जस्टिस बीएम लोया की रहस्यमय मौत के मामले में महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पैरवी करते हुए वकील हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट को मंगलवार के दिन सीलबंद लिफाफे में दस्तावेज सौंपे.
जस्टिस लोया 2014 में सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे. इसी दौरान उनकी मौत हुई थी.
'एक अहम मामले की सुनवाई कर रहे जज की मौत बहुत गंभीर मामला है और याची के रुप में मैंने सुप्रीम कोर्ट से मामले की स्वतंत्र जांच की विनती की है क्योंकि मौत संदिग्ध जान पड़ती है.' यह बात 48 वर्षीय बंधुराज संभाजी लोन ने कही. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक जस्टिस लोया की मौत को लेकर जनहित याचिका दायर की है.
जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ के समक्ष 16 जनवरी की सुनवाई के बाद मराठी पत्रकारिता जगत के वरिष्ठ पत्रकार और मुंबई के निवासी लोन ने फ़र्स्टपोस्ट से अपनी याचिका और मामले को लेकर विस्तार से बातचीत की.
फ़र्स्टपोस्ट से बंधुराज संभाजी लोन की बातचीत के कुछ अंश:
वकील हरीश साल्वे ने सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को दस्तावेज सौंपे. आपको क्या लगता है, दस्तावेज में क्या लिखा हो सकता है?
हरीश साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट को जो दस्तावेज सौंपे वे अपने मिजाज में बहुत गोपनीय और संवेदनशील हैं. सौंपे गए दस्तावेज का रिश्ता जस्टिस लोया की मौत से संबंधित जांच और मेडिकल रिपोर्ट से है.
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि दस्तावेज को याचिका दायर करने वालों के साथ साझा किया जाए...
हां, सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से कहा है कि याचिका दायर करने वाले को सारे तथ्य पता होने चाहिए और उसे मेडिकल रिपोर्ट समेत तमाम दस्तावेजों की जांच में सक्षम होना चाहिए. लेकिन याचिका दायर करने वाला भी दस्तावेजों की गोपनीयता के मद्देनजर उनके बारे में कोई बात बता नहीं सकता. यह बात मैं प्रसंगवश कह रहा हूं क्योंकि मामले में मैंने ही याचिका दायर की है..
आपने जनहित याचिका अकेले दायर की है या इसमें किसी और को भी साथ रखा है?
मैंने एक स्वतंत्र नागरिक हैसियत से अकेले ही यह याचिका दायर की है. मैंने 10 जनवरी को याचिका दायर की और पहली सुनवाई 12 जनवरी को हुई. पहली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से मामले से संबंधित दस्तावेज सौंपने को कहा. आज मैं यहां दूसरी सुनवाई के नाते आया था और साल्वे ने सुप्रीम कोर्ट को दस्तावेज सौंपे. अगली सुनवाई सात दिन बाद 23 जनवरी को होनी है.
मेरे अलावा, तहसीन पूनावाला ने स्वतंत्र रूप से एक और जनहित याचिका दायर की है.
आपने याचिका बॉम्बे हाइकोर्ट में दायर ना कर सुप्रीम कोर्ट में दायर की, ऐसा क्यों?
बॉम्बे हाइकोर्ट, बॉम्बे हाइकोर्ट के नागपुर पीठ और पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट, चंडीगढ़ में लोगों ने पहले ही याचिका दायर कर रखी है. मैंने अपनी याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की क्योंकि मुझे लगा अपनी मांग रखने का यह सही मंच है.
आपकी क्या मांग है?
एक जज की मौत- जो सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे-अपने आप में बहुत गंभीर मामला है. मुझे लगता है कि जस्टिस लोया की रहस्यमय मौत की अभी तक कोई समुचित जांच नहीं हुई है. मेरी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में स्वतंत्र जांच हो. जस्टिस लोया एक शादी समारोह में भाग लेने के लिए 1 दिसंबर 2014 को नागपुर गए थे. वहीं उनकी मौत हुई. इसके बाद से महाराष्ट्र समेत पूरे देश में इसपर बहुत कुछ कहा-सुना गया है लेकिन सही अर्थों में अभी तक समुचित जांच नहीं हुई है.
लेकिन जस्टिस लोया के बेटे अनुज ने हाल ही मे कहा कि हमारे परिवार को इस मौत की बाबत कोई शंका नहीं है, पहले शंका थी लेकिन अब ऐसी कोई बात नहीं है. इसपर आपका क्या कहना है?
चूंकि मैं इस मामले में याचिका दायर करने वाला व्यक्ति हूं सो मेरे लिए ऐसी किसी बात पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा जो कोर्ट के दायरे से बाहर हो.
क्या आप चाहते हैं कि किसी राजनीतिक दल का आपको समर्थन मिले?
ना तो मैंने किसी राजनीतिक दल से समर्थन चाहा है ना ही इस बाबत मुझसे अभी तक किसी राजनीतिक दल ने संपर्क किया है. मैं यह बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि बीते वक्त में मैंने बहुत से मुद्दे उठाए हैं और संघर्ष किया है और इस मामले में भी मैं कोई राजनीतिक सहयोग नहीं लेने जा रहा. मैं यह काम अकेले करुंगा. बहरहाल, इस मामले का राजनीतिकरण तो होना ही है सो हम किसी व्यक्ति या पार्टी को अदालत में याचिका दायर करने या इंसाफ मांगने से रोक नहीं सकते.
तो आप अकेले अपने दम पर इस मामले में संघर्ष कर रहे हैं…
हालांकि जनहित याचिका मेरे नाम से स्वंत्र रुप से दायर हुई है लेकिन फुले-अंबेडकर समूह से जुड़े कुछ समान सोच वाले लोग और मेरे कुछ दोस्त हैं जो मेरा समर्थन कर रहे हैं. हम इस मामले में इंसाफ चाहते हैं क्योंकि जस्टिस लोया की मौत संदिग्ध जान पड़ती है.
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