अब स्कूलों के लिए केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) की मान्यता लेना मुश्किल हो जाएगा. सीबीएसई मान्यता देने की प्रक्रिया में बड़े बदलाव कर रहा है. सीबीएसई ने स्कूलों को मान्यता देने संबंधी अपने नियमों में बदलाव किया है और अपनी भूमिका शैक्षणिक गुणवत्ता की निगरानी तक सीमित करते हुए आधारभूत ढांचे के ऑडिट की जिम्मेदारी राज्यों पर छोड़ दी है.
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को घोषणा की कि मान्यता देने वाले सीबीएसई के उप कानूनों को पूरी तरह से बदल दिया गया है ताकि त्वरित ,पारदर्शी, परेशानी मुक्त प्रक्रियाओं और बोर्ड का आसानी से काम करना सुनिश्चित किया जा सके.
उन्होंने पत्रकारों से कहा, ‘नए उप कानून पहले की बेहद जटिल प्रक्रियाओं से सिंपल सिस्टम में आ जाएगा, जो प्रक्रियाओं के दोहराव को रोकने पर आधारित है.’
उन्होंने कहा, ‘वर्तमान में आरईटी कानून के तहत मान्यता और एनओसी देने के लिए राज्य शिक्षा प्रशासन स्थानीय निकायों, राजस्व और सहकारी विभागों से मिलने वाले कई सर्टिफिकेट्स का सत्यापन करता है. आवेदन मिलने के बाद सीबीएसई उनका पुन: सत्यापन करता है और इस प्रकार से पूरी प्रक्रिया लंबी हो जाती है.’
जावडेकर ने कहा कि बोर्ड अब उन पहलुओं को नहीं देखेगा जिनका निरीक्षण राज्य कर चुका है. अब सीबीएसई स्कूलों का निरीक्षण परिणाम आधारित और शैक्षणिक और गुणवत्ता को प्रमुखता देगा.
गौरतलब है कि देश भर में 20,783 स्कूल सीबीएसई से मान्यता प्राप्त हैं. इनमें कम से कम 1.9 करोड़ छात्र और 10 लाख से अधिक टीचर हैं. मान्यता देने से जुड़े उप कानून 1998 में बने थे और अंतिम बार 2012 में उनमें बदलाव किया गया था.
(एजेंसी से इनपुट)
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