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तीन तलाक: राजीव गांधी के एक फैसले ने सेकुलरिज्म की धज्जियां उड़ा दी थीं

अगर उस वक्त राजीव गांधी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे घुटने नहीं टेके होते. अगर उन्होंने कोर्ट का आदेश लागू होने दिया होता, तो भारतीय राजनीति की दशा-दिशा कुछ और ही होती

Updated On: Aug 24, 2017 12:57 PM IST

Ajay Singh Ajay Singh

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तीन तलाक: राजीव गांधी के एक फैसले ने सेकुलरिज्म की धज्जियां उड़ा दी थीं

तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से एक ऐतिहासिक भूल को सही किया गया है. ऐसा करने में देश को तीन दशक से ज्यादा का वक्त लग गया. डर तो ये था कि कहीं इतिहास अपनी भूल को फिर से न दोहरा दे. मगर अच्छी बात रही कि ऐसा नहीं हुआ.

देश की सबसे बड़ी अदालत ने एक बार फिर से अपने फैसले से साबित किया है कि वो नागरिकों की निजी स्वतंत्रता के हक में है और कट्टरपंथ के खिलाफ है. अदालत ने ऐसा ही फैसला 1985 में उस वक्त दिया था, जब शाहबानो के मामले में तीन तलाक को अवैध करार दिया था. उस वक्त जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ ने अपने फैसले पर जोर देते हुए कहा है कि ये फैसला धार्मिक कट्टरता के खिलाफ है.

Shah_Bano

शाह बानो

1985 में जब ये फैसला आया था, तो देश सियासी उठापटक के दौर से गुजर रहा था. एक साल पहले ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी. इसके बाद भड़के सांप्रदायिक दंगों में दिल्ली से लेकर बोकारो, कानपुर और दूसरे शहरों में सैकड़ों लोग मारे गए थे.

इंदिरा गांधी की सियासी विरासत दिलकश मुस्कान वाले उनके बेटे राजीव गांधी ने संभाली थी. यूं तो वो पहले ही युवराज घोषित कर दिए गए थे. मगर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनावों से राजीव गांधी की ताजपोशी पर लोकतंत्र की मुहर भी लग गई थी.

इसी माहौल में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, तो यूं लगा कि ये मुद्दा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा. तरक्कीपसंद मुसलमानों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को हाथों हाथ लिया था. लोगों ने इस फैसले को महिलाओं को बराबरी का हक देने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया था. ज्यादातर लोगों ने इसे धार्मिक मामला नहीं माना था.

सरकार बनने के बाद राजीव गांधी ने मुस्लिम मुद्दों पर कांग्रेस और सरकार का पक्ष रखने की जिम्मेदारी अपने भरोसेमंद साथी आरिफ मोहम्मद खान को दी थी. संसद में बहस के दौरान आरिफ मोहम्मद खान ने जोर-शोर से मुसलमानों के हक की बात की. मुस्लिम समुदाय के तरक्कीपसंद लोगों का पक्ष रखा.

लेकिन राजीव गांधी कट्टरपंथियों के दबाव में आ गए. उन्होंने 1986 में संसद से कानून पारित करवाकर शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया. इससे नाखुश आरिफ मोहम्मद खान ने राजीव गांधी के मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने एक शेर के जरिए अपना सवाल राजीव गांधी के सामने रखा-

तू इधर-उधर की न बात कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा मुझे रहजनों से गिला नहीं, तेरी रहबरी का सवाल है.

आरिफ मोहम्मद खान ने आरोप लगाया था कि राजीव गांधी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के सामने घुटने टेक दिए. वो आज भी मानते हैं कि राजीव गांधी का वो फैसला मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत नुकसानदेह साबित हुआ. उसने तरक्कीपसंद मुसलमानों के हाथ-पैर बांध दिए. उस गलती को सुधारने में तीस साल से ज्यादा वक्त लग गया. उस फैसले के बाद आरिफ ने राजीव गांधी से अलग चलने का फैसला किया.

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मगर आज जब हम पलटकर उस वक्त को, उस फैसले को याद करते हैं, तो लगता है कि अगर राजीव गांधी ने शाहबानो पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं पलटा होता, तो अयोध्या-राम जन्मभूमि आंदोलन को इतना समर्थन नहीं मिला होता. उस दौर को याद करके बहुत से लोग कहते हैं कि राजीव गांधी के फैसले की वजह से ही देश में हिंदू राष्ट्रवाद को फलने-फूलने का मौका मिला.

अगर आपको इस बात पर कोई शक हो तो लालकृष्ण आडवाणी से पूछ लीजिए. वो आपको एक किस्सा बताएंगे. शाहबानो पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजीव गांधी मुस्लिम कट्टरपंथियों के दबाव में थे. कट्टरपंथी, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपने धार्मिक मामलों में दखलंदाजी बता रहे थे.

उस वक्त एक पूर्व आईएफएस अफसर सैयद शहाबुद्दीन ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. शहाबुद्दीन ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए मुस्लिम कट्टरपंथियों को एकजुट करना शुरू कर दिया था. इसी माहौल में राजीव गांधी, लालकृष्ण आडवाणी से मिलने पहुंचे और उनसे सलाह मांगी. आडवाणी ने राजीव गांधी को सलाह दी कि वो मौलवियों और कट्टरपंथियों के आगे न झुकें. अगर राजीव गांधी ने आडवाणी की सलाह मानी होती, तो देश का सियासी नक्शा आज कुछ और होता.

लेकिन राजीव गांधी ने आडवाणी की सलाह को अनसुना कर दिया. उन्होंने संसद के जरिए अदालत का फैसला पलट दिया. भारी बहुमत के चलते राजीव गांधी ने विपक्ष के ऐतराजों को सिरे से खारिज कर दिया. इसके बाद राजीव गांधी एक के बाद एक गलती करते चले गए. वो कभी मुस्लिम तो कभी हिंदू कट्टरपंथियों के आगे झुकते गए.

शाहबानो प्रकरण की वजह से नाराज हिंदुओं को मनाने के लिए राजीव गांधी ने 1986 में अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया. इसके बाद उन्होंने विवादित जगह पर भूमि पूजन की इजाजत भी दे दी.

इसमें कोई शक नहीं कि राजीव गांधी ने कांग्रेस की बर्बादी की बुनियाद रख दी थी. संघ-बीजेपी-विश्व हिंदू परिषद का विस्तार और भारतीय राजनीति के एक ध्रुव के तौर पर उनकी जगह अगर आज है, तो वो राजीव गांधी की वजह से है. उस वक्त से ही हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति करने वालों को सुनहरा मौका मिल गया था.

Supreme Court

22 अगस्त को ट्रिपल तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने शाहबानो मामले पर अदालत की राय पर फिर से मुहर लगा दी है. इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं, जब हम ये सोचने को मजबूर हुए हैं कि अगर ऐसा नहीं होता, तो क्या होता.

तो अगर उस वक्त राजीव गांधी ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के आगे घुटने नहीं टेके होते. अगर उन्होंने कोर्ट का आदेश लागू होने दिया होता, तो भारतीय राजनीति की दशा-दिशा कुछ और ही होती. आज जिस तरह का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण देखने को मिल रहा है, वैसा शायद नहीं होता. बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि का विवाद आज जिस मोड़ पर है, शायद वैसा नहीं होता. शायद कांग्रेस आज जिस हालत में है, उस हालत में नहीं होती. वो आज भी भारत की राजनीति के केंद्र में होती.

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