देश का अन्नदाता एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर शुक्रवार को दिल्ली की सड़कों पर उतरा. इस उम्मीद से कि सरकार उसकी सुनेगी. देशभर के लगभग 25 राज्यों से दिल्ली के रामलीला मैदान में 29 नवंबर को इकट्ठा हुए हजारों किसानों ने आज संसद भवन तक मार्च किया.
लगभग 200 किसान संगठनों के आह्वान पर किसान मुक्ति मार्च जब सड़क पर निकला तो किसी के हाथों में झंडे थे, तो किसी के हाथों में तख्तियां. किसी के गले में नरमुंड की माला थी तो किसी में आलू की. लेकिन लगभग 10 से 12 हजार की इस भीड़ में मांगे सबकी एक थी- कर्ज माफी. लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य और संसद का विशेष सत्र.
नेशन फॉर फॉमर्स का बैनर हाथ में लिए चल रहे वरिष्ठ पत्रकार और एक्टिविस्ट पी साईंनाथ ने कहा 25 राज्यों से आए इन किसानों की आवाज, बहरों को सुनना और अंधों को देखना सिखाएंगी.
किसान आंदोलन में शामिल अखिल भारतीय किसान सभा के रोहतक से आए बलवान सिंह ने कहा कि सरकार लोकसभा और राज्यसभा का संयुक्त विशेष सत्र बुलाए, जहां सिर्फ किसानों की समस्याओं, परेशानियों से जुड़ी बातों पर चर्चा हो. वादें तो इस सरकार ने 15 लाख के भी किए थे पर 100-200 करके जो पैसे हमारी बहनों, माताओं ने जोड़े थे वो भी इस सरकार ने नोटबंदी से ले लिए. अगर सरकार हमारी मांगे पूरी नहीं करती तो तख्ता पलट कर देंगे. काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है, बार बार नहीं.
बिहार के बेगूसराय से आए लक्ष्मण सिंह ने कहा है कि सरकार अगर उनकी मांगें नहीं मानती है तो 1947 जैसा आजादी का संघर्ष होगा. जिस तरह से बापू ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन बिहार से छेड़ा था. जयप्रकाश नारायण ने छात्र आंदोलन बिहार से शुरू किया था. उसी तरह से अब किसान आंदोलन भी बिहार से शुरू हो चुका है. किसान अब आत्महत्या नहीं, आंदोलन करेगा.
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इसी साल मार्च महीने में नासिक से मुंबई चलकर पहुंचे किसानों में से कुछ किसान इस आंदोलन का भी हिस्सा बने. उन्हीं में से विदर्भ महाराष्ट्र के जितेंद्र सिंह कहते हैं, ये सरकार किसानों को बेवकूफ समझती है. सत्ता इस सरकार के हाथ में है. जब जीएसटी लागू करने के लिए सरकार आधी रात को अधिवेशन बुला सकती है तो हम किसानों के लिए क्यों नहीं? राज्यसभा और लोकसभा दोनों में इस सरकार को बहुमत है. राष्ट्रपति भी इनके हैं... फिर कौन इस सरकार को रोक रहा है?
तस्वीरों के ढेर में हर किसान खोज रहा था अपनी फोटो:
मंच की तरफ जाते हुए सड़क पर एक किनारे तस्वीरों का ढेर लगा था जिसके चारों ओर लोगों का जमावड़ा था. शायद ही पहले किसी और आंदोलन में ऐसा देखने को मिला हो. दरअसल, ये तस्वीरें इसी आंदोलन की थी और अलग अलग राज्यों से आए किसान इन तस्वीरों में खुद को ढूंढ रहे थे. किसी फोटोग्राफर ने इस आंदोलन की तस्वीरें ली और अब वो 50 रुपए में इन्हें बेच रहा था. आंदोलन में शामिल हुए किसान या तो याद के तौर पर या फिर सबूत के तौर पर इन्हें अपने साथ ले जाना चाहते थे.
इस आंदोलन की खास बात यह भी थी कि इसमें किसानों के अलावा डॉक्टर, लॉयर, टीचर, स्टूडेंट,आम जनता भी शामिल थी. तमिलनाडु की रहने वाली बिट्टो दिल्ली में न्यूरोसाइंस की टीचर हैं. जब उनसे पूछा गया कि वो क्यों इस आंदोलन का हिस्सा बनीं तो उन्होंने कहा, ये रोज मेरा पेट भरते हैं... मैं क्यों ना इनके साथ खड़ी हूं?
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डॉक्टर्स फॉर फॉर्मर्स का पोस्टर अपने पीछे लगाए सेवाग्राम वर्धा के डॉ प्रियदर्श कहते हैं, 'मैं इन्हें समर्थन और योगदान देने आया हूं. हमने कल से कई किसान भाइयों को दवा भी मुहैया कराई. साथ ही मैं यह भी जानना चाहता हूं कि इतनी दूर से आए ये लोग किस प्रेरणा के तहत यहां इकट्ठा हुए हैं. और क्या सचमुच इन आंदोलनों से कुछ बदलता है. मैं भी किसान परिवार से आता हूं और जानता हूं कि किसानी कोई फायदे का पेशा नहीं रहा.
हर किसान बीजेपी के खिलाफ वोट करेगा:
बागपत मेरठ से आंदोलन में पहुंचे सतमीरण सिंह तोमर काफी गुस्से में कहते हैं, 'अगर इस सरकार ने हमारी न सुनी तो 2019 में किसान भी इनकी क्यों सुनेगा? एक एक किसान इनके खिलाफ वोट करेगा.'
मंच से चल रहे भाषणों को सुनने के लिए दूर दूर तक सड़क पर बैठे लोगों को योगेंद्र यादव द्वारा लिखी गई किताब 'मोदीराज में किसान: डबल आमद या डबल आफत' दी जा रही थी. इस किताब में योगेंद्र यादव ने सरकार द्वारा किसानों को किए गए वादें और हकीकत पर विश्लेषण किया है. उन्होंने साल 2022 तक किसान की आमदनी 2 गुना करने वाली बात का भी जिक्र किया है.
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योगेंद्र यादव ने लिखा है कि इस सरकार ने 2016 के फरवरी महीने में ये बात कही थी. तब से अब तक सरकार ने बस एक कमिटी बना दी है. उन्होंने 14 खंड की बड़ी रिपोर्ट दे दी है. सरकार के पास अब तक आमदनी दोगुना करने की कोई योजना कागज पर नहीं है. अगर किसान की आमदनी 2022- 23 तक दोगुनी करनी है तो किसान की आय 10.4 फीसद की सालाना रफ्तार से बढ़नी चाहिए. लेकिन पिछले 4 साल में किसान की आय सिर्फ 2.2 फीसदी सालाना की दर से बढ़ी है.
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