भारत की अफगानिस्तान में भूमिका को लेकर उठे सवालों के बीच पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा है कि भारत को अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को लेकर साफ होना चाहिए और उसे तालिबान को हिंसक चरमपंथ छोड़ने और मुख्यधारा में आने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए.
भारत अफगानिस्तान में शांति और सुलह प्रक्रिया में एक अहम साझेदार बन गया है और युद्धग्रस्त देश के लिए तीन अरब अमेरिकी डॉलर की सहायता की घोषणा की है.
मेनन ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में कहा कि भारत को तालिबान को प्रोत्साहित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि तालिबान मुख्यधारा में आए और वे चरमपंथी विचारों को छोड़ दें और महिलाओं के साथ वे जैसा व्यवहार करते हैं, उसमें बदलाव करें. उन्होंने कहा कि इस संबंध में भारत जो कर सकता है, उसे करना चाहिए. उन्होंने कहा कि लेकिन यह कैसे होगा और यह कैसे आकार लेगा, यह हमें कहने की जरूरत नहीं है.
मेनन ने कहा कि हमें अपनी भूमिका के बारे में साफ होना चाहिए. तालिबान या किसी अन्य से बातचीत का जिम्मा खुफिया एजेंसियों का है. मेनन ने कहा कि अफगानिस्तान से पनपने वाले चरमपंथ के खतरे के बारे में भारत में अतिशयोक्ति है.
उन्होंने यहां एक बहस के दौरान कहा कि भारतीयों की प्रवृत्ति अफगानिस्तान से चरमपंथ के खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की है. उन्होंने पिछले 40 साल में अफगानिस्तान से किसी आतंकवादी के बारे में नहीं सुना. यह वास्तव में पाकिस्तानी आतंकवाद है और हमें इस बारे में कोई गलती नहीं करनी चाहिए.
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