शरिया अदालत बनाने को लेकर पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि कानून इस बात को मान्यता देता है कि हर समुदाय के अपने नियम हो सकते हैं.
उन्होंने इंडिया टुडे टीवी चैनल से कहा कि लोग सामाजिक परंपराओं और कानूनी व्यवस्था के बीच भ्रम में पड़ रहे हैं. पिछले हफ्ते ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि वह इस्लामी कानूनों से जुड़े मुद्दों के सुलझाने के लिए शरिया अदालत बनाने पर विचार कर रहा है. हालांकि सरकार ने इस प्रस्ताव का विरोध किया है.
अभी हाल में अंसारी ने अपने विदाई कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी की उस टिप्पणी का मुद्दा उठाया जिसमें उन्होंने अंसारी के नजरिए में एक निश्चित झुकाव के बारे में संकेत दिया था. दस अगस्त 2017 अंसारी का उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के तौर पर दूसरे कार्यकाल का आखिरी दिन था. परंपरा के मुताबिक पार्टियां और उसके सदस्य सभापति को धन्यवाद देते हैं.
अंसारी ने कहा, प्रधानमंत्री ने इसमें भाग लिया और मेरी पूरी तारीफ करने के दौरान उन्होंने मेरे नजरिए में एक निश्चित झुकाव के बारे में भी संकेत दिया. उन्होंने मुस्लिम देशों में राजनयिक के तौर पर मेरे कामकाज और अल्पसंख्यकों से जुड़े सवालों की चर्चा की.
इस पर अंसारी ने कहा, ‘इसका अर्थ संभवत: बेंगलूरू में मेरे भाषण के बारे में था जिसमें मैंने असुरक्षा की बढ़ी भावना का जिक्र किया था और टीवी इंटरव्यू में मुस्लिमों और कुछ अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों में डर के बारे में बात की थी.’
उपराष्ट्रपति पद से मुक्त होने से पहले अपने आखिरी भाषण में अंसारी ने इस बात की ओर इशारा किया था कि देश में मुसलमान असहज महसूस कर रहे हैं.
(इनपुट भाषा से)
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