भारत में हो रही घटनाओं से हममें से कुछ लोग परेशान होंगे. लेकिन हमें कुछ बातों की स्पष्ट जानकारी नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि इतने विशाल स्तर पर कारण और प्रभाव का पता लगाना आसान नहीं होता.
क्या हालात खराब हैं? क्या लोकतंत्र खतरे में है? अगर ऐसा है, तो इसका जिम्मेदार कौन है? क्या इसके लिए किसी पार्टी या संगठन को दोष देना ठीक है? हममें से ज्यादातर लोगों के लिए इस सवाल का जवाब देना मुश्किल है.
गौरी लंकेश जिनकी मंगलवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, वह स्पष्टता की कमी से नहीं जूझ रही थीं. उन्हें पता था क्या हो रहा है, और उन्हें पता था कि इसका मूल कारण क्या है. सबसे बड़ी बात है कि उन्हें पता था कि इसके लिए क्या करना है.
उनके उपनाम से पता चलता है कि वह साधारण महिला नहीं थीं. लंकेश का मतलब रावण होता है. गौरी के पिता खुद को लंकेश बुलाते थे. वह साउथ इंडिया प्रोड्यूस के संपादक थे और राजनीति और संस्कृति, अत्यधिक शिक्षित, द्विभाषी और प्रासंगिक अंग होने के बावजूद लिमिटेड सिर्कुलेशन के साथ थे.
जब कन्हैया से मिली गौरी लंकेश
लंकेश पत्रिका का मतलब है रावण का पत्र, यह एक शातिर और अत्यधिक राजनीति पर आधारित पब्लिकेशन है जिसने अपनी संपादक को ही मुसीबत में डाल दिया. लंकेश की मृत्यु के बाद, यह पत्रकारिता का स्कूल उनके बच्चों के पास चला गया था. उनकी बेटी को गौरी लंकेश पत्रिके बुलाया जाता था. इसमें एक चीज जमा की गई. गौरी को लगा कि यह समय की जरूरत है- हिंदुत्व की विचारधारा के खिलाफ साफ रुख रखा जाना चाहिए.
इस सफाई ने गौरी को आकर्षित किया, इससे गौरी को अलग पहचान मिली. बेंगलुरु में वह इस तरह के लोगों के लिए संपर्क का बिंदु थीं और उनके मेजबान के रूप में उसने खुद को सीमित कर दिया, जो कि उनके पास सीमित संसाधन थे.
जिगनेश मेवानी ऊना में दलितों के खिलाफ हुए अत्याचार पर आंदोलन कर रहे थे. गौरी ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय देशद्रोह एपिसोड में उन्हें दोपहर के समय फोन किया और कहा ‘कन्हैया राज्य में हैं. क्या आप फ्री हो?’ तब कन्हैया राज्य में आया हुआ था और उनके साथ था. वह उसके समारोहों को मैनेज कर रही थीं. यह उमर खालिद से पहले की बात है.
जब वह इन दोनों को घर लेकर आईं, इसके पीछे भी उद्देश्य था: हम देश में बहुत मुसीबत के दौर से गुजर रहे हैं, हम क्या कर सकते हैं? वह हमेशा एक्शन के लिए तैयार रहती थीं और वह बहुत निर्मम भी थीं. इसलिए वह बहुत खतरनाक थीं.
कर्नाटक सरकार ने कहा कि उन्होंने कभी ये नहीं बताया कि उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही है. यह आश्चर्य की बात नहीं है जब भी वह खुद को कठोर दिखाती थीं तो वह अपने बारे में बहुत कम ही बात करती थीं. लेकिन वह निर्विवाद थीं और उन्होंने लोकल लेंग्वेज के लिए बहुत संघर्ष किया था. बावजूद इसके बहुत सारे लोग थे जो उनसे नफरत करते थे.
वह बहुत पतली थीं और शारीरिक रूप से काफी कमजोर दिखाई दे रही हैं. उनका शरीर पक्षियों की भांति था और सामान्य उम्र की महिला की तरह नजर आती थीं. उनके इरादे पक्के थे और यह बात उनके हत्यारों को भी पता था. उनकी बुलंद आवाज और सोच को रोकने का सिर्फ एक ही रास्ता है. वह उनसे इतना डर गए थे कि उनके पास बंदूक उठाने के आलावा कोई चारा नहीं था.
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