग के अलग. एक थ्योरी यह है कि शेरों ने वायरस से संक्रमित मांस खाया उसके बाद उनकी मौत होने लगी. शेरों की मौत से कुछ दिन पहले आधी खायी हुई एक भैंस का कंकाल मिला था. यह कंकाल गिर के दलखानिया रेंज में उस जगह मिला था, जहां से कुछ दूरी पर शेरों की मौत हुई थी.
अक्षय सक्सेना के अलावा मुख्य वन संरक्षक (वाइल्ड लाइफ सर्किल, जूनागढ़), डी टी वसावड़ा भी मानते हैं कि यह कंकाल शेरों की संदिग्ध मौत की पहेली को सुलझाने की अहम कड़ी साबित हो सकता है.
पीसीसीएफ, अक्षय सक्सेना का कहना है कि वो सभी सूत्रों, सबूतों और संकेतों की पड़ताल कर रहे हैं. इनमें भैंस के कंकाल की जांच भी शामिल है. सक्सेना ने कहा, 'कई बार गिर नेशनल पार्क के शेर अभयारण्य से बाहर निकल जाते हैं. बाहर के जानवरों का शिकार करते हैं. यह उसी तरह है जैसे किसी इंसान का बच्चा घर से बाहर कहीं कुछ खा आए और आप को पता न हो कि उसने कहां, क्या खाया. उसने मैक्डोनाल्ड के रेस्टोरेंट में खाया या सड़क किनारे स्थित ढाबे में.'
जब शेरों की मौत की दबाई जा रही खबर धीरे-धीरे सार्वजनिक होने लगी
पकड़े गए शेरों को टीके लगाने का वीडियो, इस घटना से जुड़ा पहला दस्तावेज है, जो मीडिया के लिए जारी किया गया है. यह शेरों की मौत की दुखद घटना के एक हफ्ते बाद किया गया है. वो भी तब, जब शेरों की मौत की दबाई जा रही खबर धीरे-धीरे सार्वजनिक होने लगी.
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि घोड़े के भागने के बाद अस्तबल में ताला लगाया जा रहा है.
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